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पति को था शक तो Activa में लगा दिया GPS Tracker, फिर जो दिखा उससे उड़े होश… जानें कैसे काम करती है ये तकनीक?

पति ने एक्टिवा में छिपाया GPS Tracker, होटल में पत्नी की खुली पोल। जानें कैसे काम करती है लाइव लोकेशन टेक्नोलॉजी और कितना पावरफुल है यह डिवाइस?

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भारत

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Rahul Yadav

Dec 17, 2025

How GPS Tracker Works

How GPS Tracker Works (Image: Gemini)

How GPS Tracker Works: आज का समय टेक्नोलॉजी और AI का दौर है, इससे कुछ भी छिपाना नामुमकिन है। अब किसी का पीछा करने के लिए जासूसों की फौज लगाने की जरूरत नहीं चाहिए, बस जेब में रखा स्मार्टफोन और एक छोटा सा ट्रैकिंग डिवाइस ही पूरी कुंडली खोलने के लिए काफी है।

अमृतसर से एक ऐसा ही मामला सामने आया जिसने रिश्तों के साथ-साथ टेक्नोलॉजी की ताकत को भी उजागर किया है। यहां एक पति ने अपनी पत्नी की जासूसी करने के लिए उसकी स्कूटी में चुपके से GPS ट्रैकर लगा दिया। नतीजा? पत्नी घर से बाजार जाने का बोलकर निकली थी, लेकिन पति ने अपने फोन पर उसकी लाइव लोकेशन एक होटल में ट्रेस की और वहां पहुंचकर उसे रंगे हाथों पकड़ लिया।

इस घटना के बाद हर कोई जानना चाहता है कि आखिर यह छोटा सा डिवाइस काम कैसे करता है? क्या यह इतना सटीक होता है कि गली-मोहल्ले तक का पता बता दे?

How to track scooter live location: चलिए आसान भाषा में समझते हैं यह GPS ट्रैकर आखिर काम कैसे करता है।

GPS Tracker For Scooter: स्कूटी से फोन तक… कैसे पहुंचती है खबर?

आप सोच रहे होंगे कि स्कूटी में लगा GPS कैसे बता देता है कि गाड़ी कहां खड़ी है। दरअसल, यह पूरा खेल आसमान और जमीन के तालमेल का है।

सैटेलाइट से संपर्क

GPS यानि ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम डिवाइस के अंदर एक रिसीवर होता है। जैसे ही आप गाड़ी स्टार्ट करते हैं या डिवाइस ऑन होता है, यह आसमान में मौजूद सैटेलाइट्स (उपग्रहों) से कनेक्ट हो जाता है। ये सैटेलाइट्स उसे बताते हैं कि धरती पर उसकी लोकेशन (Latitude और Longitude) क्या है।

सिम कार्ड का रोल

अब डिवाइस को तो पता चल गया कि वो कहां है, लेकिन वो यह बात आपके फोन तक कैसे पहुंचाए? यहीं काम SIM कार्ड काम आता है। हर जीपीएस ट्रैकर में एक मोबाइल सिम लगती है। डिवाइस इंटरनेट के जरिए वह लोकेशन डेटा कंपनी के सर्वर पर भेजता है और वहां से वह जानकारी सीधे आपके मोबाइल ऐप पर आ जाती है। यह सब कुछ मिली-सेकंड्स में होता है।

लाइव ट्रैकिंग क्या है?

अमृतसर वाले मामले में पति ने लाइव लोकेशन देखी थी। इसका मतलब है कि जैसे-जैसे पत्नी की एक्टिवा सड़क पर आगे बढ़ रही थी, पति के फोन में मैप पर बना निशान भी आगे बढ़ रहा था। अच्छे GPS ट्रैकर्स हर 5 या 10 सेकंड में लोकेशन रिफ्रेश करते हैं, जिससे एकदम सटीक जानकारी मिलती है।

जियो-फेंसिंग

इन डिवाइसेज का सबसे खतरनाक फीचर जियो-फेंसिंग है। इसमें आप मैप पर एक दायरा (Zone) बना सकते हैं। मान लीजिए पति ने घर के आसपास का दायरा सेट कर दिया। अब जैसे ही स्कूटी उस दायरे से बाहर निकलेगी, पति के फोन पर तुरंत अलर्ट (घंटी) बज जाएगी कि गाड़ी जोन से बाहर जा चुकी है।

कहां छिपाया जाता है GPS ट्रैकर?

बाजार में मिलने वाले आधुनिक GPS ट्रैकर्स मैगनेट वाले होते हैं। अमृतसर की घटना में एक्टिवा का इस्तेमाल हुआ था। एक्टिवा या बाइक में इसे छिपाना बहुत आसान है।

इन्हें आसानी से स्कूटी के किसी भी लोहे वाले हिस्से, सीट के नीचे या डिक्की में छिपाया जा सकता है। कई बार इन्हें सीधे गाड़ी की बैटरी से भी कनेक्ट कर दिया जाता है ताकि बार-बार चार्जिंग का झंझट न रहे और ट्रैकिंग लगातार चलती रहे।

कितने में आता है ये GPS ट्रैकर?

हैरानी की बात यह है कि जिस टेक्नोलॉजी ने सालों पुराना रिश्ता तोड़ दिया, वह बेहद सस्ती है। ऑनलाइन और ऑफलाइन मार्केट में ये डिवाइसेज 500 रुपये से लेकर 2000 रुपये तक आसानी से उपलब्ध हैं। इनका असली मकसद गाड़ियों को चोरी होने से बचाना था, लेकिन अब इनका इस्तेमाल भरोसे को परखने के लिए किया जा रहा है।