96 प्रतिशत की पहचान रियल टाइम हुई
पर्यटन विभाग के इस प्रयोग का उद्देश्य न केवल सुरक्षा सुनिश्चित करना है, बल्कि तीर्थ स्थलों की दर्शन व्यवस्था को भी स्मार्ट और अधिक व्यवस्थित बनाना है। अलीगंज के मंदिर में हुए पायलट प्रोजेक्ट में हाई-रेजोल्यूशन कैमरों की मदद से 6500 से अधिक यूनिक विजिटर रिकॉर्ड किए गए, जिनमें से 96 प्रतिशत की पहचान रियल टाइम में सफलतापूर्वक हो सकी। यह सिस्टम अब अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर और हनुमानगढ़ी, काशी के विश्वनाथ मंदिर और बटुक भैरव मंदिर, वृंदावन के श्री बांके बिहारी और प्रेम मंदिर तथा प्रयागराज के अलोपी देवी मंदिर और बड़े हनुमान मंदिर में लगाया जाएगा।
सुरक्षा खतरों का अलर्ट भी देता है यह सिस्टम
पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह के अनुसार, यह सिस्टम ना सिर्फ चेहरों की पहचान करता है, बल्कि भीड़ के व्यवहार, संदिग्ध गतिविधियों और सुरक्षा खतरों का अलर्ट भी देता है। इससे मंदिर प्रशासन को यह पता चल सकेगा कि पहली बार आने वाले आगंतुक कितने हैं, कहां भीड़ बढ़ रही है और सुरक्षा के लिहाज से कौन सा गेट या क्षेत्र संवेदनशील हो सकता है। यह न केवल तीर्थयात्रियों की सुविधा बढ़ाएगा बल्कि सुरक्षा के लिहाज से भी एक क्रांतिकारी कदम साबित होगा। आगामी योजना में पर्यटन विभाग एक अधिक मजबूत और व्यापक डेटा बेस तैयार करने की दिशा में भी काम कर रहा है। इसके लिए भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) से समन्वय कर एक ऐसा सिस्टम तैयार किया जा रहा है, जिससे स्थानीय श्रद्धालुओं, बाहर से आने वाले तीर्थ यात्रियों और पहली बार आने वालों के बीच अंतर किया जा सके। इससे न केवल आंकड़ों के आधार पर नीति बनाना आसान होगा बल्कि डिजिटल भारत के विज़न को धर्म और संस्कृति से जोड़ने की दिशा में भी यह कदम ऐतिहासिक माना जा सकता है।
सुरक्षा की स्मार्ट व्यवस्था
अयोध्या से काशी तक की यह डिजिटल यात्रा भारत के धार्मिक पर्यटन को एक नई दिशा देने जा रही है। यहां आस्था, परंपरा और आधुनिक तकनीक एक साथ चलेंगे—जहां श्रद्धा होगी, वहां सुरक्षा की स्मार्ट व्यवस्था भी। यह व्यवस्था देश के अन्य राज्यों के लिए भी एक मॉडल बन सकती है और भविष्य में भारत के सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों पर इसी तरह की स्मार्ट तकनीक लागू की जा सकती है।