
surendra pal
संदीप पाल
लखनऊ. "डायरेक्शन अपने बस की बात नहीं। एक्टिंग की दुनिया में रहना ज्यादा ठीक है", यह कहना है महाभारत के द्रोणाचार्य व शक्तिमान के तमराज किलविश का । एक खास बातचीत में महाभारत के द्रोणाचार्य की भूमिका अदा करने वाले एक्टर/प्रोडुसर सुरेंद्र पाल सिंह ने कहा कि जन्म उत्तर प्रदेश में नावाबों की नगरी कहे जाने वाले लखनऊ में वर्ष 25 सितम्बर 1953 में हुआ था। सुरेन्द्र ने 1984 में हिंदी फिल्मों से अपने एक्टिंग कॅरियर की शुरुआत की थी, जिनमें खुदा गवाह, शहर, जोधा अकबर आदि फिल्में शामिल हैं।
सुरेन्द्र टीवी की दुनिया के कई लोकप्रिय शो का हिस्सा रह चुके हैं जिनमें, शक्तिमान, महाभारत, वो रहने वाली महलो की, लेफ्ट राईट लेफ्ट, विष्णु पुराण, देवो के देव-महादेव आदि शामिल हैं। इसके अलावा सुरेन्द्र पाल सिंह ने डायरेक्शन के क्षेत्र में भी अपनी किस्मत अजमाई और एक भोजपुरी फिल्म ‘भऊजी की सिस्टर’ बनाई लेकिन सुरेन्द्र को जल्द ही यह बात समझ में आ गई कि डायरेक्शन उनके बस की बात नहीं है। अतः उन्होंने अपनी एक्टिंग की दुनिया में ही रहना ज्यादा उचित समझा और फिर कभी उधर का रूख नहीं किया।
1- क्या सामाजिक कार्या में रूचि रहते है?
- सामाजिक कार्यां में जाने का तो बहुत मन करता है और जब मैं शूटिंग व्यस्त नहीं होता हूं उस दौरान कोई सामाजिक कार्यक्रम होता है तो मैं जरूर पहुंचता हूं। जैसे कि पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता अभियान आदि।
2- कौन से खेल में आपको विशेष कर रूचि है?
- मेरी पढ़ाई में विशेष रूचि नहीं थी लेकिन खेलकूद का शौक मुझे बचपन से ही था। आज भी मैं शूटिंग पर जाने से पहले बैडमिंटन या स्वीमिंग करता हूं। खेल में भारत में साइना नेहवाल, पी वी सिंघू, अभिनव बिन्द्रा व भारतीय किक्रेट, हॉकी टीम खिलाड़ी अपनी विजयी पताका फहराने में पीछे नहीं है। एक समय था जब देश आलम्पिक में एक पदक के लिए तरसता था। आज तमाम खेलों में मैडल देश की झोली में गिरते हैं। मुझे भारतीय होने पर गर्व है और मैं सोचता हूं कि प्रत्येक व्यक्ति को खेल को अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए। मुझे खेल प्रतियोगिताओं में जाना व देखना अच्छा लगता है।
3- विकास के मामले में भारत ने कितनी प्रगति की?
- सुरेन्द्र ने कहा कि देश में 60 सालों में गति देखी, प्रगति नहीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी देश को आगे बढ़ाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं लेकिन कुछ लोग टांग आडाने की अपनी आदतों से बाज नहीं आ रहे हैं। यूं कहे कि उन्हे तरक्की पसंद नहीं।
4- आप देश में राजस्थानी फिल्मों को भविष्य कैसा पाते हैं?
- राजस्थान में साहित्य व संस्कृति सब कुछ अच्छा है, फिल्म के लिए अपार संभावनायें हैं लेकिन साधन उपलब्ध नहीं होने के कारण फिल्में हिट नहीं हो पाती हैं। फिर भी हम पॉजिटिव हैं। हिन्दी फिल्में हिट क्यों नहीं हो रहीं हैं। हिन्दीं फिल्मों में वेस्टर्न कल्चर ज्यादा दिख रहा, हॉलीबुड की नकल हो रही, बाहुबली हिट हुई, क्योंकि वह ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है। राजस्थानी फिल्में अब बन नहीं रही, इसलिए लोगों का रूझान कम हो गया है, मैं पाली से हूं। मन करता है कि रास्थानी फिल्में भी साउथ जैसे हिट हों, राजस्थानी संस्कृति को बढ़ावा मिले। इसी कारण चुनाव किया।
5- टापको फिल्म इंडस्ट्री में पैर जमाने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ा था?
