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BJP मिशन 2024: अहीर रेजिमेंट के जरिए UP में यादवों को रिझाने में जुटी, निरहुआ बने अगुआ

सेना में अहीर रेजिमेंट की मांग को बीजेपी सांसद दिनेश लाल निरहुआ ने अपने ही सरकार के सामने उठाया। यादव वोटरों को साधने की जुगत में लगी बीजेपी क्या हो पाएगी कामयाब...

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लखनऊ

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Vikash Singh

Dec 20, 2022

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दिनेश लाल यादव की ओर अहीर रेजिमेंट की मांग करनी गैरवाजिब नहीं लगती। लेकिन आजादी के बाद से अब तक कोई जाति आधारित रेजिमेंट नहीं बनाई गई।

तारीखः 15 दिसंबर 2022, दिन: गुरुवार, लोकसभा में संसद का शून्यकाल। एक नये-नवेले सांसद उठते हैं। कहते हैं, “भारतीय सेना में जल्द से जल्द अहीर रेजिमेंट का गठन किया जाए। जिस दिन इस रेजिमेंट का गठन होगा, उस दिन चीन की रूह कांप जाएगी। क्योंकि 1962 में रेजांग ला चौकी पर 123 अहीर जवानों ने 3 हजार चीनी सैनिकों को खदेड़ दिया था।”

ये सांसद थे, दिनेश लाल यादव निरहुआ। इसी साल यूपी की आजमगढ़ लोकसभा से पहली बार चुनाव जीते थे। उन्होंने संसद में पहुंचते ही बात की सेना की, चीन की, 1962 की और यादव समाज की अलग से रेजिमेंट बनाने की। लेकिन यादवों की हितकारी पार्टी कही जाने वाली समाजवादी पार्टी यानी कह रही है कि लालच में आना मत ये 2024 के लिए फेंका गया पासा है।

आखिर असली मामला क्या है। आइए गुत्‍थी की परतें खोल देते हैं…

सबसे पहले सेना की रेजिमेंट…
भारतीय सेना की सबसे छोटी ईकाई है टुकड़ी, इसमें अमूमन 11 लोग होते हैं। इसके बाद प्लाटून, फिर कंपनी और उसके बाद बटालियन,ब्रिगेड और डिवीजन। इसके बाद होते हैं रेजिमेंट्स।

इसका ताल्लुक अग्रेजी हुकूमत से है। असल में वो ज्यादा सैनिक नहीं लाए थे। उन्होंने ने जब भारतीयों को अपनी सेना में भर्ती किया तो उसे रेजिमेंट कहा। पहला रेजिमेंट मद्रास रेजिमेंट था।

इसके बाद दो तरह के रेजिमेंट्स बने, पहले क्षेत्र के नाम पर। जैसे- पंजाब रेजिमेंट-1761, मराठा लाइट इन्फेंट्री-1768 और दूसरी धर्म या जाति के नाम पर। जैसे गोरखा राइफल्स-1815, सिख रेजिमेंट-1846, डोगरा रेजिमेंट-1877। भारत की आजादी तक कुल 32 रेजिमेंट बन गए थे।

आजादी के बाद फिर कभी नहीं बनी जाति के नाम पर रेजिमेंट

आजादी के बाद जाति के नाम पर रेजिमेंट्स बनने बंद हो गईं। लेकिन पुरानी रेजिमेंट को बंद भी नहीं किया गया। अब भी उन रेजिमेंट नई भर्तियां होती हैं। लेकिन किसी विशेष जाति के लोग ही एक जाति के रेजिमेंट में जाएं ऐसा नहीं है।

ये मिक्स्ड रेजिमेंट्स होती हैं, जैसे कि राजपूताना राइफल्स में राजपूत के अलावा जाट भी हो सकते हैं। राजपूत रेजिमेंट में राजपूत के अलावा गुर्जर और मुस्लिम भी भर्ती हो सकते हैं।

अंग्रेजों ने जाति फैक्टर का फायदा उठाने के लिए बनाया था जाति वाले रेजिमेंट

अंग्रेजों ने भारतीयों में एक खास चीज देखी। आपस में वो कितने भी लड़ते हों पर अगर किसी एक जाति के शख्स पर कोई आफत आती तो उस खास जाति के लोग एक साथ आ जाते।

इसलिए अंग्रेजों ने जाति वाली रेजिमेंट बना दी। लेकिन अंग्रेजों का दावा था कि उन्होंने उन जातियों या क्षेत्र का चयन किया, जहां से लोग बहुत पहले से लड़ाई में हिस्सा लेते आ रहे हैं।

… ले‌किन, अंग्रेजों ने कम लड़ाकों को भी सेना में लिया

अंग्रेजों ने भर्ती की दौ कैटेगरी बना रखी थी।

मार्शल यानी वो लोग माने गए जो पुश्तैनी बहादुर और लड़ाके थे। नॉन मार्शल यानी वो लोग माने गए जो लड़ाकू नहीं थे।

अहीर रेजिमेंट की बात कहां से आती है?

