
लखनऊ. Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary- भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की आज तीसरी पुण्यतिथि है। कविता प्रेमी पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी जी के कई काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं। मेरी इक्यावन कविताएं अटल बिहारी वाजपेयी जी की चर्चित काव्य-संग्रह है जिसमे से कुछ कविताएं पेश है। यह कवितायें हमेशा जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं। उनकी एक कविता है, बुझी हुई बाती सुलगाएं, आओ फिर से दिया जलाएं। यह कविता उत्साह भरने का काम करती है। आज कोविड काल में जिस तर लोगो में में कोरोना का डर बढ़ गया, अपनों की मौतों की वजह से लोग गमगीन हैं अटल जी की कविताएं जीवन जीने का हौसला देती हैं।
प्रस्तुत है अटल बिहारी वाजपेयी जी की पांच कविताएं जो इंसान को हौसला देती हैं। गुनगुनाइए...
संघर्ष करते रहें मंजिल मिलेगी
आओ फिर से दिया जलाए
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़
बुझी हुई बाती सुलगाएं
आओ फिर से दिया जलाएं
अटल बिहारी वाजपेयी की यह युवाओं को जीवन की कठिनाइयों का सामना करने एवं लक्ष्य प्राप्ति हेतु संघर्ष करने की प्रेरणा देती है। वे कहते थे युवावस्था में व्यक्ति शक्तिशाली और जोश से भरा होता है। इस उम्र वालों को निराश होकर हार नहीं मानना चाहिए। इस कविता में वे सूर्य की उपमा देते हुए कहते हैं दुख रूपी परछाइयों से व्यक्ति को नहीं हारना चाहिए।
वर्तमान के मोहजाल में न फंसें
हम पड़ाव को समझें मंजिल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं।
वे कहते हैं कहते हैं मामूली उपलब्धि को ही मंजिल समझकर यदि रुक जाएंगें तो जो जीवन का वास्तविक लक्ष्य ओझल हो जाएगा। इसलिए वर्तमान के मोह में आने वाले कल को नहीं भूलना चाहिए। आज के सन्दर्भ में अगर बात करें तो कोरोना का डर कल दूर हो जाएगा। यदि हम कल की तैयारी बेहतर तरीके से करें तब।
मानवता के बारे में भी सोचें
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियां गलाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं
अभी आहुति बाकी है, इसलिए यज्ञ भी अधूरा है। इसका मतलब है हम अपनों के साथ इतने व्यस्त हो गए हैं कि पूरी मानवता के बारे में सोचना भूल गए हैं। पूरी मानवता का कल्याण यज्ञ स्वरूप है जिनमें हमारे बलिदानों, कर्तव्यों की आहुति की जानी बाकी है। इसलिए दुखों एवं बुराइयों पर विजय के लिए हमें अपना कत्र्तव्य को करते रहना है।
10 वीं कक्षा में लिखी थी पहली कविता
अटल बिहारी वाजपेयी जी ऐसे राजनेता थे जिन्होंने राजनीति में तो बुलंदियों को छुआ ही, साथ ही अपने कवि मन से और अपनी कविताओं से उन्होंने आम जनता के दिलों पर भी राज किया। अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी पहली कविता 10वीं कक्षा में "ताजमहल" पर लिखी थी।
अटल बिहारी वाजपेयी जी की दूसरी कविता-
कौरव कौन कौन पांडव।
कौरव कौन कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है
दोनों ओर शकुनि
का फैला कूटजाल है
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है हर पंचायत में
पांचालीअपमानित है
बिना कृष्ण के आज महाभारत होना है,
कोई राजा बने, रंक को तो रोना है
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अटल जी की तीसरी कविता...
3- दूध में दरार पड़ गयी।
ख़ून क्यों सफ़ेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया।
बँट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद
सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है। वसंत से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई।
अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता।
बात बनाएँ, बिगड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
अटल बिहारी वाजपेयी जी की चौथी कविता-
पुनः दिन चमकेगा दिनकर
आज़ादी का दिन मना,
नई ग़ुलामी बीच;
सूखी धरती, सूना अंबर,
मन-आंगन में कीच;
मन-आंगम में कीच,
कमल सारे मुरझाए;
एक-एक कर बुझे दीप,
अंधियारे छाए;
कह क़ैदी कबिराय
न अपना छोटा जी कर;
चीर निशा का वक्ष
पुनः चमकेगा दिनकर
अटल बिहारी वाजपेयी जी की पांचवी कविता-
मैंने जन्म नहीं मांगा था
मैन जन्म नबी मांगा था
किन्तु मरण की मांग करुँगा।
जाने कितनी बार जिया हूँ,
जाने कितनी बार मरा हूँ।
जन्म मरण के फेरे से मैं,
इतना पहले नहीं डरा हूँ।
अन्तहीन अंधियार ज्योति की,
कब तक और तलाश करूँगा।
मैंने जन्म नहीं माँगा था,
किन्तु मरण की मांग करूँगा।
बचपन, यौवन और बुढ़ापा,
कुछ दशकों में ख़त्म कहानी।
फिर-फिर जीना, फिर-फिर मरना,
यह मजबूरी या मनमानी?
पूर्व जन्म के पूर्व बसी—
दुनिया का द्वारचार करूँगा।
मैंने जन्म नहीं मांगा था,
किन्तु मरण की मांग करूँगा।
93 वर्ष की उम्र में भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ने 16 अगस्त 2018 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। और अपने पीछे छोड़ गए बेहद खूबसूरत कविताएं जो हमेशा-हमेशा के लिए हजारों युवाओं को मोटिवेट करती रहेंगी और संकट से लडऩे में कारगर होंगी।
इनपुट- अमन गुप्ता
Published on:
16 Aug 2021 03:43 pm
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