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अयोध्या में ज़मीन खरीद मामला: IAS, IPS विधायकों को बचाकर, छोटे कर्मचारियों पर कार्यवाई

अयोध्या में अधिकारियों, नेताओं और बड़े बड़े लोगों द्वारा ज़मीन खरीद मामले पर चल रही जांच की शिफारिश में सिर्फ छोटे कर्मचारियों को शामिल किया गया है। जबकि इसमें ज़मीन खरीद करने वाले विधायक, नेता, आईएएस, आईपीएस समेत किसी भी व्यक्ति पर कोई कार्यवाई नहीं की गई है। फिलहाल जांच पूरी होकर योगी आदित्यनाथ तक पहुँच चुकी है।

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लखनऊ

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Dinesh Mishra

Jan 06, 2022

Ayodhya Villagers Meeting in Jila Panchayat Office

Ayodhya Villagers Meeting in Jila Panchayat Office

लखनऊ. उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले में 21 बीघा ज़मीन को एक प्राइवेट ट्रस्ट को ट्रांसफर करने के मामले में योगी आदित्यनाथ की सख्ती काम कर रही है। जिसमें श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की घोषणा के बाद से ही लगातार अधिकारी और नेताओं ने रिशतेदारों के मध्याम से वहाँ सस्ती जमीन खरीद फरोख्त शुरू की थी। 23 दिसंबर को सीएम योगी ने 5 दिन के अंदर जांच करते हुए रिपोर्ट उन्हें देने का आदेश दिया था। जिसके बाद अब जांच पूरी होकर रिपोर्ट उन्हें सौंप दी गई है। क्षेत्रीय राजस्व कोर्ट ने ये ज़मीन सरकार को सौंपने की शिफारिश करते हुए एक दो छोटे अधिकारी, कर्मचारी पर जांच बैठा दी है। लेकिन अभी तक किसी भी बड़े व्यक्ति, अधिकारी या नेता पर कोई एक्शन नहीं लिया गया है।

क्या है मामला

अयोध्या में तत्कालीन डीएम कमिश्नर और विधायकों ने ज़मीन खरीद कर गलत तरीके से अपने रिशतेदारों के नाम ट्रान्सफर की है। जिसमें अयोध्या में सहायक अभिलेख अधिकारी (एआरओ) कोर्ट ने लगभग 21 बीघा (52,000 वर्ग मीटर) ज़मीन 'महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट' यानि एमआरवीटी को हस्तांतरित करने के विभागीय आदेश को अवैध घोषित कर दिया था।” अदालत ने अब जमीन को सभी तरह के बंधनों से मुक्त कर राज्य सरकार को सौंप दिया है। हालांकि, इसने ट्रस्ट के खिलाफ किसी कार्रवाई की सिफारिश नहीं की क्योंकि इसमें कोई जालसाजी शामिल नहीं थी।

एआरओ अदालत का फैसला 22 दिसंबर, 2021 के पांच दिन बाद आया। इस जांच से पता चला कि सुप्रीम कोर्ट के राम मंदिर निर्माण को मंजूरी देने के फैसले (9 नवंबर, 2019) के बाद जिले में स्थानीय विधायकों, नौकरशाहों के करीबी रिश्तेदार और राजस्व अधिकारियों के परिजनों ने अचल संपत्ति बाजार में मौके को भुनाने की उम्मीद में अयोध्या में जमीन खरीदी थी।

दलित व्यक्ति के इस्तेमाल करके ज़मीन ट्रान्सफर करने का हुआ था खेल

दलित की ज़मीन सीधे खरीद या बेंच नहीं सकते इसलिए इस ट्रस्ट में शामिल एक दलित व्यक्ति एमआरवीटी ने रोंघई नाम के एक दलित व्यक्ति का इस्तेमाल किया था।

क्या कहते हैं अभिलेख अधिकारी?

अयोध्या में इस प्रकरण से जुड़े जांच अधिकारी सहायक अभिलेख अधिकारी, भान सिंह ने बताया कि, “मैंने सर्वेक्षण-नायब तहसीलदार के अगस्त 1996 के आदेश को रद्द कर दिया है क्योंकि यह अवैध था। मैंने इसे आगे की कार्रवाई के लिए एसडीएम (उप-मंडल मजिस्ट्रेट) को भेज दिया है। मैं तत्कालीन सर्वे-नायब-तहसीलदार (कृष्ण कुमार सिंह, अब सेवानिवृत्त) के खिलाफ कार्रवाई की भी सिफारिश कर रहा हूं। लेकिन और किसी के शामिल होने का ठोस सबूत नहीं मिला। इसलिए अन्य के खिलाफ कार्रवाई की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, “चूंकि मुझे इस मामले में कोई जालसाजी नहीं मिली, इसलिए एमआरवीटी और अन्य के खिलाफ किसी कार्रवाई की सिफारिश नहीं की जा रही है।”

अयोध्या में डीएम, कमिश्नर, एसपी, एसएसपी, विधायक ने खरीदी सस्ती ज़मीनें

अयोध्या में ज़मीन खरीद के फर्जीवाड़े का विवाद दिसंबर में ही शुरू हो गया था। जिसमें प्रियंका गांधी, अखिलेश यादव, और आम आदमी पार्टी ने सरकार को घेरा था। इस ज़मीन खरीद मामले में तत्कालीन एसपी, डीएम, कमिशनर से लेकर नेता और विधायक रहे थे। जबकि इसी के बाद सीएम योगी ने जांच के आदेश दिए थे।

अयोध्या के डिविजनल कमिश्नर और डीआईजी के रिश्तेदारों सहित कई आला अधिकारी राम मंदिर निर्माण स्थल के 5 किमी के दायरे के भीतर जमीन खरीदी की है। वहीं इसी स्थल पर विधायक, महापौर और राज्य ओबीसी आयोग से सदस्यों की ओर से भी जमीन खरीदी गई है. एक विवादित महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट द्वारा यह सभी जमीन खरीदी की गई है.