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#Hanuman Jayanti : अतुलित बल के प्रतीक हैं हनुमान

मानव शरीर पाँच परतों में मौजूद हैं, जिसकी एक परत, हमारा स्थूल शरीर है जिसे अन्नमय कोष भी कहते हैं, उसके परे हमारा शरीर सूक्ष्म परतों में भी विभाजित है।

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Ashish Kumar Pandey

Apr 22, 2016

hanuman

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योगी अश्विनी
लखनऊ.
पृथ्वी की भाँति ही मानव शरीर भी स्थूल और सूक्ष्म की अनेक परतों में विद्यमान है, लेकिन कुछ परतों का अनुभव पाँच इंद्रियों द्वारा किया जा सकता है और कुछ का नहीं, जिन परतों का हम अनुभव कर सकते हैं वही हमारे लिये सत्य हैं और बाकी असत्य।


ध्यान की अवस्था में, प्राचीन ऋषियों को मनुष्य के संपूर्ण अस्तित्व का बोध हुआ था। उनके अनुसार, मानव शरीर पाँच परतों में मौजूद हैं, जिसकी एक परत, हमारा स्थूल शरीर है जिसे अन्नमय कोष भी कहते हैं, उसके परे हमारा शरीर सूक्ष्म परतों में भी विभाजित है। स्थूल शरीर के बाद हमारी प्राणिक परत (प्राणमयकोश) होती है, जिसे एक दिव्यदृष्टा विभिन्न रंगों, चक्रों और नड़ियों के रूप में देख सकता है। इसके बाद मनोमय कोश है, जहाँ से मनस या बुद्धि कार्य करती है। मनोमय कोष के बाद विज्ञानमय कोश होता है जो पूर्वानुमान का स्तर है, जो कि अन्तर्ज्ञान से युक्त मन का स्थान है और अंतिम परत आनंदमय कोश है जो हमें परमात्मा से जोड़ने वाली कड़ी है।


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तर्क, सहज ज्ञान और परमात्मा को समझने नहीं देता
yagi
कुछ भी देखने, समझने और अनुभव करने की हमारी क्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि हम अपने शरीर की किस परत अथवा कोष से कार्य कर रहे हैं। प्रत्येक परत एक छलनी की भाँति कार्य करती है जो कि उच्च कोषों की आवृत्तियों और पहलुओं को निचले कोषों में प्रवेश नहीं करने देती। इन परतों में तर्क संगत मन अर्थात मनोमय कोश ही उच्च कोषों को अनुभव करने में एक मनुष्य के लिए सबसे बड़ी बाधा है। तर्क, सहज ज्ञान और परमात्मा को समझने नहीं देता। दोनों ही विषय बुद्धि से परे हैं। यही कारण है कि तर्क और पाँच इंद्रियों के स्तर से एक साधारण मनुष्य सूक्ष्म दुनिया का अनुभव नहीं कर पाता जबकि वह शक्तियाँ उसके आस.पास ही मौजूद हैं।


सबसे पहले, एक विचार के रूप में प्रकट होती है
सूक्ष्म शक्ति से ही स्थूल संचालित है। यही सूक्ष्म शक्ति, सबसे पहले, एक विचार के रूप में प्रकट होती है। विचार के बाद ध्वनि, फिर रंग और अंत में पंचतत्वों के रूप में, जिनसे प्रकृति के सभी पदार्थों जैसे कि पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, मनुष्य आदि का गठन होता है। घटना के घटित होने से पहले ही पूर्वाभास होना, असामान्य श्रवण शक्ति, दिव्यदृष्टि और आध्यात्मिक चिकित्सा जैसे सूक्ष्म विज्ञान यहीं से उत्पन्न हुए हैं।

सूक्ष्म इंद्रियों की जागृति होती है

सनातन क्रिया, एक मनुष्य की इन्ही विभिन्न परतों को संतुलन में लाती है, जिसके फलस्वरूप उसकी सूक्ष्म इंद्रियों की जागृति होती है और वह परा शक्ति के अन्य पहलुओं का अनुभव कर पाता है।


