
बरेली के रहने वाले प्रवीर कुमार 1982 बैच के आइएएस थे
महेंद्र प्रताप सिंह
रिटायर्ड आईएएस अधिकारी प्रवीर कुमार उत्तर प्रदेश अधीनस्थ चयन सेवा आयोग यानी यूपीएसएसएससी (Uttar Pradesh Subordinate Selection Service Commission) के नए अध्यक्ष बनाए गए हैं। योगी आदित्यनाथ सरकार ने उन्हें कांटों भरा ताज सौंपा है। इसलिए एक बार फिर प्रवीर कुमार चर्चा में हैं। आयोग पर उप्र के विभिन्न सरकारी विभागों में ग्रुप सी की नौकरियोंं की भर्ती करने का जिम्मा है। इसलिए यह आयोग हमेशा चर्चा और विवादों में रहा है। दिसंबर 2018 से आयोग में अध्यक्ष पद खाली चल रहा था इसलिए प्रवीर कुमार की नियुक्ति बहुत अहम मानी जा रही है।
प्रवीर कुमार यूपी आईएएस एसोसिएशन के अध्यक्ष रह चुके हैं। तीन साल तक राजस्व परिषद के चेयरमैन पर रहने के बाद अगस्त 2019 में अपनी लंबी और बेदाग सेवा से यह रिटायर हुए। सेवाकाल में इनकी गिनती बेहद अच्छे अफसरों में होती रही। बरेली के रहने वाले प्रवीर कुमार1982 बैच के आइएएस थे।1981 में आइआइटी, कानपुर से गोल्ड मेडल के साथ इलैक्ट्रिक इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद एक साल बाद प्रवीर कुमार आइएएस बन गए। नौकरी में आने के बाद एक विदेशी विश्वविद्यालय से इन्होंने एमएससी की डिग्री हासिल की। आइएएस के रूप में पहली नियुक्ति उरई में एसडीएम के पद पर हुई। इसके बाद राज्य और केंद्र सरकार में विभिन्न पदों पर रहे। डायरेक्टर जनरल फारेन ट्रेड के अलावा यह केंद्र सरकार में सचिव भी थे। यूपी में प्रमुख सचिव चिकित्सा और स्वास्थ्य और प्रमुख सचिव नगर विकास जैसे महत्वपूर्ण पदों के अलावा उत्तर प्रदेश स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन के चेयरमैन, दिल्ली के स्थानिक आयुक्त और ग्रेटर नोएडा, नोएडा व यमुना एक्सप्रेस वे अथारिटी के अध्यक्ष का पद संभाला। नवंबर 2017 में इन्हें यूपी आइएएस एसोशिएशन का अध्यक्ष चुना गया। जून 2016 में यूपी के तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन के रिटायरमेंट के बाद प्रवीर कुमार को यूपी का कार्यवाहक मुख्य सचिव भी बनाया गया। वे इस पद पर एक माह तक रहे।
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सौम्य स्वभाव के प्रवीर की गिनती भले ही अच्छे अफसरों में होती थी, लेकिन सपा सरकार में वरिष्ठ मंत्री आजम खान से इनका टकराव जगजाहिर था। यह कभी आजम की आंख के तारे हुआ करते थे। लेकिन किन्ही कारणों से आजम ने एक लंबा-चौड़ा पत्र लिखकर उन्हें मुस्लिम विरोधी ठहरा दिया। इस तरह इनके जीवन में पहली बार कोई दाग लगा। इसका प्रभाव इनकी नौकरी पर भी पड़ा। अखिलेश सरकार में सीजी सिटी और लखनऊ मेट्रो परियोजना जैसी महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट को अमलीजामा पहनाने में अहम अहम भूमिका निभाने वाले प्रवीर अखिलेश के पसंदीदा अफसर की सूची से एकाएक बाहर हो गए। बहरहाल, प्रवीर कुमार की ईमानदार और बेदाग छवि के कारण ही योगी आदित्यनाथ ने इन्हें उत्तर प्रदेश अधीनस्थ चयन सेवा आयोग की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है। आईएएस अफसर सीबी पालीवाल ने अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद से यह पद खाली चल रहा था।
गौरतलब है कि मुलायम सिंह यादव ने अपने मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग को भंग कर दिया था। लेकिन जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने सरकार के अंतिम दिनों में आयोग को पुन:गठित किया। राजकिशोर यादव अध्यक्ष बनाये गये। लेकिन इनके कार्यकाल की तमाम भर्तियां विवादों में रहीं। आयोग भी कभी बना तो कभी भंग हुआ। 1988 में अध्यादेश के जरिए अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड गठित हुआ था। 31 मई1990 को बोर्ड विघटित कर दिया गया। यह आयोग बन गया। 1993 में उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (संशोधन) अधिनियम, लाया गया। इस संशोधन के जरिए आयोग एक विभाग में बदल गया यानी 1997 से लेकर 2018 तक आयोग में लगातार कानूनी बदलाव होते रहे। अंतत: 6 अप्रैल, 2017 को एक बार फिर आयोग पुनर्गठित हुआ। अब उप्र अधीनस्थ सेवा चयन आयोग अधिनियम बनाया गया है। आयोग और आयोग के अध्यक्षों के विवादित कार्यकाल के बीच प्रवीर कुमार के लिए यह कहावत सटीक बैठती है-"काजल की कोठरी में कैसो ही सयानो जाय एक लीक काजल की लागे है तो लागे हैर्र्"। अब यह प्रवीर कुमार पर निर्भर करता है कि वह अपनी प्रवीणता और चतुराई से कैसे अपनी स्वच्छ छवि साफ-सुथरी रख पाते हैं।
Published on:
14 Dec 2019 03:55 pm
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