
भारतीय टेबल टेनिस महासंघ के महासचिव की सलाह, स्पोर्ट्स के लिए एजूकेशन सिस्टम में बदलाव की जरूरत
एक्सक्लूसिव
पत्रिका न्यूज नेटवर्क
लखनऊ. टेबिल टेनिस ही नहीं आज सभी स्पोर्ट्स के लिए एजूकेशन सिस्टम में बदलाव की जरूरत है। यह कहना है अरुण कुमार बनर्जी का, जिन्हें हाल ही में भारतीय टेबल टेनिस महासंघ (टीटीएफआई) का महासचिव बनाया गया है। वह यूपी टेबल टेनिस संघ के सचिव भी हैं। इसके अलावा उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट खेलो इंडिया के लिए उत्तर भारत का प्रभारी बनाया गया है। पत्रिका उत्तर प्रदेश से एक्सक्लूसिव बातचीत में अरुण कुमार बनर्जी ने देश-प्रदेश के खेल, खिलाड़ियों और एजूकेशन सिस्टम पर खुलकर अपनी राय रखी।
उत्तर प्रदेश में प्रतिवर्ष पांच रैंकिंग टूर्नामेंट होते हैं। यह संख्या बेहद कम है। इसे बढ़ाया जाना चाहिए। इस सवाल पर अरुण कुमार बनर्जी ने कहा कि सही बात है। टूर्नामेंट अधिक होने चाहिए। इसमें हमें कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन आड़े एजूकेशन सिस्टम आता है।
पैरेंट्स नहीं चाहते हैं कि उनके बच्चों का एग्जाम व टेस्ट छूट जाये और न ही स्कूल से खेलने की मोहलत मिलती है। ऐसे में अधिक टूर्नामेंट करा पाना मुश्किल होता है। आमतौर पर शुक्रवार, शनिवार और रविवार को ही टीटी के टूर्नामेंट कराये जाते हैं। इसलिए स्पोर्ट्स को प्रमोट करने के लिए एजूकेशन सिस्टम में चेंज लाने की बेहद जरूरत है।
स्पोर्ट्स कोटे में सरकारी नौकरी पाना आसान है
उन्होंने कहा कि स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री को देखना चाहिए कि खिलाड़ियों को स्कूल से थोड़ी छूट जरूर मिले। अगर गेम के कारण उनका एग्जाम/टेस्ट मिस होता है तो उन्हें दोबारा टेस्ट-परीक्षा देने का मौका मिलना चाहिए। क्योंकि दोनों करियर बराबर हैं। पहले कहा जाता था कि 'पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे होगे खराब' अब यह कहावत पूरी तरह से बदल चुकी है। आज स्पोर्ट्स कोटे से सरकारी नौकरी पाना बेहद आसान है। अगर आपने इंडिया लेवल या फिर स्टेट लेवल खेला है तो आपकी जॉब पक्की है।
पैरेंट्स को भी धैर्य रखने की जरूरत
टीटीएफआई में यूपी के पहले महासचिव बने अरुण कुमार बनर्जी का कहना है कि पहले के पैरेंट्स स्पोर्ट्स में कम और अब के पैरेंट्स ज्यादा इंट्रेस्ट लेते हैं। खेल के प्रति उनमें जागरूकता अधिक है और इनवेस्ट करने को भी तैयार हैं। लेकिन, फर्क इतना है कि पुराने पैरेंट्स दखल नहीं देते थे, जबकि आज के पैरेंट्स को तुरंत रिजल्ट चाहिए। वह चाहते हैं कि छह महीने या साल भर में उनका बच्चा स्टेट खेले, इंडिया लेवल खेले। आज के पैरेंट्स के पास धैर्य नहीं है। इससे बच्चों पर ज्यादा तो ज्यादा पड़ता ही है कोच भी अपने तरीके से काम नहीं कर पाते। उन्होंने कहा कि पैसे से गेम को कैलकुलेट करना ठीक नहीं है। गार्जियन को पेशेंस रखना चाहिए। अगर बच्चे में टैलेंट है तो वह निश्चित ही देश-प्रदेश के लिए खेलगा। कोच पर, उसकी तकनीक पर भरोसा रखें।
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Updated on:
02 Mar 2021 03:45 pm
Published on:
02 Mar 2021 03:29 pm
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