
Raebareli
रायबरेली. जलियांवाला बाग नरसंहार की खौफनाक याद आज भी सिहरन पैदा कर देती है। अप्रैल 1919 को बैखासी के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में निहत्थे भारतीयों को घेरकर गोली चलाने वाले ब्रिगेडियर जनरल डायर की कायराना हरकत को दो साल बाद दोहराया गया था।
अंग्रेज हुकूमत की हरकत का गवाह बना था रायबरेली का मुंशीगंज इलाका। सामंतों और अंग्रेजों के जुल्म से परेशान होकर किसानों ने विद्रोह कर दिया था। अंग्रेजों के मुखबिर और डलमऊ के ताल्लुकेदार के खिलाफ आंदोलन भड़क रहा था। किसानों ने घेराव करने के लिए कूच किया तो ताल्लुकेदार की गुहार पर अंग्रेज फौज ने किसानों को घेरकर बंदूकों का मुंह खोल दिया। इस नरसंहार में चार सौ से ज्यादा किसान मारे गए, सैकड़ों अन्य लापता हो गए। किसानों के खून से सई नदी का पानी लाल हो गया था। जलियांवाला बाग कांड में ब्रिगेडियर जनरल को सजा से चौकन्ने अंग्रेज प्रशासन ने आनन-फानन में किसानों की लाशों को ठिकाने लगवा दिया।
कुछ को नदी में बहा दिया गया तो कुछ को दफन कर दिया गया। तमाम लाशों को डलमऊ भी भेजा गया था। अफसोस.. यह नरसंहार इतिहास की किताबों में स्थान नहीं बना पाया, क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों के खिलाफ जंग नहीं छेड़ी गई थी।
प्रतापगगढ़ की जेल पर किसानों ने बोला था हमला
अवध क्षेत्र में सामंतों ने अपने विलासिता के लिए किसानों पर तमाम जुल्म करना शुरू कर दिया था। ज्यादती की इंतहा होने पर प्रतापगढ़ से किसानों ने आंदोलन का ऐलान कर दिया था। आंदोलन की अगुवाई के लिए अवध किसान सभा नामक संगठन बनाया गया था। अंग्रेजों ने सामंतों के इशारे पर किसान सभा के नेताओं को जेल में डाल दिया तो किसानों ने एकजुट होकर प्रतापगढ़ जेल पर धावा बोल दिया। जबरदस्त घेराबंदी से परेशान होकर गोरी हुकूमत ने किसान नेताओं को रिहा किया तो आंदोलन और मुखर हो गया। इसी परिपेक्ष्य में रायबरेली में बड़ी सभा का ऐलान कर दिया गया।
रखैल के षडय़ंत्र से सभा में पहुंचे किसान हुए उग्र
इतिहासकारों के मुताबिक, रायबरेली की सभा के लिए किसानों का पहुंचना जारी थी। उधर, डलमऊ में चंदनिहा नामक ठाकुर ताल्लुकेदारी थी। ताल्लुकेदार ठाकुर भोग-विलास में मस्त रहते थे और उनकी रखैल ‘अच्छी जान’ ही शासन चलाती थी। अच्छी जान ने षडय़ंत्र करते हुए स्थानीय किसान नेता निहाल सिंह की फसल को फूंकवा दिया। इस हरकत पर रायबरेली में जुटे किसान उग्र हो गए और आनन-फानन में ताल्लुकेदार की कोठी का घेराव कर लिया। किसानों का घेराव बढऩे लगा तो ताल्लुकेदार ने अंग्रेज हुकूमत से मदद मांगी। कुछ देर बाद तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट ए.जी. शेरिफ पुलिस लेकर पहुंचे और किसानों के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इसी दौरान अफवाह फैल गई कि किसान नेताओं को एकांत में पुलिस ने मार डाला है।
भीड़ को रोकना मुश्किल हुआ तो फायरिंग शुरू
किसान नेताओं की मौत की अफवाह फैली से मुंशीगंज में सई नदी के किनारे डेरा डालकर टिके अन्य जिलों के किसानों ने डलमऊ की ओर कूच कर दिया। पुलिस ने सई नदी के पुल पर बैलगाड़ियां खड़ी कर रास्ता रोकने का प्रयास किया। जोर-जबरदस्ती हुई तो लाठीचार्ज करना पड़ा।
बावजूद किसान पीछे हटने के लिए तैयार नहीं थे। ऐसे में अंग्रेज अफसरों ने गोली चलाने का हुक्म जारी कर दिया। मुंशीगंज में प्रदर्शनस्थल पर एक ओर सई नदी थी, जबकि दूसरी ओर ऊंची रेलवे लाइन दीवार जैसी खड़ी थी। सामने अंग्रेज फौज खड़ी थी। चौथी दिशा में सरपत का जंगल था। ऐसे में गोली चलने पर बचने के लिए कोई रास्ता नहीं था। बताते हैं कि इस गोली कांड में चार से ज्यादा किसान मारे गए थे।
सई नदी का पानी लाल, ट्रक से भेजी गईं लाश
स्थानीय इतिहासकारों के मुताबिक, नरसंहार के कारण सई नदी का पानी लाल हो गया था। जलियांवाला बाग कांड से नसीहत लेते हुए अंग्रेज प्रशासन ने रातोंरात किसानों की लाशों को फौजी ट्रकों में लादकर डलमऊ भेज दिया, जहां ताल्लुकेदार ने उन्हें ठिकाने लगवा दिया। सुबह के वक्त जितनी लाश मिलीं, उन्हें आसपास दफन कर दिया गया। इस नरसंहार ने अवध के इलाके में अंग्रेजों के खिलाफ बड़ी जंग की बुनियाद रखी थी, लेकिन किताबों में किसानों के इस त्याग को स्थान नहीं मिला।
Published on:
10 Aug 2017 12:19 pm
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