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गिद्ध-उल्लू ऐसे बचा रहे करोड़ों रुपए और चिड़िया कर रही बड़ा काम, गलती के अहसास पर चीन को मंगानी पड़ गई थी 1 लाख चिड़िया

कीटों की बाढ़ आ गई और 1958 से 1962 के बीच चीन में भीषण अकाल पड़ा। तब जाकर चीन को अपनी गलती का एहसास हुआ और रूस से एक लाख चिड़ियों को मंगवाया गया।

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कोटा

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Akshita Deora

Apr 28, 2025

मुकेश शर्मा

गिद्ध, उल्लू, चिड़िया और अन्य पक्षी न केवल पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखते हैं, बल्कि करोड़ों रुपए की प्राकृतिक सफाई भी कर रहे हैं। बतौर प्राकृतिक सफाईकर्मी, ये पक्षी सालभर अनवरत काम कर करोड़ों रुपए और पर्यावरण बचाते हैं।

कोटा के उप वन संरक्षक (वन्यजीव) अनुराग भटनागर ने इस संबंध में बारीकी से अध्ययन कर शोध किया है। भटनागर के अनुसार, एक गिद्ध अपने जीवनकाल (करीब 40 वर्ष) में लगभग 25 लाख रुपए मूल्य के शवों का प्राकृतिक निस्तारण कर देता है।

भटनागर ने बताया कि एक गिद्ध अपने जीवनकाल में सैकड़ों मवेशियों के शवों का निस्तारण करता है। 35-40 गिद्धों का एक दल भैंस जैसे बड़े मृत पशु को 4-5 घंटे में पूरी तरह साफ कर देता है। यदि यही कार्य इंसानी तरीके से किया जाए तो एक शव को दफनाने या जलाने में 5 से 10 हजार रुपए तक का खर्च आता है। गिद्धों के शरीर में पाया जाने वाला पीएच-1 स्तर का अम्ल हड्डियों तक को गला देता है।

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गौरेया प्रतिदिन 220 से 280 कीटों का सेवन करती है। पांच वर्षों के जीवनकाल में यह लगभग साढ़े चार लाख कीटों का नाश करती है। वहीं, कॉमन मैना प्रतिदिन लगभग 340 कीटों को खा जाती है।

…तब चीन को पक्षियों की कमी का पता चला

चीन ने 1958 में कीट नियंत्रण के नाम पर यूरेशियन गौरेया समेत अन्य जीवों का सफाया कर दिया। दो वर्षों में ही वहां गौरेया विलुप्त हो गई। इसके चलते कीटों की बाढ़ आ गई और 1958 से 1962 के बीच चीन में भीषण अकाल पड़ा। तब जाकर चीन को अपनी गलती का एहसास हुआ और रूस से एक लाख चिड़ियों को मंगवाया गया।

टिट्स: कीटों का खात्मा: टिट्स पक्षी अपने जीवनकाल में लगभग तीन करोड़ कीटों, उनके अंडों व लार्वा का नाश करती है।

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