लखनऊ. दयाशंकर सिंह ने जो बसपा सुप्रीमो मायावती पर आपत्तिजनक टिप्पड़ी की इसके बाद मीडिया कवरेज से खफा भाजपाई सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। भाजपाइयों ने मीडिया पर जमकर निशाना साधते हुए कई बातों को लेकर एक बड़ा सन्देश लिखा है जो सोशल मीडिया पर एक दूसरे को पहुंचाया जा रहा है। चलिए हम आप को भाजपाइयों के उस मैसेज के बारे में बताते हैं जो वायरल हो रहा है।
मैसेज में लिखा है। लीजिए वेमुला के बाद फिर से कैमरा आन होते ही विद्वान होने वाले पत्रकारों को फिर एक हड्डी मिल गई है। अब यह हड्डी ये पत्रकार अपने अपने हिसाब से नोचेंगे। मैं निजी तौर पर ये मानता हूं कि भाषा की मर्यादा बनी रहनी चाहिए और महिलाओं के प्रति सम्मान के भाव बने रहने चाहिए लेकिन दयाशंकर की टिप्पणी को लेकर जो हंगामा चैनलीय विद्वानों ने अपनी सहूलियत व पसंद की राजनीतिक पार्टी के हित को लेकर खडा किया है वह समझ से परे है।
कुछ चैनल बहुत दिनों से भाजपा को हिट करने की बाट जोह रहे थे और उनकी यह मंशा गुजरात ने पूरी कर दी थी। लेकिन सोने पर सुहागा दया का बयान हो गया। दया के बयान को ठीक वैसे ही उछाला गया है जैसे लोकसभा चुनाव के दौरान एक इंटरव्यू में नरेंद्र मोदी ने गुजरात दंगों पर कहा था कि जब गाड़ी के नीचे एक कुत्ता भी दबकर मर जाता है तो दर्द होता है। कुछ चैनलीय पुरोधा और एक त्यागी नाम के नेता ने ऐसा बवंडर खडा किया था कि मानों मोदी ने गाली दी थी।
मूर्खों की भीड़ ने उनके कहने के भाव को समझे बगैर बवाल खडा कर दिया था। दया का बयान ध्यान से देखें उन्होंने आदरणीय मायावती के लिए उस शब्दों का इस्तेमाल किया ही नहीं था। तुलसीदास जी की चौपाई याद आ रही है...जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।, चैनलीय पुरोधाओं की हिंदी की जानकारी तो विश्व प्रसिद्ध है। इनके लिए बडी तादाद में पानी जमा होता है और बडी मात्रा में लोग एकत्र होते हैं।
पिछले दिनों एक चैनलीय पुरोधा बेहतरीन कार्य करने वाले पुलिसकर्मियों को 'प्रशस्ति पत्र' के स्थान पर 'प्रसूति पत्र' बटवा रहे थे। मन तो हुआ कि फोन करके बोलूं कि महिलाओं के बच्चा जनने का काम पुरुष पुलिसकर्मी कब से करने लगे और इस देश के नेता तो और भी गजब के हैं। एक त्यागी बाबू नेता है। चंद चैनलों की 'प्याज छील बहस' के विद्वान हैं इन्होंने बाबा रामदेव की एक दवा पर विवाद खडा कर दिया था कि वे पुत्र जीवक दवा बनाते हैं। जबकि ये जडी का संस्कृत नाम था जो चरक में दर्ज है। कहना ये है दो हजार सत्तरह में यूपी में चुनाव हैं।
मायावती का पैसा लेकर टिकट बांटने का काम सदैव चर्चा में रहा है। इस बार मामला पलट गया वे लोग पार्टी छोड़ गए जो रीढ़ हुआ करते थे। ऐसे में दया का एक बयान आया और नेता व अन्य दलों की एजेंडा रिपोर्टिंग करने वालों को मांस का टुकडा मिल गया है। बस ये सब उसे अपनी सहूलियत व अपने सेट एजेंडे के हिसाब से नोंचेगे खाएंगे। दलित के हित की किसको पड़ी है साहेब। वेमुला की घटना के चंद रोज बाद इटावा के करीब एक दलित को जलाकर मार डाला गया है। कुछ रोज बाद ललितपुर में ट्रेन में एक मूक बधिर महिला से सामूहिक बलात्कार हुआ है।
यूपी में रोज ही दलित बच्चियों से बलात्कार हो रहे है जरा भी गैरत बची हो तो इधर भी दो आंसू हो जांए। यूपी में पिछले दिनों कहीं मंदिर में दलितों को प्रवेश नहीं करने दिया गया था इस वक्त याद नहीं आ रहा है। बुंदेलखंड में एक दलित को विवाह में घोडे पर बैठने को लेर मारा गया। इन पर खमोशी खामोशी और दया के बयान पर हंगामा? क्यों पुरोधाओं व नेताओं ये घटनाएं टीआरपी व वोट बैंक पर फिट नहीं बैठती हैं क्या?
दया ने माफी मांग ली अरुण जेटली ने माफी मांग ली अब मामला खत्म होना चाहिए लेकिन होगा नहीं कयोंकि मुनाफे का बयान है। बहन जी आपने भी 'तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार'। सोनिया जी के मुखार से मोदी के लिए ड्रैक्युला आदि शब्द नजर किए गए थे याद है न। इन सबको विराम देते हुए कहना ये है कि हिंदी में बेहतरीन भावार्थ लिखने के नंबर मिलते हैं प्रलाप के नहीं। सुनने देखने व पढ़ने वाले सारे खेल समझने लगे हैं बेहतर होगा ये खांमखां की नौटंकी बंद करें।