
Historian Dr. Shashikant Jain was a multi-faceted personality
लखनऊ, एक सजग प्रबुद्ध विद्धान के तौर पर डा.शशिकांत जैन ने धर्म, इतिहास, साहित्य, समाज और प्रशासकीय सेवाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व रचनाओं से सदा पहचाने जाते हैं। यहां विमोचित यह विशेष अंक उनके योगदान को समग्र रूप से सामने रखने का एक सराहनीय यत्न है। उक्त विचार आज यहां ज्योति प्रसाद जैन ट्रस्ट की ओर से यूपी प्रेस क्लब में आयोजित विनयांजलि समारोह में मूर्धन्य वक्ताओं ने ‘डा.शशिकांत जैन स्मृति अंक’ का विमोचन करते हुए व्यक्त किये।
प्रखर व्यंग्यकार डा.सूर्यकुमार पांडेय ने कहा कि डा.शशिकांत जैन मुझसे दो अलगअलग रूपों में जुड़े रहे। एक ओर मेरा उनसे विभागीय जुड़ाव रहा तो दूसरी ओर साहित्यप्रियता के कारण उनसे मेरे पारिवारिक संबंध भी सदा बने रहे। उनकी अंतिम पुस्तक ‘नारद की यात्रा’ एक दिलचस्प व्यंग्य रिपोर्ताज है। जिसमें राजनीतिक परिदृश्य को व्यंग्यात्मक तरीके से लिखा है। वह प्रख्यात इतिहासविद् जागरुक नागरिक रहे। इतिहास मनीषी डा.ज्योतिप्रसाद जैन के बड़े बेटे थे। जैन धर्म के संवर्धन और उसके ग्रंथ प्रकाशनों में भी उनका योगदान रहा है।
अध्यक्षीय वक्तव्य में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो विजय कुमार जैन ने कहा कि इतिहासविद् डा.शशिकांत जैन महान शिक्षाविद व निर्भीक पत्रकार रहे। प्रदेश शासन में विशेष सचिव के पद पर रहते हुए भी प्राचीन शिलालेखों पर उनका श्रमसाध्य शोध कार्य अनूठा और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था। उनकी पहचान निडर-निर्भीक पत्रकारिता के पक्षधर के रूप में की जाती है। उनकी इतिहास पर लिखी पुस्तकें पाठ्यक्रमों में शोध का हिस्सा रहीं और मार्गदर्शक बनीं। वरिष्ठ पत्रकार प्रदुम्न त्रिपाठी ने कहा कि डा.शशिकांत जैन शासकीय सेवा के साथ समाज को भी समर्पित रहे।
उत्तर प्रदेश सचिवालय सेवा अधिकारी संघ में बतौर अध्यक्ष सक्रिय रहे। शासकीय सेवा के साथ उनके शोध व लेखन कार्य जारी रहे। वह लेखनी के व्यवसायीकरण से दुखी थे। उनकी यह पीड़ा पुस्तक ‘नारद के संवाद’ में भी उभरकर सामने आती है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के पूर्व समन्वयक डा.विनयकुमार जैन ने उनके बहुआयामी व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए उन्हें एक संवेदनशील और प्रामाणिकता के आधार पर रचनाकर्म में संलग्न सृजनकर्ता बताया।
प्रख्यात इतिहासविद् डा.शशिकान्त जैन का जन्म 12 फरवरी 1932 क¨ मेरठ शहर में हुआ था। लखनऊ विश्वविद्यालय से सन् 1953 में उन्होंने इतिहास में एम.ए. और रूसी भाषा में डिप्लोमा किया। डाॅ. जैन को पी-एच-डी की उपाधि सन् 1969 में लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान की गई और उनके शोध-प्रबन्ध को अति उत्कृष्ट स्वीकार कर विश्वविद्यालय द्वारा अपवाद स्वरूप उन्हें मौखिक परीक्षा से अवमुक्त किया गया था। छात्र जीवन से ही सामाजिक और बौद्धिक कार्यकलापों में सक्रिय रहे। डा.जैन शासकीय सेवा में शासकीय सेवा की प्रवृत्तियों के साथ डाॅ. जैन का शोध और लेखन कार्य चलता रहा। ‘कौशाम्बी‘ सन् 1965 में हिन्दी में प्रकाशित उनकी प्रथम पुस्तक थी।
कैनबरा यूनीवर्सिटी में और मगध यूनीवर्सिटी के पाठ्यक्रम में सम्मिलित हाथीगुम्फा के जटिल अध्ययन पर 1971 में प्रकाशित उनके प्रामाणिक श®धग्रन्थ को विश्वस्तर पर सराहा गया। राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास पर उनका दूसरा प्रमुख शोधग्रंथ 1987 में इण्डियन हिस्टाॅरिकल रिसर्च सोसायटी द्वारा अनुमोदित किया गया।
Published on:
06 Mar 2021 09:16 pm
बड़ी खबरें
View Allलखनऊ
उत्तर प्रदेश
ट्रेंडिंग