- मुझे सिने जगत/फिल्म इंडस्ट्री में आने के लिए ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा। क्योंकि जब मैं मुम्बई आया तो पास ही में पृथ्वी थियेटर था और हम थियेटर करते थे। वही मेरी मुलाकात सुनील दत्त जी से हुई, उन्होने कहा कि तेरी आवाज में दम है और कुछ-कुछ अमिताभ बच्चन से मिलती है। उन्होने यह भी कहा कि अमिताभ बच्चन मेरे पास इंदिरा गांधी का लेटर लेकर आया था। खैर उसके बाद अपनी दुकान चल पड़ी। उस समय थियेटर में कुछ काम मिल जाता था और तेरह, चौदह रूपये मिलते थे। हम उसी में खुश हो जाया करते थें। फिल्म इंडस्ट्री में मुझे सुनील दत्त साहब ने मेरी मदद की।
6- क्या एक्टरों में भी कुछ बदलाव देखने को मिल रहा है?
- सुनील दत्त, अशोक कुमार (दादा मुनी), धर्मेन्द्र, प्राण, अजीत, विनोद खन्ना, शुत्रहन सिंहा जैसे सज्जन, सरल, नेक दिल इंसान अब फिल्म इंडस्ट्री में नहीं रहे। मैंने हमेशा इनके जैसा ही बनना चाहा। आज के एक्टरों के लिए रूपया-पैसा ही माई-बाप रह गया है और सभी उसकी के पीछे भाग रहे है। पुराने एक्टर जैसी बात फिल्म इंडस्ट्री में दिखाई नही पड़ती। बाउंसर रखकर चलने का चलने काफी आगे निकल आया है लेकिन मुझे बाउंसर का शौक नहीं।
7- क्या आज एक्टिंग के दौर बदल चुका है?
- आज के मैथेड एक्टिंग का दौर समाप्त हो चुका है और नेच्यूरल एक्टिंग/स्वाभाविक मंचन हो रहा है। नये-नये कलाकार इंडस्ट्री में आ रहे हैं लेकिन वही टिकेगा जो मेहनत करेगा। सिफारिश के दम पर आने वालों का हाल वैसा होगा। जैसे कि ‘‘चार दिन की चांदनी, फिर अंधेरी रात’’। पैरासूट से उतने वाले ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाते।
8- क्या आपको लखनऊ याद आता है?
-मुम्बई हमारी कर्मभूमि बनकर रह गई है। वैसे तो हम ठहरे बनारसी बाबू लेकिन मैं लखनऊ पैदा हुआ। मेरे पिता जी नवाबों के शहर में डीएसपी थे। उस दौरान उनका तबादला हुआ करता था और हम कभी कानपुर, बरेली तो कभी मुरादाबाद में उनके साथ रहते थे। कहतें है कि हमारे फोर फादर राजस्थान, पाली के मडवार के थे। जो कि ब्रिटिश काल में वहां से माइग्रेट कर गये थे। मुझे लखनऊ तहजीब और वहां का खानपान हमेशा आकर्षित करता है। अब तो बस शूटिंग व सामाजिक कार्यां से ही लखनऊ आना जाना होता है। लेकिन बनारस में आज भी हमारी पैतृक सम्पति है जिसे हमारे रिश्तेदारों में बांट दिया गया था। वह लोग अब खेतीबाड़ी करते हैं।
9- फिल्म इंडस्ट्री आवाज और सुन्दरता का कितना महत्व है?
- वह कहते हैं कि इंसान रहे न रहे लेकिन उसकी आवाज अमर रहती है और यही उसकी पहचान है। यह बात इंडस्ट्री में आवाज का जादू भी लोगों सिर चढ़कर बोलता है। चाहे वह आवाज अमिताभ बच्चन, अम्बरीशपुरी ओम पुरी, रजा मुराद, शाहरूख खान, मुकेश खन्ना, हरिश भिवाड़ी (महाभारत में मैं समय हूं), व मुझे आवाज डाबिंग के लिये बुलाया जाता है। फिल्म इंडस्ट्री में तमाम ऐसे कलाकार भी भले ही देखने में स्मार्ट नहीं थे लेकिन उनकी आवाज में वह जादू था। जिसकी बदौलत आज भी लोग उन्हे याद करतें है। अगर चेहरा सुन्दर हैं और आवाज में दम है तो फिर सोने पर सुहागा, लेकिन आज के दौर में हम कलाकारों की आवाज की जरूरत कार्टून में जान डालने के लिए भी पड़ती है, जैसे शक्ति कूपर, सनी, रितिक, सैफ, सुनील शेट्टी व कुछ अन्य कलाकरों की आवाज।
10- ऐसा कोई किरदार जिसे निभाने की हसरत अभी आपमें बाकी हो।
- मैंने लगभग 200 फिल्म में अलग-अलग किरदार निभाया है। ऐसा कोई किरदार बचा नहीं जिसे निभाने की मेरे अन्दर हसरत बाकी हो। मैं कभी भूमिकाओं में नही बंधा यही कारण है कि मैं सनी, रितिक, बॉबी जैसे कलाकारों के साथ बिना किसी असहजता के काम कर सका। टी वी सीरियल एक फूल टाइम जॉब है और मैं इसकी के चलते ज्यादा फिल्मे नहीं कर सकता, लेकिन काम में मेरे पास कमी नही और मैं लगभग 500 से अधिक सीरियल में काम कर चुका हूं। लेकिन मुझे पश्चिम सभ्यता से कभी भी लगाव नहीं रहा है। तमाम किरदार को जिया चाहे वह द्रोणाचार्य का हो या भीष्म, रावण, किल्विश का। मुझे अपनी भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता से विशेष लगाव है और मैं उस पर आधारित फिल्मों और सीरियल में काम करना अधिक पसंद करता हूं। इसमें मुझे बहुत आनंद आता है।
11- लॉक डाउन में आपका समय कैसे पास होता है?
