सीड ने ई-रिक्शा पर एक मार्केट रिसर्च इस दृष्टिकोण के साथ किया है कि इससे देश में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी यानी बिजली चालित वाहनों के जरिये आवागमन से भविष्य की नयी राहें खुलेंगी। खास तौर पर वर्ष 2030 तक सभी इलेक्ट्रिक वाहनों को सड़कों पर चलाने के केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी लक्ष्य पर यह रिपोर्ट कई तरह के समाधान देने की कोशिश कर रही है। रिपोर्ट में बताया गया है कि एक सततशील पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम के तहत ई-रिक्शा को अंतिम पड़ाव तक कनेक्ट करने के विचार को भविष्य में पूरा करने के लिए ‘गेम चेंजर’ साबित हो सकता है। ई-रिक्शा को पारंपरिक ऑटो रिक्शा के एक स्वच्छ विकल्प के रूप में अपनाने को प्रोत्साहित किया जा सकता है, जो न केवल वायु प्रदूषण के अप्रत्याशित विस्तार को रोकने में मददगार साबित होगा, बल्कि उपभोक्ताओं के लिए एक किफायती और सस्ता परिवहन समाधान प्रस्तुत करेगा।
सीड के मैनेजर-क्लीन एनर्जी, आनंद प्रभु पतंजलि ने कहा कि ई-रिक्शा न केवल एक वैकल्पिक आवागमन समाधान मुहैया कराते हैं, जो स्वच्छ और किफायती है, बल्कि यह नये
रोजगार सृजन करने, आयातित तेल पर निर्भरता कम करने, शहर में कम जमीन का बेहतर इस्तेमाल करने और वायु प्रदूषण के स्तर को कम करके जन स्वास्थ्य में सुधार आदि का माध्यम बनता है। ‘ उन्होंने इस क्षेत्र के समक्ष आ रही चुनौतियों पर चर्चा करते हुए बताया कि केवल लखनऊ में करीब 40 हजार ई-रिक्शा हैं और किसी औपचारिक रेगुलेशन के नहीं होने के कारण इनमें से केवल 20 प्रतिशत ही रजिस्टर्ड हैं। इसके परिणामस्वरूप ई-रिक्शा मार्केट में कोई महत्वपूर्ण तकनीकी विकास नहीं देखा गया है। यह वाकई चिंताजनक है कि ये गाड़ियां अब भी अदक्ष ‘लेड एसिड बैटरी’ पर चलती हैं और इनमें कई सेफ्टी स्टैंडर्ड का अभाव है।
इस मौके पर सीड के प्रोग्राम डायरेक्टर अभिषेक प्रताप ने बताया कि ‘ई-रिक्शा और अन्य इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रदूषणकारी जीवाश्म ईंधनों पर आधारित पारंपरिक वाहनों का एक बेहतर विकल्प बनाने के लिए शहर के प्रमुख व चिन्हित स्थानों पर सोलर चार्जिंग जैसे स्वच्छ व सततशील ऊर्जा स्रोतों पर आधारित ‘विकेंद्रीकृत चार्जिंग स्टेशन’ को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
इन सबके अलावा रिपोर्ट में दो प्रकार की बैटरी चार्जिंग संरचनाओं की बात कही गई है- बैटरी स्वैप प्रणाली और विकेंद्रीकृत चार्जिंग स्टेशन। भारत के गंगा मैदानी क्षेत्रों में प्रदूषण के खतरनाक स्तर के कारण, इंटरनल कम्बशन इंजन आईसीई के आधार पर, परिवहन के पारंपरिक साधनों से इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलाव एक विकल्प के रूप में नहीं, बल्कि एक आवश्यकता के रूप में देखा जाना चाहिए।