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जानें कौन हैं जफर फारुकी, अयोध्या केस की सुनवाई से लेकर अब तक इन कारणों से बने चर्चा का विषय

अयोध्या केस की सुनवाई के दौरान जफर फारुकी का नाम कई बार चर्चा में रहा

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जानें कौन हैं जफर फारुकी, अयोध्या केस की सुनवाई से लेकर अब तक इन कारणों से बने चर्चा का विषय

जानें कौन हैं जफर फारुकी, अयोध्या केस की सुनवाई से लेकर अब तक इन कारणों से बने चर्चा का विषय

लखनऊ. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले के बाद देश के सबसे लंबे चलने वाले केस में से एक अयोध्या विवाद का खात्मा हुआ। केस की सुनवाई से लेकर रामलला विराजमान के फैसले तक तमाम बातें उठीं। हिंदू-मुस्लिम दोनों ही पक्षकारों ने अपनी-अपनी बात कोर्ट के समक्ष रखी थीं। इसमें सुन्नी वक्फ बोर्ड भी शामिल रहा। बोर्ड की ओर से जफर अहमद फारुकी (Zafar Faruqi) की अगुवाई में वकीलों ने दलीलें पेश की थीं। केस की सुनवाई के दौरान जफर फारुकी का नाम कई बार चर्चा में रहा।

अयोध्या मामले पर 5 अगस्त से 16 अक्टूबर के बीच 40 दिन सुप्रीम कोर्ट में चली सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष और हिंदू पक्ष के बीच विवादित जमीन को लेकर तीखी बहस हुई। दोनों पक्ष जमीन पर अपने कब्जे के लिए अड़े रहे। मगर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चीफ जफर अहमद फारुकी का भगवान राम के अयोध्या में जन्म पर कबूलनामा सामने आने पर चर्चा का विषय बन गया।

अयोध्या विवाद पर फैसले के आखिरी दिन यह खबर आई थी कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित भूमि से अपना दावा छोड़ने की पहल की है। हालांकि, उसी शाम जफर फारुकी ने इसका खंडन किया। हालांकि तब उन्होंने यह भी कहा था किसुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित मध्यस्थता पैनल के समक्ष बोर्ड ने समझौते का प्रस्ताव रखा।

मुख्यमंत्री ने दिया था सुरक्षा का आदेश

जफर फारुकी सुन्नी वक्फ बोर्ड के चीफ हैं। सुन्नी वक्फ बोर्ड एक मान्यता प्राप्त संस्था है। बोर्ड ने कोर्ट में विवादित जमीन पर मस्जिद होने का दावा पेश किया था।

फारुकी को लेकर बोर्ड में ही सदस्यों से कुछ मतभेद भी रहे। कुछ सदस्यों ने उनके द्वारा बोर्ड से जुड़े सभी फैसले लेने पर आपत्ति ली। हालांकि फारूखी का कहना है कि सभी सदस्यों ने मिलकर उन्हें वक्फ बोर्ड का अध्यक्ष चुना। बता दें कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने राजीव धवन को अपना वकील नियुक्त किया था। वह कोर्ट में नक्शा फाड़ने के मामले को लेकर घिर गए थे। 14 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को फारुकी को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराने के निर्देश दिए थे। ऐसा इसलिए क्योंकि फारुकी ने पांच जजों की संवैधानिक पीठ के सामने अपनी जान को खतरा बताया था।

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