- भारत और भारतवासियों को ध्यान में रखते हुये, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 21 दिनों का लॉक डाउन भारत में किया गया है। खाली समय में मैं किताबे पढ़ने और अपनी संस्कृति, सभ्यता से जुडे़ कार्याक्रमां के अलावा कॉमेडी विद कपिल शर्मा देखना पसंद करता हूं तथा योगा व अन्य कसरतें कर समय को मुस्कुराते हुये व्यतीत कर रहा हूं।
मैं अपने परिवार के साथ घर में बहुत खुश हूं। मेरे दो बेटे और एक बेटी है। बड़ा बेटे एक्टर बनेगा और छोटा अभी पढ़ाई कर रहा है जबकि बेटी फिटनेस एक्सपर्ट है। हमसब मौजा मस्ती में समय बीता रहे हैं।
समय बहादुरी दिखाने का नही। घरों में दुबक के बैठे रहने का है-
उन्होंने कहा कि यह समय बहादुरी दिखाने का नहीं है। घरों में दुबक के बैठे रहने का है। शक्मिन के किल्विस की तरह कोरोना महामारी हमारे देश के लोगों के अंधकार में ले जाना चाहती है। जिस प्रकार रामायण और महाभारत में असत्य पर सत्य की विजय हुई थी। ठीक ऐसा ही भारत भी कोरोना पर जीत दर्ज करेगा। हमारे डाक्टर, पुलिस, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, सामाजिक संगठनों के अलावा प्रशानिक योद्धा अपनी जान की परवाह नहीं करते हुये, कोरोना से लोहा ले रहे है, जबकि हमारे चिकित्सा व्यावस्था यूरोपीय देशों की तुलना में काफी पिछड़ी हुई है। बावजूद इसके वह डटे हुये है। उन्हे विश्वास है कि निश्चय ही हम विजयी होंगे लेकिन यह तभी मुमकिन है जब आप और हम अपने घरों में रहेंगे। सफाई रखें। मास्क जरूर पहनें। हमें अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व सरकार पर विश्वास करना चाहिए। लॉक डाउन 21 दिनां का हो या 42 दिनां का जब वह देश के आर्थिक नुकसान की परवाह न करते हुये देश व देशवासियों के बारे में चिन्तित हैं। ऐसे में हमारा भी फर्ज बनता है कि हम उनकी बात को अपील पर अमल करें और देश हित व अपने तथा अपने परिजनों के हित में घरों में रहें। सुरेन्द्र ने कहा कि योगी लोग जब जब कमान संभालते हैं। तब तब विजयी श्री उनके कदम चूमती है। इसलिए डरने के बजाये। धैर्य दिखाने की जरूरत है। यह मान लें कि हम रामायण के राम, सीता और लक्ष्मण तथा महाभारत के पाण्डवों की तरह वनवास पर हैं। रामायण में 14 वर्ष का तथा महाभारत में 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास दिया गया था। हमें तो बस 21 दिनां या 42 दिनों तक ही घरों परिजनों के साथ रहना है।
वह कहते हैं कि आज विश्व की महाशक्ति कहलाने वाले देश भारत की तरफ टकटकी लगाये देख रहे हैं और मदद की गुहार लगा रहे है कि भारत उन्हे हाईड्रो क्वींस क्लोरीन दवा मुहैया करा दे। जिससे वह अपने देशवासियों की जान कोरोना के कहर से बचा सकें। कोरोना के विकराल रूप के पीछे तब्लीगी जमात जिम्मेदार। कोरोना महामारी ने भारत में जमातियों की वजस से विकराल रूप ले लिया। ऐसे लोग कतई देशभक्त नहीं हो सकते हैं। इनके खिलाफ कठोर से कठोर कार्यवाही होनी चाहिए। जो एक मिशाल बने। इन जमातियों ने देश के लोगों की जान खतरे में डालने के साथ-साथ देश को भी आर्थिक क्षति पहुंचाने का काम किया। लेकिन महाभारत सीरियल में जितने में मेरे शिष्य थे वे सभी आज भी मेरा उतना ही सम्मान करते हैं। जितना शूटिंग के दौरान करते थे। देश में लॉक डाउन है और मेरे सभी शिष्य लॉक डाउन में अपने घरों में रहते हुये कोरोना के खिलाफ जंग जारी रखी है।
..जैसा संदीप पाल को दूरभाष पर बताया.
Updated on:
23 Apr 2020 10:16 pm
Published on:
23 Apr 2020 07:30 pm
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