
हमारे सांसद और विधायक वकालत कर सकते या नहीं। इस सवाल का जवाब जानने से पहले अधिवक्ता अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट का विचार जानना जरूरी है
लखनऊ. हमारे सांसद और विधायक वकालत कर सकते या नहीं। इस सवाल का जवाब जानने से पहले अधिवक्ता अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट का विचार जानना जरूरी है। अधिवक्ता अधिनियम 1961 के मुताबिक, वकालत करने के लिए वकील की पूर्णकालिक संलग्नता जरूरी है। साथ ही यह भी आवश्यक है कि वह कहीं और से वेतन प्राप्त नहीं कर रहा हो। किसी लाभ के पद पर भी न हो। जबकि जनप्रतिनिधियों को सरकारी फण्ड से वेतन/भत्ता प्राप्त होता है और उसका ज्यादातर समय जनप्रतिनिधि के तौर पर कार्य करते हुए बीतता है। ऐसे में उसके लिए वकालत के प्रति पूरा समय दे पाना मुमकिन नहीं है। अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 49 के मुताबिक, एक अधिवक्ता किसी भी व्यक्ति, सरकार, फर्म, निगम या कंसर्न का पूर्णकालिक वेतनभोगी कर्मचारी नहीं होना चाहिए। हालांकि, ऐसा नहीं है, जनप्रतिनिधि वकालत कर सकते हैं।
एम. करुणानिधि बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1979) 3 SCC 431 के मामले में 5 न्यायाधीशों वाली बेंच ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सांसद और विधायक, जनता के सेवक हैं (हालांकि नियोक्ता-कर्मचारी संबंध उनके लिए लागू नहीं होंगे)। खुद पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर करुणानिधि ने कहा था कि वह लोक सेवक नहीं थे, जनता के सेवक थे। Parliament Act 1954 के तहत जनप्रतिनिधियों को वेतन, भत्ते और पेंशन आदि मिलती है। यह नहीं कहा जा सकता कि सरकार और विधायकों/सांसदों के बीच नियोक्ता और कर्मचारी के संबंध है। अत: स्पष्ट है कि सांसदों एवं विधायकों को वकालत करने से रोकने के सम्बन्ध में कोई भी नियम मौजूद नहीं है। अर्थात, वे बिना रोक-टोक वकालत कर सकते हैं।
वर्ष 2018 में अश्विनी उपाध्याय बनाम भारत संघ के मामले में अदालत ने कहा था कि अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के अंतर्गत ऐसा कोई नियम नहीं है, जिसमें जनप्रतिनिधियों पर एक वकील बने रहने के सम्बन्ध में कोई प्रतिबंध लगाया गया है। जब ऐसा कोई नियम/प्रावधान अधिनियम में मौजूद नहीं है तो न्यायालय द्वारा, जनप्रतिनिधियों (सांसद/विधायक/एमएलसी) को वकालत करने से वंचित नहीं किया जा सकता है।
Updated on:
22 Jan 2020 03:38 pm
Published on:
22 Jan 2020 03:37 pm
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