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Scam: VRS लेने के बाद भी ले रहे थे सैलरी, सरकारी खजाने में सेंधमारी करने वाले 299 कर्मचारी रडार पर, ऐसे खेला खेल

Scam: हाल ही में खुलासा हुआ है कि उत्तर प्रदेश सरकार के आवास विकास विभाग के तमाम इंजीनियर कई साल पहले स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) का लाभ उठाने के बावजूद वेतन के साथ-साथ अन्य लाभ उठा रहे थे।

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लखनऊ

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Prateek Pandey

Jul 25, 2023

Engineer were taking salary even after taking VRS scam exposed in up

लखनऊः उत्तर प्रदेश सरकार के आवास-विकास विभाग में बड़ी सेंधमारी का मामला पकड़ में आया है। हाल ही में यूपी सरकार को पता चला कि विभाग में कई ऐसे इंजिनियर, जिन्होंने सालों पहले VRS यानी कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी, वह अभी भी वेतन और अन्य सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं। उनके नाम विभाग के रिकॉर्ड लिस्ट से नहीं हटाए गए थे और इस बात का उन्होंने सालों तक लाभ लिया। मामला संज्ञान में आते ही विभाग के अपर मुख्य सचिव ने अवैध रूप से सरकारी खजाने से ली गई राशि को वसूली करने का आदेश जारी कर दिया है। अब ऐसे इंजीनियरों की सूची बनाई जा रही है।


ये है पूरा मामला
ठगी गई रकम 100 करोड़ रुपये से भी अधिक बताई जा रही है। यह पता लगाने के लिए आंतरिक जांच भी की जा रही है कि रिकॉर्ड में घोटाले के लिए कौन जिम्मेदार है?
दरअसल, 2009 में विभाग ने एक आदेश जारी किया था, जिसके अनुसार इंजीनियरों को पूर्ण लाभ के साथ 58 साल की आयु में सेवानिवृत्ति का विकल्प चुनने या 60 साल की सेवानिवृत्ति आयु तक जारी रखने का विकल्प दिया गया था। प्रदेश मे तमाम इंजीनियरों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का विकल्प चुन लिया था।
ऐसे खुली पोल
सरकार ने उनकी बकाया राशि की गणना कर उनके सेवानिवृत्त होने के बाद कुल राशि उन्हें ट्रांसफर कर दी थी। जबकि, कुछ इंजीनियरों को वेतन मिलता रहा। इस महीने में ऐसे ही एक सेवानिवृत्त अधिकारी की फाइलों की जांच करते समय विभाग के लेखा अनुभाग में तैनात एक कर्मचारी को गड़बड़ी का अंदेशा हुआ तो उन्होंने इसकी सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी।
299 कर्मचारी रडार पर, बढ़ सकती है संख्या
जानकारी सामने आने के बाद विभाग में हड़कंप मच गया। मामले में ऐसे इंजिनियों की लिस्ट तैयार हो रही है, जिन्हें रिटायर होने के बाद भी वेतन मिलते रहे। शुरुआत में विभाग ने 299 जूनियर इंजीनियरों के सेवा रिकॉर्ड की जांच शुरू कर दी है जिन्हें 1986 और 1987 में सेवा में शामिल किया गया था। ये वही लोग थे जिन्होंने बड़ी संख्या में वीआरएस का विकल्प चुना था।