उत्तराखंड की राज्यपाल के तौर पर बेबीरानी मौर्य का तीन साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है। गैर राजनीतिक परिवार से आने वाली बेबीरानी मौर्य आगरा की मेयर रह चुकी हैं। इसके पहले 2007 में उन्होंने आगरा की एत्मादपुर विधानसभा चुनाव में हाथ आजमाया था लेकिन हार गईं थीं। मौर्य के ससुर आईपीएस अधिकारी थे, जबकि पति प्रदीप कुमार मौर्या पंजाब नेशनल बैंक में निदेशक रह चुके हैं।
1995 से साल 2000 तक श्रीमती मौर्य आगरा की महापौर थीं। यह सीट एससी के लिए आरक्षित थी। मौर्या २०17 में ‘भाजपा राष्ट्रीय अनुसूचित मोर्चा’ की कोषाध्यक्ष, 2001 में ‘राज्य समाज कल्याण बोर्ड’ की सदस्य और 2002 में ‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ की सदस्य रह चुकी हैं। इन्होंने महिला ‘कल्याण और सशक्तिकरण’ को बढ़ावा देने के लिए प्रमुख भूमिका निभाई है। साल 2013 से लेकर 2015 तक बीजेपी की राज्य इकाई में प्रदेश मंत्री का दायित्व भी संभाला। अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाली मौर्या राज्यपाल बनने से पहले बीजेपी की राष्ट्रीय परिषद और प्रदेश कार्य समिति की सदस्य रह चुकी हैंं।
डॉ के.के पॉल का कार्यकाल खत्म होने के बाद श्रीमती मौर्या को उत्तराखंड के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था। कांग्रेस नेता मारग्रेट अल्वा के बाद बेबी रानी मौर्या राज्य की दूसरी महिला राज्यपाल बनी थीं।
बेबी रानी मौर्य राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की टीम की एक प्रमुख सदस्य भी रह चुकी हैं। तब राष्ट्रपति कोविंद भाजपा के राष्ट्रीय दलित मोर्चा के अध्यक्ष थे, जबकि बेबीरानी मौर्या कोषाध्यक्ष के रूप में उनके साथ थीं।
पिछले 18 वर्षों से बेबीरानी मौर्या पिछड़ी और वंचित महिलाओं के कल्याण के लिए ‘नव चेतना जागृति संस्था’ के माध्यम से काम कर रही हैं। ‘सेवा भारती संगठन’ के माध्यम से उन्होंने लड़कियों को शिक्षा के महत्व के बारे में जागरूक करने और गरीब महिलाओं को ‘आर्थिक रूप से स्वतंत्र‘ होने में मदद की। श्रीमती मौर्य को समाज कल्याण में उनके योगदान के कारण समय-समय पर अनेक समान प्राप्त हो चुके हैं।
1996 में उन्हें समाज रत्न, 1997 में उत्तर प्रदेश रत्न और 1998 में नारी रत्न से सम्मानित किया जा चुका है।