ध्यान की अवस्था में, प्राचीन ऋषियों को मनुष्य के संपूर्ण अस्तित्व का बोध हुआ था। उनके अनुसार, मानव शरीर पाँच परतों में मौजूद हैं, जिसकी एक परत, हमारा स्थूल शरीर है जिसे अन्नमय कोष भी कहते हैं, उसके परे हमारा शरीर सूक्ष्म परतों में भी विभाजित है। स्थूल शरीर के बाद हमारी प्राणिक परत (प्राणमयकोश) होती है, जिसे एक दिव्यदृष्टा विभिन्न रंगों, चक्रों और नड़ियों के रूप में देख सकता है। इसके बाद मनोमय कोश है, जहाँ से मनस या बुद्धि कार्य करती है। मनोमय कोष के बाद विज्ञानमय कोश होता है जो पूर्वानुमान का स्तर है, जो कि अन्तर्ज्ञान से युक्त मन का स्थान है और अंतिम परत आनंदमय कोश है जो हमें परमात्मा से जोड़ने वाली कड़ी है।