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नहीं मिल रहे श्रमिक, उत्पादन हो रहा प्रभावित

- कोटा स्टोन की प्रोसेसिंग इकाइयों में मजदूरों का टोटा, पॉलिश पत्थर के भावों में हो रही तेजी

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कोटा

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Anil Sharma

Apr 01, 2021

ramganjmandi, kota

रामगंजमंडी स्थित कोटा स्टोन की खदान में काम करते श्रमिक। file photo

रामगंजमंडी. भू गर्भ से दोहन करके निकाले जाने वाले कोटा स्टोन की प्रोसेसिंग इकाइयों में कोरोना महामारी के बाद से श्रमिकों का टोटा बना हुआ है। खपत के मुकाबले में उत्पादन इससे प्रभावित होने का सीधा असर कोटा स्टोन के भावों में नजर आने लगा है। प्रोसेसिंग किए पत्थर पर श्रमिकों की कमी के कारण एक रुपए फुट तक की तेजी बनी हुई है। रफ पत्थर की खपत कम होने से इस किस्म के पत्थरों के भावों में दो रुपए व निजी खदानों में यह कमी तीन से पांच रुपए फुट तक बनी है।
रामगंजमंडी क्षेत्र में कोटा स्टोन की करीब 54 खदाने हैं जिसमें सबसे बड़ी खदान एएसआई इन्डस्ट्रीज के पास है। इसके अतिरिक्त झालावाड़ जिले के रुणजी, बिरियाखेडी, नेरावत की खदानों से कोटा स्टोन की प्रोसेसिंग यूनिटों का संचालन करने वाले फेक्ट्री संचालकों द्वारा रफ पत्थर की खरीद की जाती है। रामगंजमंडी क्षेत्र की कुछ खदानों में पर्यावरण स्वीकृति के अभाव में उत्पादन बंद पड़ा हुआ है जिनके अगले सत्र तक कागजी कार्यवाही पूरी करने के साथ उत्पादन प्रक्रिया चालू हो जाएगी।
खदानों से आने वाले रफ पत्थर की प्रोसेसिंग करने के लिए कुदायला, अमरपुरा, मायला, सुकेत, ढ़ाबादेह, फतेहपुर में सैकड़ों की संख्या में पत्थर इकाईयां संचालित होती है जिसमें पत्थर को पॉलिश करके उसे दिसावर में बेचा जाता है। इन पत्थर यूनिटों में हजारों की संख्या में श्रमिक कार्य करते थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद श्रमिकों के होने वाले पलायन ने कोटा स्टोन उद्योग की रौनक को प्रभावित कर दिया। खदानों मेंउत्पादन प्रक्रिया की निरंतरता व प्रोसेसिंग यूनिटों में श्रमिकों के टोटे ने रफ पत्थर की खपत को प्रभावित किया जिसका सीधा असर रफ माल की बिक्री पर आया। गत वर्ष के मुकाबले में जिन दरों में कोटा स्टोन केनामी पत्थर बिकते थे उससे दो रुपए फुट तक टूटे। निजी खदानों में दरों मेंकमी का यह आलम तीन से पांच रुपए फुट तक आ गया।

कहां से आते है मजदूर
कोटा स्टोन की प्रोसेसिंग यूनिटों में मध्यप्रदेश के राजगढ़,ब्यावरा, सुसनेर सहित समीपवर्ती गांवों से मजदूरी करने के लिए आते है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े परिवार भी इस उद्योग से जुड़े हुए है। मध्यप्रदेश के समीपवर्ती गांवों से आने वाले श्रमिकों की लाकडाउन केसमय में हुई घर वापसी उन्हें वापस फेक्ट्रियों की तरफ नहीं ला पाई। मध्यप्रदेश के दूरस्थ जिलों से आने वाले यह श्रमिक फेक्ट्रियों पर आते शादीब्याह तीज त्यौहार, मनौती के समय में इनकी वापसी कुछ दिनों के लिए गांव में होती थी और लौट आते थे। ऐसे श्रमिकों का समूह कोरोना काल में खेती बाड़ी से जुड़कर गांव का होकर रह गया। कोरोना काल के पहले कोटा स्टोन की प्रोसेसिंग यूनिटों मेंश्रमिकों की बहुतायत रहने से उत्पादन प्रक्रिया के प्रति उद्यमी निश्चित रहता था। 24 घंटे शिफ्टों में श्रमिक कार्य करके उत्पादन करते थे लेकिन वर्तमान में हालात बदले हुए है। कामगार कम होने से फेक्ट्री मालिक उत्पादन की दौड़ से अपने को अलग कर चुका है जिसका सीधा असर रफ पत्थर के उठाव पर आया हुआ है। कोरोना के समय में पलायन करके ओद्योगिक इकाईयों से दूर जाने वाले श्रमिकों के लौटने का इंतजार किया जा रहा है। इस दौरान गेहूं की कटाई प्रारंभ होने से फेक्ट्री संचालक श्रमिकों के लौटने के प्रति ज्यादा आशान्वित नहीं है।

औधोगिक क्षेत्र में श्रमिकों की कमी से पॉलिश कोटा स्टोन पत्थर पर्याप्त मात्रा में तैयार नहीं हो पा रहा है।
नरेंद्र काला, अध्य्क्ष, कोटा स्टोन स्माल स्केल इंड्रस्ट्रीज एसोसिएशन

कोरोना के कारण मजदूरों का पलायन होने के बाद उनकी वापसी नही होने का सबसे प्रमुख कारण बीमारी के साथ गाँवो में फसल कटाई से रोजगार मिलना था। आने वाले दिनों में श्रमिकों की वापसी होने की उम्मीद है।
अखलेश मेड़तवाल, सचिव, केएसएसआई