हनुमान जयंती
के इस पावन अवसर पर हम उनकी दिव्य शक्ति को थोड़ा और समझने का प्रयास करते हैं। भगवान राम के अति प्रिय भक्त, श्री हनुमान महादेव शिव का ही 'रूद्र' स्वरुप हैं। वह अतुलित बल के प्रतीक हैं, जिन्होंने अकेले ही जीवन दान देने वाले संजीवनी पर्वत को उठा लिया था और अकेले ही रावण की लंका में आग लगा दी थी। शास्त्रों के अनुसार हनुमान की शक्ति कलियुग में भी पृथ्वी लोक पर मौजूद है, उनकी सूक्ष्म शक्ति का अनुभव ध्यान आश्रम के कुछ साधकों ने भी किया है और वह शक्ति किस स्थान पर है, उससे भी वह भली-भाँति परिचित हैं।


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ध्वनि के स्तर पर, श्री हनुमान की शक्ति का सञ्चालन गुरु सानिध्य में, 'रूद्र रूद्र महारुद्र' मन्त्र द्वारा किया जाता है तथा वह केसरिया रंग के रूप में प्रकट होती है। पाँच तत्वों के रूप में यह शक्ति वानर रूप धारण करती है।


वानर, एक बहुत ही बुद्धिमान, संवेदनशील, निडर और शरारती जीव है और यही विशेषताएँ हनुमान की भी हैं। इसलिये कोई आश्चर्य की बात नहीं कि वानर को भारतवर्ष में ही नहीं अपितु सभी प्राचीन सभ्यताओं में पूजा गया है, फ़िर चाहे वो माया सभ्यता हो, यूनानी या रोमन सभ्यता।


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अनुभव करने की क्षमताएँ मनुष्य में कम हो गई हैं

कलियुग के इस चरण में, सूक्ष्म शक्तियों को अनुभव करने की क्षमताएँ मनुष्य में कम हो गई हैं। यही कारण है कि यह फुर्तीला जीव आज बड़ी निराशाजनक स्थिति में है। उसके लिए न तो जंगल बचे हैं और न ही खाने के लिए फलों से लदे पेड़। भूख से परेशान यह जीव अब शहरों में नज़र आते हैं जहाँ या तो वे दुर्घटना का शिकार होते हैं या उन्हें मार दिया जाता है।


हनुमान कोई मिथ्या शक्ति नहीं हैं

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हनुमान कोई मिथ्या शक्ति नहीं हैं। दुनिया भर की सभ्यताओं में उन्हें पूजा गया है। इस सृष्टि का सञ्चालन और संरक्षण करने वाली शक्तियों ने अनेक रूपों में जन्म लिया है। त्रेता युग के रामायण काल में यह शक्तियाँ वानरों के रूप में वाकई उपस्थित थीं और अभी भी एक अर्ध. सुप्त अवस्था में पृथ्वी पर मौजूद हैं क्योंकि उन्हे जगाने वाला कोई नहीं है।


श्री हनुमान की शक्ति की एक विशेषता है कि उसे किसी भी वांछित प्रभाव के लिये जगाना पड़ता है और उसकी जागृति के लिए हनुमान जयन्ती बड़ा ही पावन और शक्तिशाली दिवस है। गुरु सानिध्य में कुछ विशेष मन्त्रों के जाप द्वारा ऐसा किया जाता है। यहाँ 'रूद्र' मंत्र का उल्लेख किया है किन्तु अन्य मन्त्र बहुत शक्तिशाली हैं और गुरु ही उन्हें संचालित कर सकते हैं, इसलिए उनका उल्लेख संभव नहीं है।


ध्यान आश्रम में हनुमान. शक्ति की जागृति के लिये विशेष यज्ञ किया जाता है। उसके प्रभाव का अनुभव करने के लिये आप सभी आमंत्रित हैं ।



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