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मुस्लिम मतों के लिए कांग्रेस से गठबंधन चाहती है सपा

समाजवादी पार्टी को कांग्रेस और उसके बड़े नेताओं से यूं तो ढेरों शिकायतें हैं, फिर भी वह कांग्रेस से बहुत दूरी नहीं रखना चाहते। इसलिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कई बार कांग्रेस के प्रति अपने नरम रुख का इजहार कर चुके हैं।

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Raghvendra Pratap

Dec 15, 2016

sonia mulayam

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राघवेन्द्र प्रताप सिंह
लखनऊ. समाजवादी पार्टी को कांग्रेस और उसके बड़े नेताओं से यूं तो ढेरों शिकायतें हैं, फिर भी वह कांग्रेस से बहुत दूरी नहीं रखना चाहते। इसलिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कई बार कांग्रेस के प्रति अपने नरम रुख का इजहार कर चुके हैं। अखिलेश ये भी कह चुके हैं कि हम अकेले ही यूपी में दोबारा सरकार बनाने की स्थिति में हैं, लेकिन अगर कांग्रेस का साथ मिलकर चुनाव लड़े तो सीटें 300 सौ ज्यादा जीतेंगे। अखिलेश के कथन ने एक बार फिर यूपी में कांग्रेस और सपा के बीच चुनावी गठबंधन की संभावनाओं को हवा दे दी है।

टिप्पणी से बच रहे कांग्रेस और सपा नेता
चुनावी गठबंधन को लेकर सपा और कांग्रेस के नेता अभी कोई टिप्पणी करने से बच रहे हैं। इसकी वजह भी साफ है कि लोकसभा चुनावों के पहले सपा-कांग्रेस का गठबंधन बेवजह की बयानबाजी के चलते नहीं हो सका था। इसलिए इस बार बेहद सावधानी से गठबंधन के प्रयास चल रहे हैं। इसकी पहल कांग्रेस की तरफ से हो रही है। कांग्रेस का यूपी में जनाधार काफी घट गया है। मुस्लिम समाज आज भी कांग्रेस पर विश्वास करता है परन्तु अन्य बिरादरी के साथ कांग्रेस का रिश्ता काफी कमजोर हो गया है। ऐसी खामियों के चलते यूपी में कांग्रेस के लिए किसी गठबंधन में जाना एक मजबूरी बन गया है।

सपा भी समझ रही कांग्रेस की मजबूरी
सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को भी यह मालूम है कि यूपी में कांग्रेस के पास चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों का टोटा है। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की क्या फजीहत हुई थी। चुनावी आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2002 में कांग्रेस के 402 उम्मीदवारों में 334 की जमानत जब्त हुई थी। जबकि वर्ष 2007 में कांग्रेस के 393 उम्मीदवारों में से 323 अपनी जमानत नहीं बचा पाए थे। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस के 355 उम्मीदवारों में 240 की जमानत जब्त हो गई थी।

तो इसलिए गठबंधन से मुलायम ने किया था मना
पुराने चुनावी आकड़ों को देखकर ही कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने सपा के साथ चुनावी गठबंधन करने की पहल शुरू की थी। वह मुलायम सिंह से मिले और गठबंधन पर चर्चा की थी। जबकि पुराने तौर तरीकों से राजनीति करने वाले मुलायम सिंह यादव को प्रशांत किशोर से गठबंधन की बात करना रास नहीं आया। मुलायम ने इसके तुरंत बाद ही ऐलान कर दिया कि सपा किसी से कोई गठबंधन नहीं करेगी, अकेले चुनाव के मैदान में जाएगी। मुलायम ने ऐसा क्यों कहा यह पूछे जाने पर सपा के वरिष्ठ नेता बताते हैं कि चुनावी गठबंधन की बात पार्टी के बड़े नेता तय करते हैं, न की कोई चुनावी रणनीतिकार।

80 सीटों पर तैयार हो सकती है कांग्रेस
नेताजी की नाराजगी के बाद कांग्रेसी नेताओं को गलती का अहसास हुआ और नए सिरे से गठबंधन करने का फार्मूला भेजा गया। सपा नेताओं के मुताबिक पार्टी कांग्रेस को 60 सीटें देने को राजी है और जब इस मामले में बातचीत का सिलसिला शुरू होगा तो यह संख्या बढ़कर 80 हो सकती हैं। सपा के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि कांग्रेस पिछले चुनाव में सिर्फ 28 सीटों पर चुनाव जीती थी जिसको ध्यान में रखते हुए अब कांग्रेस 80 सीटों पर ही मान जाएगी।

सपा को क्या होगा फायदा
कांग्रेस के साथ सपा का चुनावी गठबंधन होने से की स्थिति में मुस्लिम वोटरों का सपा से बसपा के पाले में शिफ्ट होने की संभावनाओं को काफी कम किया जा सकता है। सोनिया गांधी, मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, प्रियंका गाधी और राहुल गांधी जैसे नेता जब एक साथ गठबंधन की हिमायत में चुनाव के मैदान में होंगे तो मुस्लिम मतदाताओं को उनपर भरोसा ज्यादा होगा। उन्हें लगेगा यह गठबंधन भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए तैयार हुआ है। जिसका सीधा-सीधा लाभ कांग्रेस और सपा को मिलेगा। यह सब जानते हुए ही अब मुलायम सिंह ने कांग्रेस से ज्यादा दूरी न रखने की नीति अपनाई है। वहीं अखिलेश यादव ने भी कुर्सी की चिंता में कांग्रेस से दूरियां घटाते हुए अपनी तरफ से कांग्रेस से गठबंधन करने की पहल कर दी है।

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