सालों की मेहनत का नतीजा
जीयस ने कमरे के तापमान की सुपरकंडक्टिविटी को कमरे के तापमान के अनुसार बनाने में सुपरकंडक्टर्स जैसे कॉपर ऑक्साइड (Copper Oxide) एवं लोहे की प्रचुरता वाले रसायनों (Iron Based Chemicals) की खोज और उनका विभिन्न सामग्रियों के साथ प्रयोग करने में वर्षों प्रयेाग किए हैं। लेकिन उन्हें सफलता हाइड्रोजन (Hydrogen) के साथ प्रयोग करने पर सफलता मिली। जीयस ने बताया कि हाइड्रोजन यूं तो सबसे हल्का पदार्थ है लेकिन हाइड्रोजन से बने पदार्थ प्रकृति के सबसे मजबूत तत्वों में से एक हैं। उन्होंने सुपरकंडक्टर को हाइड्रोजन, कार्बन और सल्फर के मिश्रण से बनाया है। जिसका इस्तेमाल डायमंड-एन्विल सेल नामक हाइ-प्रेशर रिसर्च डिवाइस में कार्बोनेस सल्फर हाइड्राइड को संश्लेषित करने के लिए किया जाता है। इसका मतलब हुआ कि उन्होंने हाइड्रोजन, कार्बन और सल्फर के मिश्रण को दो डायमंड्स के बीच रखकर इतना दबाव डाला कि वह एक सुपरकंडक्टर में परिवर्तित हो गया। कार्बनसाइड सल्फर हाइड्राइड में लगभग 14.5 डिग्री सेल्सियस पर और लगभग 39 मिलियन पीएसआई के दबाव में सुपरकंडक्टिविटी पैदा हुई।
डच भौतिक विज्ञानी ने खोजा था सुपरकंडक्टर
सुपरकंडक्टिविटी की खोज सर्वप्रथम 1911 में डच भौतिक विज्ञानी हेइके कामेरलिंगह ओनेस ने एक पारा वायर में की थी, जो कि शून्य से 4.2 डिग्री ऊपर था। 1957 में, भौतिक विज्ञानी जॉन बार्डीन, लियोन कूपर और रॉबर्ट स्क्रीफर ने इसे और विकसित किया। शोध के सह-लेखक और नेवाडा विश्वविद्यालय, लास वेगास के अशकन सलामत का कहना है इस नई तकनीक से हम बैट्री पर अपनी निर्भरता को खत्म कर सकते हैं। यह सामग्री एक कुशल पावर ग्रिड है जो आज उपयोग में ली जा रही तारों, शक्तिशाली मैग्लेव ट्रेनों या भविष्य की परिवहन जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। इतना ही नहीं ये बेहतर एमआरआइ इमेजिंग प्रौद्योगिकियों में प्रतिरोध के कारण होने वाले बिजली के नुकसान को कम या खत्म कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए टीम को डायमंड अन्विल सेल के अंदर यह सामग्री बनाने के लिए आवश्यक दबाव विकसित करने की तकनीक बनानी होगी। शोधकर्ताओं का कहना है कि कम दबाव पर सुपरकंडक्टिंग सामग्री का उत्पादन करने का यह तरीका उपयोगी है लेकिन इसमें अभसी और सुधार की गुंजाइश है।