scriptइस भारतीय की तकनीक मिली सेकण्ड्स में पकड़ लेती है फेक न्यूज | Indian American Scientist Discovers New Way to Filter Fake News | Patrika News

इस भारतीय की तकनीक मिली सेकण्ड्स में पकड़ लेती है फेक न्यूज

locationजयपुरPublished: Jan 03, 2021 07:26:19 pm

Submitted by:

Mohmad Imran

राइस यूनिवर्सिटी के कम्प्यूटर साइंटिस्ट अंशुमाली श्रीवास्तव ने सोशल मीडिया कंपनीज के प्लेटफॉर्म से फेक न्यूज के प्रसार को रोकने के लिए बनाया है यह सॉफ्टवेयर

इस भारतीय की तकनीक मिली सेकण्ड्स में पकड़ लेती है फेक न्यूज

इस भारतीय की तकनीक मिली सेकण्ड्स में पकड़ लेती है फेक न्यूज

अमरीका के टेक्सास स्थित राइस यूनिवर्सिटी में भारतीय मूल के शोधकर्ता अंशुमाली श्रीवास्तव ने फेक न्यूज से लड़ने के लिए एक नया सॉफ्टवेयर विकसित किया है। मशीन लर्निंग तकनीक का उपयोग कर कम्प्यूटर वैज्ञानिक अंशुमाली ने ऐसा तरीका विकसित किया है जिससे सोशल मीडिया कंपनी अपने प्लेटफॉर्म से फेक न्यूज के ऑनलाइन प्रसार को रोक सकेंगी। श्रीवास्तव ने ब्लूम फिल्टर उपकरण के प्रदर्शन में सुधार कर स्मार्ट मशीन लर्निंग एल्गोरिद्म बनाई है। गौरतलब है कि फर्जी समाचारों, सूचनाओं, किस्से-कहानियों और कम्प्यूटर वायरस के परीक्षण डेटाबेस के रूप में ब्लूम फिल्टर उपकरण को 50 सालों से इस्तेमाल किया जा रहा है। अंशुमाली श्रीवास्तव ने सांख्यिकी में स्नातक छात्र जेनवेई डाई के साथ मिलकर अपने एडाप्टिव लर्नड ब्लूम फिल्टर बनाया है। इस नए संस्करण में 50 प्रतिशत से भी कम मेमोरी की आवश्यकता होती है।
उन्होंने एडप्टिड लर्नड ब्लूम फिल्टर्ड (एडीए-बीएफ) नाम का एक नया फिल्टर बनाया है। उनका यह फिल्टर मिलि सेकंड्स में बता सकता है कि कोई ट्वीट फेक या गलत सूचनाएं लिए हुए है या नहीं। श्रीवास्तव ने कहा कि अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव के समय वे लगभग 10 हजार ट्वीट प्रति सेकंड की गति से कर रहे थे। उन्होंने फेक न्यूज को पकडऩे वाले ब्लूम फिल्टर की दक्षता में सुधार कर एडाप्टिव लर्नड ब्लूम फिल्टर बनाया है। यह लगभग छह ट्वीट प्रति मिली सेकंड की दर से फेक पोस्ट पकड़ लेता है।
श्रीवास्तव का कहना है कि यदि आपकी फाल्स-पॉजिटिव रेट 0.1 फीसदी के बराबर है, तब भी आप गलती से 10 ट्वीट प्रति सेकंड या 8 लाख से अधिक ट्वीट प्रतिदिन फ्लैग कर रहे हैं। यही वजह है कि परंपरागत आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस आधारित फिल्टर फर्जी खबरों को रोक पाने में सफल नहीं होते। ट्विटर कभी इस बात का खुलासा नहीं करेगा कि उसने 1970 में बने एक कम मेमोरी तकनीक को ऐसे महत्वपूर्ण काम पर क्यों रखा है। न ही वह यह बता सकता है कि यह कितना सटीक है। फेक न्यूज और इन्फॉर्मेशन को रोकने के लिए श्रीवास्तव और डाई ने एक नए सॉफ्टवेयर को न्यूरल इन्फॉर्मेशन प्रोसेसिंग सिस्टम (न्यूरल पीएस2020) पर ऑनलाइन-ओनली 2020 सम्मेलन में प्रस्तुत किया था।
श्रीवास्तव का कहना है कि ट्विटर ट्वीट्स को फिल्टर करने के लिए संभवत: ब्लूम फिल्टर का इस्तेमाल करते हैं। यही वजह है कि इस 1970 में विकसित तकनीक के कारण आज के त्वरित सोशल मीडिया कन्टेंट को फिल्टर करने में परेशानी आ रही है। यह तकनीक हमेशा सटीक परिणाम नहीं देती। वह अपने डेटाबेस से मेल न खाने वाले किसी भी फेक ट्वीट या पोस्ट को सही बताकर ऑनलाइन कर सकता है। पिछले तीन वर्षों के भीतर, शोधकर्ताओं ने ब्लूम फिल्टर को की दक्षता में सुधार करने के लिए मशीन लर्निंग का उपयोग करने के लिए विभिन्न योजनाओं की पेशकश की है। जब लोग मशीन लर्निंग मॉडल का उपयोग करते हैं, तो वे बहुत उपयोगी जानकारी बर्बाद करते हैं जो मशीन लर्निंग मॉडल से आ रही है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो