
थोक दवा कारोबार पर कसने की तैयारी, शासन को भेजा गया अहम प्रस्ताव (फोटो सोर्स : Ritesh Singh )
Codeine Syrup Case: लखनऊ में कोडीन युक्त कफ सिरप से जुड़े हालिया कांड के बाद खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (FSDA) पूरी तरह सतर्क हो गया है। इस मामले ने दवा आपूर्ति श्रृंखला की निगरानी और थोक औषधि लाइसेंस प्रणाली की खामियों को उजागर कर दिया है। इसके मद्देनज़र FSDA ने शासन को एक विस्तृत और अहम प्रस्ताव भेजते हुए दवा कारोबार को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की सिफारिश की है।
FSDA ने अपने प्रस्ताव में दवा के सभी थोक प्रतिष्ठानों की जीओ टैगिंग अनिवार्य करने की सिफारिश की है। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि थोक दवा गोदाम वास्तव में पंजीकृत स्थान पर ही संचालित हो रहे हैं या नहीं। अधिकारियों का मानना है कि जीओ टैगिंग से फर्जी पते, कागजी गोदाम और अवैध भंडारण पर प्रभावी रोक लगेगी।
प्रस्ताव में थोक औषधि लाइसेंस प्रणाली को पूरी तरह पारदर्शी बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। FSDA का कहना है कि वर्तमान व्यवस्था में कई बार लाइसेंस तो जारी हो जाते हैं, लेकिन उनके वास्तविक संचालन की निगरानी कमजोर रहती है। इससे नशीले और नियंत्रित औषधियों की अवैध आपूर्ति का खतरा बना रहता है।
FSDA ने शासन से यह भी अनुरोध किया है कि थोक दवा लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया को और सख्त किया जाए। प्रस्ताव के अनुसार लाइसेंस जारी करने से पहले आवेदक की पूरी पृष्ठभूमि, व्यापारिक इतिहास और पूर्व रिकॉर्ड की गहन जांच अनिवार्य की जाए।
कफ सिरप कांड से सबक लेते हुए FSDA ने थोक दवा प्रतिष्ठानों की भंडारण क्षमता का पूरा रिकॉर्ड रखने की सिफारिश की है। इसमें यह स्पष्ट रूप से दर्ज हो कि किसी गोदाम में कितनी मात्रा में दवाओं का भंडारण किया जा सकता है और वास्तव में कितना स्टॉक मौजूद है।
FSDA ने थोक दवा कारोबार में खरीद-फरोख्त के संपूर्ण रिकॉर्ड को अनिवार्य करने की बात कही है। प्रस्ताव में उल्लेख किया गया है कि प्रत्येक दवा की खरीद, बिक्री, आपूर्ति और स्टॉक मूवमेंट का डिजिटल रिकॉर्ड रखा जाए, ताकि किसी भी संदिग्ध गतिविधि की तुरंत पहचान की जा सके।
कोडीन युक्त कफ सिरप के दुरुपयोग को रोकने के लिए FSDA ने इसकी बिक्री पर विशेष निगरानी व्यवस्था लागू करने का सुझाव दिया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि ऐसी दवाओं की बिक्री केवल निर्धारित शर्तों और पुख्ता दस्तावेजों के आधार पर ही की जाए।
FSDA ने मुख्यमंत्री के निर्देशों के अनुपालन में केंद्र सरकार से स्पष्ट और सख्त गाइडलाइन जारी करने की मांग की है। प्रस्ताव में कहा गया है कि केंद्रीय स्तर पर एकरूप नीति बनने से राज्यों को दवा नियंत्रण में अधिक मजबूती मिलेगी।
प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि थोक दवा लाइसेंस के लिए नियुक्त टेक्निकल पर्सन के अनुभव प्रमाण पत्रों का विधिवत सत्यापन किया जाना चाहिए। कई मामलों में फर्जी या अप्रमाणित अनुभव के आधार पर लाइसेंस लिए जाने की आशंका जताई गई है।
FSDA ने सिफारिश की है कि लाइसेंस जारी करने से पहले और बाद में ड्रग इंस्पेक्टर द्वारा भौतिक सत्यापन अनिवार्य किया जाए। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि दवा प्रतिष्ठान सभी मानकों का पालन कर रहे हैं या नहीं।
अधिकारियों का कहना है कि कोडीन युक्त कफ सिरप कांड ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दवा कारोबार में जरा-सी लापरवाही भी समाज के लिए गंभीर खतरा बन सकती है। नशीली दवाओं का दुरुपयोग युवाओं और समाज दोनों के लिए घातक है।
विशेषज्ञों और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े लोगों का मानना है कि FSDA का यह प्रस्ताव यदि लागू होता है, तो दवा आपूर्ति श्रृंखला में पारदर्शिता बढ़ेगी और अवैध कारोबार पर प्रभावी अंकुश लगेगा। फिलहाल FSDA द्वारा भेजे गए प्रस्ताव पर शासन स्तर पर विचार किया जा रहा है। उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही इस पर ठोस निर्णय लिया जाएगा और आवश्यक नियमावली लागू की जाएगी। FSDA अधिकारियों का कहना है कि यह पूरी कवायद जनहित में की जा रही है। आम जनता को सुरक्षित और वैध दवाएं उपलब्ध कराना शासन और प्रशासन की सर्वोच्च प्राथमिकता है।
Updated on:
30 Dec 2025 01:33 pm
Published on:
30 Dec 2025 01:25 pm
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