
कैराना और नूरपुर उप चुनाव: विपक्ष चुप था फिर भी क्यों मात खा गए भाजपा के चाणक्य
त्वरित विश्लेषण
अनिल के अंकुर
लखनऊ. उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत के बाद कहा जाने लगा था कि भाजपा के चाणक्यों ने ऐसी रणनीति बनाई है कि अब सूबे में विपक्ष को अपनी जमीन बना पाना आसान नहीं होगा। लेकिन, फूलपुर, गोरखपुर के परिणाम और उसके बाद अब कैराना और नूरपुर के उपचुनाव के परिणाम ने भाजपा के चाणक्यों की बोलती बंद कर दी है। भाजपा को उप चुनावों में लगातार करारी हार मिली है। वह तब जबकि पार्टी के बड़े-बड़े महारथियों ने बड़ी संख्या में रैलियां कीं, ऐन चुनाव के एक दिन पहले चालीस किलोमीटर दूरी पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रैली भी की। पर इन सभी उपचुनावों में चाणक्यों की रणनीति काम नहीं आई।
रथों पर दौड़ी भाजपा- रैली पर रैली और घोषणाएं
भाजपा नेताओं ने कैराना लोकसभा उपचुनाव और नूरपुर विधानसभा उपचुनाव में जीत हासिल करने के लिए सारे घोड़े खोल दिए थे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डिप्टी मुख्यमंत्रियों केशव प्रसाद मौर्य व दिनेश शर्मा ने ताबड़ तोड़ रैलियां कीं थीं। प्रदेश सरकार के मंत्री लगातार जनसभाएं करते रहे। मंत्री सुरेश राणा ने तो 100 से ज्यादा जनसभाएं कीं। चुनाव के एक दिन पहले कैराना से चालीस किलोमीटर दूरी पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रैली की और एक्सप्रेस वे का उद्घाटन किया। पर यह सब कवायद काम नहीं आयी। उन्होंने पिछड़े में अति पिछड़ों का कार्ड भी खेला। पर लोगों ने अपने मन को नहीं बदला।
विपक्ष की रणनीति रही खामोश
इस बार विपक्ष की रणनीति खामोश रही। रालोद के उम्मीदवार कैराना में चुनाव मैदान में थे तो सपा के नूरपुर में । सपा मुखिया अखिलेश यादव प्रचार करने वहां नहीं गए। बसपा सुप्रीमो मायावती भी प्रचार करने नहीं गईं और न ही उन्होंने किसी भी उम्मीदवार के पक्ष में वोट डालने की अपील की। मतदान के दिन ईवीएम मशीनें खराब होना भी मुद्दा बन गया और खामोश बैठे विपक्ष ने इसे तूल दे दिया।
क्या कहते हैं प्रेक्षक
यूपी की सियासी हालातों पर नजर रखने वाले राजनीतिक पे्रेक्षकों की मानें तो केन्द्र सरकार के वादों और यूपी सरकार के काम न करने से जनता दुखी और नाराज थी। यही कारण है कि भाजपा के तमाम प्रयासों के बाद भी उनकी मेहनत वोट में नहीं बदल पाई। पत्रकार बृजेश शुक्ला की मानें तो हार भाजपा नेताओं के ओवर कांफीडेंस का नतीजा है। जनता नाराज चल रही है। इसको भाजपा नेता बहुत हल्के में ले रहे थे। यही कारण है कि ये परिणाम सामने आए हैं। अगर भाजपा का यही रुख रहा तो आगे और भी दिक्कतें आ सकती हैं।
एक नजर जातीय समीकरणों पर
कैराना लोकसभा में तकरीबन 17 लाख मतदाता हैं। इनमें तीन लाख मुसलमान, तकरीबन चार लाख पिछड़े और करीब डेढ़ लाख वोट जाटव दलितों के हैं। जाटव वाोट को बीएसपी का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है। इस लोकसभा में दलित और मुस्लिम मतदाता खास मायने रखते हैं। इस क्षेत्र में हसन परिवार का खासा राजनीतिक दबदबा माना जाता रहा है। वर्ष 1996 में एसपी के टिकट पर सांसद चुने गए मुनव्वर हसन की पत्नी तबस्सुम बेगम वर्ष 2009 में इस सीट से संसद जा चुकी हैं। भाजपा के उम्मीदवार को बड़ी संख्या में जाट वोट मिलने की उम्मीद थी क्योंकि उन्हें सिम्पेथी वोट की काफी आस थी। भाजपा के सांसद हुकुम सिंह की मृत्यु के बाद पार्टी ने उनकी बेटी को टिकट दी थी।
परिणाम आते गए और बदलते गए भाजपा नेताओं के सुर
जैसे जैसे परिणाम आ रहे थे वैसे वैसे भाजपा नेताओं के सुर बदलते गए। सुबह जब पोस्टल बैलट खुले तो कैराना में भाजपा उम्मीदवार 43 वोट से आगे थीं। उस वक्त भाजपा के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक बोले हम हर जगह आगे हैं और परिणाम हमारे पक्ष में आएंगे। योगी और मोदी ने देश व प्रदेश के लिए बहुत काम किया है। फिर जब सवा नौ बजे कैराना में नौ हजार से रालोद के उम्मीदवार आगे हो गए और नूरपुर में सपा के प्रत्याशी बढ़त बनाकर चलने लगे तो भाजपा नेताओं ने कहा अभी बहुत राउंड की काउंटिंग बाकी है। दोपरहर को जब रिजल्ट आया तो भाजपा बोली सारा विपक्ष मेरे खिलाफ लामबंद हो गया था। इस पर सपा प्रवक्ता विजय यादव ने कहा कि भाजपा के साथ भी दो दर्जन पार्टियां हैं। हम एक हो गए तो अन्याय और वे कईयो को मिलकर लड़ रहे हैं तो उनका हक।
Published on:
31 May 2018 02:45 pm
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