27 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

बीमारी से मिली संजीवनी

गोरखपुर हादसे ने जहां भाजपा को बैकफुट पर ला दिया, वहीं विपक्ष सड़कों पर है

3 min read
Google source verification

लखनऊ

image

sanjiv mishra

Aug 21, 2017

Gorakhpur crisis

gorakhpur crisis

डॉ.संजीव

लखनऊ. वह गोरखपुर या उत्तर प्रदेश ही नहीं, समूचे देश के लिए काली रात थी। वे सभी बच्चे थे। गंभीर बीमारी इंसेफेलाइटिस से पीड़ित होकर इलाज के लिए क्षेत्र के सबसे बड़े अस्पताल कहे जाने वाले मेडिकल कालेज पहुंचे थे। पर यह क्या, शासन से लेकर प्रशासन तक की लापरवाही भारी पड़ी और उनकी जान चली गयी। एक रात में तीन दर्जन और चार-पांच दिन में साठ से अधिक बच्चों की जान लेने वाले गोरखपुर हादसे ने जहां प्रचंड बहुमत से सूबे की सत्ता में वापसी करने वाली भाजपा सरकार को बैकफुट पर ला दिया, वहीं सपा व कांग्रेस को सड़कों पर ला दिया है। ऐसे में यह कहना अतिशंयोक्ति नहीं होगा कि एक बीमारी और लापरवाही ने कोमा में जा रहे विपक्ष को संजीवनी दे दी है।


बीते सप्ताह गोरखपुर मेडिकल कालेज में ऑक्सीजन की कमी से नौनिहालों के दम तोड़ने को भले ही नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी हादसा न कहकर हत्या कहें, किन्तु इस घटना ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में भूकंप ला दिया है। कुछ महीने पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव परिणामों ने सभी राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया था। तब भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने प्रदेश की 403 में से 325 सीटें जीतकर तहलका मचा दिया था। हालात ये थे कि विपक्ष बुरी तरह धड़ाम हुआ था। पांच साल तक सत्ता में रही समाजवादी पार्टी 47 सीटों पर सिमट गयी थी, वहीं दशकों तक देश व प्रदेश पर राज करने वाली कांग्रेस तो महज सात सीटें ही जीत सकी। तमाम राजनीतिक पंडितों के बीच सत्ता की प्रबल दावेदार मानी जा रही बहुजन समाज पार्टी भी दुर्गति को प्राप्त होते हुए महज 19 विधायक ही जिता सकी। ऐसे में गोरखपुर हादसे के बाद पूरा विपक्ष एकाएक सक्रिय हो गया। चुनाव परिणामों के बाद लगभग कोमा में जा चुके विपक्ष को एक तरह से नयी सांसें मिलीं और आंदोलन शुरू हो गये। उम्मीदों के चिराग जले हैं। अब यह कितनी देर तक रोशनी करते हैं, इसका पहली आहट इसी साल प्रस्तावित स्थानीय निकाय चुनाव परिणामों के रूप में सामने आएगी।

इनका सच, उनका झूठ

गोरखपुर हादसे के बाद जिस तरह सत्ता प्रतिष्ठान ने सच और झूठ का खेल खेला है, उससे भी विपक्ष को मौका तलाशने में आसानी है। नौनिहालों की मौत के बाद जिस तरह एक सुर में प्रशासनिक अफसरों से लेकर सरकार तक ने ऑक्सीजन की कमी से मौत की बात नकारी, उससे तमाम सवाल खड़े हो गए। सरकार भले ही नकारती रही, किन्तु बाद में जिलाधिकारी की रिपोर्ट में ऑक्सीजन की कमी की बात सामने आई और तमाम दोषियों को चिह्नित भी किया गया। सत्ता प्रतिष्ठान की इसी मतभिन्नता को विपक्ष मुद्दा बनाए हुए है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर खुल कर कहते हैं कि जिस तरह सरकार पूरे मामले में भ्रम फैला रही है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। बच्चों की मौत को लेकर स्थिति स्पष्ट की जानी चाहिए।

जेल जाने की लगी होड़

गोरखपुर हादसे के बाद विपक्ष में भी आंदोलन व लड़ाई की प्रतिस्पर्द्धा सी हो रही है। कांग्रेस इस मसले पर लगातार आंदोलित है, तो सपा पीड़ितों के घर-घर तक जा रही है। प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर की अगुवाई में कांग्रेसियों ने राजधानी लखनऊ में आंदोलन किया तो उन्हें हिरासत में ले लिया गया। राज बब्बर सहित तमाम नेता जेल जाने पर अड़ से गए थे। इसी बीच औरैया में पंचायत चुनावों को लेकर हुए विवाद पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव वहां जाने के लिए निकले तो पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया। जेल जाने की इस होड़ के बीच अखिलेश ने गोरखपुर त्रासदी में जान गंवाने वाले बच्चों के परिजनों को पार्टी की ओर से दो-दो लाख रुपये देने के साथ उन्हें कोई आर्थिक सहायता न देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को कठघरे में भी खड़ा किया।