scriptइलाहाबाद हाईकोर्ट ने वृद्धाश्रम से वृद्ध दंपति को निकाले जाने पर रोक लगाई | allahabad high court bans eviction of old couple from old age home | Patrika News

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वृद्धाश्रम से वृद्ध दंपति को निकाले जाने पर रोक लगाई

locationलखनऊPublished: Oct 05, 2021 03:05:24 pm

Submitted by:

Mahima Soni

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसले में एक वृद्ध जोड़े को वृद्धाश्रम से बेदखल करने पर रोक लगा दी है। अदालत ने फैसला सुनाया कि विवाद के संबंध में सिविल जज (जूनियर डिवीजन) की अदालत के समक्ष लंबित एक मुकदमे के निपटारे तक दंपति को वृद्धाश्रम से बेदखल नहीं किया जाएगा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वृद्धाश्रम से वृद्ध दंपति को निकाले जाने पर रोक लगाई

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वृद्धाश्रम से वृद्ध दंपति को निकाले जाने पर रोक लगाई

लखनऊ. इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसले में एक वृद्ध जोड़े को वृद्धाश्रम से बेदखल करने पर रोक लगा दी है। यह वृद्धाश्रम आदिलनगर में गायत्री परिवार ट्रस्ट के प्रबंधन द्वारा समर्पण के नाम से लखनऊ नगर निगम द्वारा पट्टे पर दी गई जमीन पर चलाया जाता है।
अदालत ने फैसला सुनाया कि विवाद के संबंध में सिविल जज (जूनियर डिवीजन) की अदालत के समक्ष लंबित एक मुकदमे के निपटारे तक दंपति को वृद्धाश्रम से बेदखल नहीं किया जाएगा।

न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की पीठ ने 20 अक्टूबर, 2020 को एक अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (एडीजे) द्वारा जारी आदेश के खिलाफ दंपति द्वारा दायर एक रिट याचिका पर निर्देश पारित किया, जिसमें उन्होंने सिविल जज (जूनियर) की अदालत के आदेश को रद्द कर दिया था। जज ने वृद्ध दंपत्ति को बेदखली से सुरक्षा प्रदान की थी।
एडीजे के आदेश के खिलाफ दायर याचिका को स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा कि सिविल जज की अदालत द्वारा जारी आदेश इस शर्त के साथ बहाल किया जाता है कि याचिकाकर्ता (दंपति) वृद्धाश्रम में अपने कब्जे के लिए मासिक शुल्क का भुगतान करेंगे, जिसमें प्रति माह 12,000 रुपये की अस्थायी दर पर भोजन और बिजली के लिए शुल्क शामिल हैं।
यह भी पढ़ें- Shardiya Navratri 2021: नवरात्र में देवी की भक्ति पर महंगाई का तड़का

राशि प्रत्येक माह के अंत में चेक द्वारा देय होगी जिसके लिए प्रबंधन एक रसीद जारी करेगा। रिपोर्टों के अनुसार, दंपति को उनके ही बच्चों ने 2016 में छोड़ दिया था। उन्होंने आश्रय के लिए समर्पण वृद्धाश्रम का दरवाजा खटखटाया था।
आवश्यकता के अनुसार, उन्होंने सुरक्षा राशि के रूप में 75,000 रुपये जमा किए थे और मासिक शुल्क का भुगतान करने के लिए सहमत हुए थे। बाद में 2019 में, दंपति ने सिविल कोर्ट का रुख किया और कहा कि वृद्धाश्रम का प्रबंधन उन्हें अवैध रूप से बेदखल करने पर अड़ा हुआ है। हालांकि, प्रबंधन ने वृद्ध दंपत्ति, विशेषकर महिला के बुरे व्यवहार को बेदखली का कारण बताया।
प्रबंधन ने आगे कहा कि दंपति की तीन बेटियां शहर में ही रहती हैं और इसलिए वे उनके साथ रह सकते हैं।

सिविल जज ने माता-पिता को सुरक्षा प्रदान की थी, लेकिन अपील में एडीजे ने सिविल जज के आदेश को खारिज कर दिया। अब, उच्च न्यायालय ने दीवानी न्यायाधीश के लिए कुछ अतिरिक्त निर्देशों के साथ दीवानी न्यायाधीश के आदेश को बहाल कर दिया है।
यह भी पढ़ें- सपेरों की गुहार ‘या तो सांप का खेल दिखाने से प्रतिबंध हटाओ या फिर रोजगार दो योगी सरकार’
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो