
लखनऊ. प्रदेश में लगातार बढ़ती आबादी और भूगर्भ जल के अंधाधुंध जल के दोहन के कारण स्थिति लगातार चिंतनजक होती जा रही है। प्रदेश के तराई क्षेत्रों की स्थिति कुछ सामान्य है लेकिन बुंदेलखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हालत ख़राब है। बुंदेलखंड में वर्षा की कमी और जमीन के पठारी होने कारण भूजल की स्थिति में सुधार नहीं आ रहा जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बारिश ठीक होने के बावजूद भूगर्भ जल का अधिक दोहन होने के कारण स्थिति चिंताजनक होती जा रही है। भूगर्भ जल के दोहन का प्रतिशत हर वर्ष बढ़ता जा रहा है।
डार्क श्रेणी में 26 विकास खंड
भूगर्भ जल को लेकर जारी एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश के 26 विकास खंड डार्क श्रेणी में जबकि 66 विकास खंड ग्रे श्रेणी में शामिल हैं। भूगर्भ जल के अंधाधुंध दोहन के कारण एक ओर जहाँ कृषि उत्पादकता में कमी आई है तो जमीन के ऊसर होने की भी दर बढ़ी है। कुएं और नलकूपों के धसकने की घटनाएं सामने आ रही हैं। प्रदेश में बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र पहाड़ी-पठारी शैल प्रधान होने के कारण इन क्षेत्रों में जल धारण की क्षमता कम है। इस कारण सबसे अधिक जल संकट की समस्या इसी क्षेत्र में सामने आती है। बुंदेलखंड के मऊरानीपुर ब्लाक में जलस्तर बेहद नीचे चले जाने के बाद इस क्षेत्र में पायलट प्रोजेक्ट चलाकर जलस्तर बढ़ाने की कोशिश हुई। इस क्षेत्र में जल संकट के बाद नदी की खुदाई कर वहां से पीने का पानी निकालने तक के प्रयास हुए।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी बढ़ रहा संकट
मध्य, पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भूजल स्तर लगातार गिरावट की ओर है और कई विकास खंड डार्क और ग्रे श्रेणी में आ गए हैं। प्रदेश के जिन 345 विकास खण्डों में भूगर्भ जल का दोहन 35 प्रतिशत से कम है, वहां ऊसर की समस्या है जबकि जिन क्षेत्रों में भूगर्भ जल का दोहन 75 प्रतिशत से अधिक है, वे डार्क जोन में आ गए हैं। प्रदेश के पठारी और मैदानी क्षेत्रों में वार्षिक भूजल संग्रहण 69.13 लाख हेमी और पर्वतीय क्षेत्रों में 2.42 लाख हेमी है।
Published on:
15 Oct 2017 08:46 pm
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