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#Teacher’sDay: हिंदी प्रेमी मुलायम पढ़ाते थे अंग्रेजी, बच्चे करते थे ‘मास्टर जी’ से प्यार 

वे अपने साथियों से कहा करते थे कि शिक्षक हमेशा शिष्य रहता है। उसे प्रतिदिन कुछ न कुछ नया सीखना चाहिए तभी वह बच्चों को कुछ सिखा पाएगा।

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Akansha Singh

Sep 05, 2016

yadav

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लखनऊ। आज शिक्षक दिवस पूरे भारत में मनाया जा रहा है। यह डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस पर मनाया जाता है। क्या आपको पता है यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव भी बतौर शिक्षक रह चुके हैं। तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव ने अपना शैक्षणिक कैरियर करहल क्षेत्र के जैन इंटर कॉलेज से शुरू किया था। उनके साथ पढ़ाने वाले शिक्षक और बच्चों को उनकी सिखाई गई एक-एक बात अभी भी याद है।
वे अपने साथियों से कहा करते थे कि शिक्षक हमेशा शिष्य रहता है। उसे प्रतिदिन कुछ न कुछ नया सीखना चाहिए तभी वह बच्चों को कुछ सिखा पाएगा।
यहां से हुई शुरुआत
मुलायम सिंह यादव ने जैन इंटर कालेज में वर्ष 1955 में कक्षा नौ में प्रवेश लिया था। यहां से 1959 में इंटर करने के बाद 1963 में यहीं सहायक अध्यापक के तौर पर अध्यापन कार्य शुरू किया। उस समय उन्हें 120 रुपये मासिक वेतन मिलता था।

लगभग 11 साल बाद 1974 में वे यहीं पर राजनीति शास्त्र के प्रवक्ता के तौर पर प्रोन्नत हुए। राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते उन्होंने 1984 में यहां से त्याग पत्र दे दिया। फिर शुरू हुआ राजनैतिक करियर, इस दौरान 1967 में वे जसवंतनगर से विधायक भी बने।



कुछ ऐसा था उनका पढ़ाने का स्टाइल
जैन इंटर कालेज में मुलायम सिंह के सहशिक्षक रामरूप यादव ने बताया कि मुलायम सिंह आम शिक्षकों की तरह कभी भी रट रटाया पाठ बच्चों को नहीं पढ़ाते थे। वे विषय में रोचकता लाने में माहिर थे। वे पढ़ाई के दौरान बच्चों को पीटने के सख्त विरोधी थे। अगर किसी बच्चे से गलती हो जाए तो उसे प्यार से समझाते थे। उनका कहना था कि दूसरे के अवगुण नहीं बल्कि गुणों को देखें, जरूरी हो तो उन्हें आत्मसात करें। मुलायम सिंह राजनीति शास्त्र के प्रवक्ता होने के साथ ही अंग्रेजी भी बच्चों को पढ़ाते थे।



थे बच्चों के चहेते
जैन इंटर कालेज में मुलायम सिंह से पढ़ चुके श्रीनिवास यादव ने बताया कि मुझे उन्होंने हाईस्कूल में हिंदी और इंटर में सामाजिक विज्ञान पढ़ाया। उनकी कक्षा में बच्चे एकाग्रचित होकर बातें सुना करते थे। उनमें तब भी नेतृत्व का विशेष गुण था। वह बच्चों में भी इन गुणों का विकास करते थे। यही कारण है कि तत्कालीन छात्रों में वे विशेष लोकप्रिय थे।