राजनारायण बनाम उत्तर प्रदेश के नाम से यह मुकदमा जाना जाता है। इस मामले में तब सख्त जज माने जाने वाले जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने अपना निर्णय सुनाया था। उसमें इंदिरा गांधी को रायबरेली से सांसद के रूप में चुनाव को अवैध करार दे दिया गया था। हुआ यह था कि मार्च 1971 में आम चुनावों में कांग्रेस को कुल 518 सीटों में से 352 सीटें मिली थीं। इंदिरा गांधी यह चुनाव अपने सलाहकार और हिंदी के प्रसिद्ध कवि श्रीकांत वर्मा द्वारा रचे गए गरीबी हटाओ के नारे से प्रचंड बहुमत से जीती थीं। इंदिरा गांधी रायबरेली से एक लाख से भी ज्यादा वोटों से जीतीं थीं। लेकिन उनके प्रतिद्वंदी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी राजनारायण ने धांधली का आरोप लगाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में जीत को चुनौती दी थी। राजनारायण ने इंदिरा गांधी पर भ्रष्टाचार और सरकारी मशीनरी और संसाधनों के दुरुपयोग का आरोप लगाया था। उनका मुकदमा वकील शांतिभूषण ने लड़ा था। मामले में जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने माना कि इंदिरा गांधी ने सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया इसलिए जनप्रतिनिधित्व कानून के अनुसार उनका सांसद चुना जाना अवैध है।
इंदिरा गांधी ने तत्कालीन परिस्थितियों से निपटने के लिए कांग्रेस के सलाहकारों से चर्चा की थी। लेकिन पार्टी के लोगों की बात को दरकिनार करते हुए इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी ने अपनी मां को पद से इस्तीफा न देने के लिए मनाया। इंदिरा गांधी ने संजय गांधी के तर्कों से सहमत होते हुए 23 जून को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। जज जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने हाईकोर्ट के फैसले पर पूर्ण रोक नहीं लगायी।
तब लोकनायक कहे जाने वाले जयप्रकाश नारायण यानी जेपी ने कोर्ट के इस फैसले के मद्देनजर 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली की। इसमें इंदिरा गांधी से इस्तीफे की मांग की। रैली में नारा गूंजा-सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। इसके बाद तो समूचा विपक्ष सड़कों पर उतर आया। अंतत: इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू करने का फैसला किया। 26 जून, 1975 की सुबह राष्ट्र के नाम अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा, आपातकाल जरूरी हो गया है। इसलिए देश की एकता और अखंडता के लिए यह फैसला लिया जा रहा है। इस तरह देश में लोकतंत्र की हत्या हुई थी।