रिपोर्ट के अनुसार चीन ने अपने देश की टेक कंपनियों से बड़े पैमाने पर ‘शासन का एक ऐसा नया मॉडल बनाने की मांग की है जहां वह ‘मॉस सर्विलांस टेक्नोलॉजी और इंटरनेट’ से मिलने वाली सूचना एवं सामग्री तक लोगों की पहुंच को नियंत्रित कर सके।’ ताकि इसके माध्यम से वह ‘डिजिटल डोमेन’ पर काबिज हो शासन का एक नया मॉडल खड़ा कर सके। गौरतलब है कि चीन में अमरीकी सर्च इंजन गूगल (Google), सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर (twitter) और फेसबुक (facebook) प्रतिबंधित हैं। रिपोर्ट के अनुसार बीते कुछ सालों से चीन ने देश और विदेश में प्रौद्योगिकी में खरबों रुपए का निवेश किया है जो उसे ज्यादा नियंत्रण देता है। इसमें फेस रिकग्निशन (face recognition) तकनीक और अन्य निगरानी तकनीक शामिल हैं। यह तकनीक अब वेनेजुएला, उज्बेकिस्तान, जिम्बाब्वे जैसे दुनिया भर के अनेक देशों को निर्यात की जा रही है। गौरतलब है कि चीन में शी जिनपिंग (Xi Jinping) की कम्यूनिस्ट पार्टी (Chinese Communist Party) पश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र में बसे मुस्लिम अल्पसंख्यक आबादी की डिजिटल निगरानी का विस्तार कर रही है। इतना ही नहीं यहां के स्थानीय लोगों के डीएनए नमूने, फिंगरप्रिंट्स व उंगलियों के निशान, आवाज के नमूने और ब्लड ग्रुप जैसे डेटा एकत्र कर रही है।
अमरीकी वित्त विभाग ने हाल ही 11 चीनी कंपनियों को ब्लैकलिस्ट किया है जिससे अमरीका में चीन की प्रतिबंधित कंपनियों की संख्या अब 50 हो गई है। रिपोर्ट के जरिए अमरीका और उसके सहयोगी देशों से चीन द्वारा डिजिटल प्रौद्योगिकियों का गलत उपयोग करने के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है। कोरोनोवायरस में संक्रमण की जांच की आड़ में चीन ने बड़ी मात्रा में अपने नागरिकों का डेटा संग्रह किया है। इसका उपयोग सरकार अपने आलोचकों की पहचान करने के लिए कर सकती है। हाल ही हांगकांग में चीन की ओर से पारित नया राष्ट्रीय सुरक्षा कानून इसी दबंगई की एक बानगी है।
ह्यूमन राइट्स वॉच की चीन की वरिष्ठ शोधकर्ता माया वांग का कहना है कि चीनी सरकार मानव इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी मानव निगरानी पर काम कर रही है। इससे पहले इतिहास में किसी भी देश की सरकार इतने व्यापक स्तर पर लोगों के बारे में इतनी गहन और गोपनीय जानकारियां नहीं थीं। और यह सब वे डेटा की शक्ति से कर रहे हैं। 5जी तकनीक की आड़ में वे हुआवेई और सोशल मीडियाऐप टिकटोक के जरिए चीन अपने डिजिटल अधिनायकवाद का लगातार विस्तार कर रहा है। वहीं मेनेंडेज की रिपोर्ट के अनुसार ट्रम्प प्रशासन ‘साइबर स्पेस’ के लिए चीन से उत्पन्न खतरे का पर्याप्त रूप से जवाब देने में विफल रहा है।