कुमाऊं रेजिमेंट में पहले हरियाणा के अहीर सैनिक हुआ करते थे। इसलिए उसे अहीर रेजिमेंट भी कहा जाता था। साल 1962 में रेजांग ला में भारतीय सेना और चीनी सेना के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में कुमाऊं रेजिमेंट की 13वीं बटालियन के C कंपनी के जवान थे। कुल 123 वीर अहीरों ने 3 हजार चीनी सैनिकों को खदेड़ दिया।

इसमें 114 भारतीय जवानों ने सर्वोच्च बलिदान दिया। उनकी याद में उसी जगह रेजांग ला वॉर मेमोरियल बनाया गया। जिसे अहीर धाम भी कहते हैं। उसी के बाद से अहीरों के लिए एक अलग इन्फेंट्री रेजिमेंट की मांग हो रही है।

इस पूरी खोजबीन से 3 बातें सामने आती आते हैं…

क्‍या निरहुआ की बात सरकार ने मानी तो यूपी में सीटें बढ़ेंगी?

यूपी की पॉलिटिक्स में यादव वोट बैंक मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। 2011 के जनगणना में धार्मिक आंकड़े तो जारी किए गए, लेकिन जातिगत आंकड़ें जारी नहीं किए गए।

पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक यूपी में यादवों की संख्या कुल 9% से 10% है जबकि, OBC में यह आंकड़ा 20% पहुंच जाता है। इसी वजह से बीजेपी इस वोट बैंक को अपने पाले में लाने की हर संभव कोशिश कर रही है। अभी तक यादव वोटरों का बड़ा हिस्सा सपा के साथ खड़ा नजर आता है।

सोशल इंजीनियरिंग से गैर यादव वोट बैंक में बीजेपी पहले ही लगा चुकी है सेंध, मौर्या, कुर्मी में पकड़ मजबूत

केशव प्रसाद मौर्य बने गैर यादव ओबीसी के लीडर...

साल 2017 में बीजेपी ने OBC नेता केशव प्रसाद मौर्या को यूपी बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया। केशव ने शानदार परफॉर्म किया और पार्टी को सरकार में ला दिया। केशव कोइरी यानी कुशवाहा जाति से आते हैं। यूपी में करीब 6% मौर्य, कुशवाहा, सैनी, शाक्य हैं।

केशव को बीजेपी में बड़ा पद मिलने से इन जातियों का वोट बीजेपी को थोक के भाव में मिला।पार्टी लीडरशिप यह जानती है कि केशव के पास चुनाव और संगठन चलाने की सटीक क्षमता है।

OBC में यादवों के बाद कुर्मी सबसे बड़ी जाति…

यूपी में यादव वोटरों के बाद कुर्मी दूसरी सबसे बड़ी OBC की जाति है। कुर्मी वोटरों को पार्टी से जोड़ने के लिए बीजेपी ने स्वतंत्र देव सिंह को 2019 में यूपी अध्यक्ष बना दिया। 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का फैसला सही साबित हुआ।

कुर्मी वोटरों का पार्टी को जमकर सपोर्ट मिला। यूपी की करीब तीन दर्जन विधानसभा सीटें और 8 से 10 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जिन पर कुर्मी वोटर हार-जीत का फैसला करते हैं।

पटेल वोटरों को साधने के लिए उनकी नेता अनुप्रिया पटेल को पार्टी के साथ जोड़ कर रखना भी बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हुआ। मिर्जापुर, प्रयागराज, कौशांबी, प्रतापगढ़ जिले में पटेल वोटर निर्णायक की भूमिका में हैं।

अपनी ही सरकार में अहीर रेजिमेंट का मुद्दा उठाकर बीजेपी ने चला एक तीर से दो निशाना…

बीजेपी के टॉप लीडरशिप को यह बात बखूबी से पता है कि 2019 जैसा प्रदर्शन 2024 में भी दोहराना है तो ओबीसी नेताओं के बड़े चेहरों को फिर से पार्टी के साथ में लाना होगा। उसके साथ ही यादव वोटरों को अट्रैक्ट करने के लिए अहीर रेजिमेंट जैसे मुद्दे को फिर से चर्चा में लाया जाए।

संसद में अपने सांसद के द्वारा ही अहीर रेजिमेंट का मुद्दा उठाना बीजेपी के स्ट्रेटेजी का हिस्सा है। इससे बीजेपी ने एक तीर से 2 निशाना लगाया है। पहला, यादवों को यह भरोशा जताने की कोशिश कर रही है कि अहीर रेजिमेंट को बीजेपी ही पूरा कर सकती है।

दूसरा, कांग्रेस को निशाना पर लेने का फुलप्रूफ प्लान, लोक सभा के चुनाव के पहले इस रेजिमेंट के गठन की भूमिका बन जाती है तब बीजेपी, कांग्रेस और सपा पर यह कहते हुए हमलावर रहेगी कि कांग्रेस ने नहीं होने दिया और केंद्र में सपा उसकी सहयोगी पार्टी थी।

जाट लैंड पॉलिटिक्स को कैप्चर करने के लिए भूपेंद्र चौधरी को बनाया सारथी

यूपी में जाटों की संख्या यूपी का 2% है। यानी कुल 40 लाख के करीब। संख्या भले ही कम है लेकिन पश्चिमी यूपी की पावर पॉलिटिक्स में चौधरियों की चौधराहट का दबदबा है।

खेती किसानी से जुड़ी 2% वाली यह आबादी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सबसे प्रभावशाली मानी जाती है। किसानी मुद्दे और जयंत चौधरी की मजबूत मौजूदगी से बीजेपी को वहां कड़ी टक्कर मिलती रही है।

स्थानीय मुद्दों और नाराजगी को दूर करने के लिए बीजेपी ने जाट नेता भूपेंद्र चौधरी को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया।इससे बीजेपी ने यह मैसेज देने की कोशिश की कि जाट उनके लिए कितने जरुरी हैं।

बीजेपी के अचूक स्ट्रेटेजी को अखिलेश यादव कैसे करेंगे टैकल

2019 के चुनाव में सभी बड़े चेहरे चाहे स्वामी प्रसाद मौर्या हों, धर्म सिंह सैनी हों या फिर दारा सिंह चौहान, यह सभी नेता बीजेपी के साथ थे। लोकसभा चुनाव में इन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी। लेकिन इस बार मामला अलग है।

OBC में निषाद जाति के नेतृत्व के लिए बीजेपी के पास संजय निषाद जैसा चेहरा है, लेकिन सैनी, शाक्य, चौहान और राजभर, ऐसी बिरादरियों के बड़े चेहरे फिलहाल बीजेपी से बाहर हैं। बसपा के कई ओबीसी चेहरे राम अचल राजभर, लालजी वर्मा जैसे नेता समाजवादी पार्टी में हैं।

जबकि राजभर जाति के नेता ओम प्रकाश राजभर किस तरफ जाएंगे अभी यह तय नहीं है। बीजेपी के इस रणनीति से निपटने और काउंटर करने के लिए अखिलेश यादव के पास MY फैक्टर का स्ट्रांग कॉम्बिनेशन है। यानी 20% मुस्लिम और 9% यादव वोटरों को जोड़ दें तो सपा के पास एकमुश्त 29% वोट है।

हरियाणा और राजस्थान में भी उठते रहे हैं अहीर रेजिमेंट की मांग

अहीर रेजिमेंट की मांग हरियाणा और राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में बड़े जोर-शोर से उठती रही है। हरियाणा में यादव रेवाड़ी, गुरुग्राम, भिवानी, महेंद्रगढ़ में अच्छी संख्या में हैं। इस पुरे क्षेत्र को अहीरवाल कहा जाता है।

नार्थ-ईस्ट राजस्थान में भी यादवों की आबादी है। इन इलाकों में अहीर रेजिमेंट बनाने को लेकर धरना-प्रदर्शन चलता रहता है। हरियाणा में राव इंद्रजीत सिंह यादवों के बड़े नेता के रूप में जाने जाते हैं।