
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2017 की नियुक्तियों को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की (फोटो सोर्स : WhatsApp News Group)
Allahabad High Court : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने हाल ही में एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि संविधान किसी सांसद को मुख्यमंत्री या उप मुख्यमंत्री बनने से नहीं रोकता। इस मामले में अदालत ने वर्ष 2017 में योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य की नियुक्तियों को असांविधानिक घोषित करने की मांग वाली याचिका पर फैसला सुनाया।
संजय शर्मा द्वारा दायर इस याचिका में यह दावा किया गया था कि 19 मार्च 2017 को योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य ने मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी, जबकि वे उस समय सांसद (लोकसभा सदस्य) थे। याची का तर्क था कि सांसद रहते हुए मुख्यमंत्री अथवा उप मुख्यमंत्री पद धारण करना शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के खिलाफ है। यह ‘ऑफिस ऑफ प्रॉफिट’ के नियमों का उल्लंघन है। याची ने यह भी कहा कि संविधान का उद्देश्य है कि सांसद और कार्यकारी पदों का पृथक्करण सुनिश्चित किया जाए, इसलिए उनके शपथ ग्रहण को अवैध घोषित किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति राजीव भारती की खंडपीठ ने इस याचिका को सिरे से खारिज कर दिया। अदालत ने अपने निर्णय में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को उजागर किया।
संवैधानिक अनुमति: हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो किसी सांसद को मुख्यमंत्री या उप मुख्यमंत्री बनने से रोकता हो।
ऑफिस ऑफ प्रॉफिट’ प्रावधान: अदालत ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 102(1)(ए) के स्पष्टीकरण में मंत्रियों को इस अयोग्यता से बाहर रखा गया है। इसलिए, किसी सांसद का मंत्री या मुख्यमंत्री पद धारण करना ‘ऑफिस ऑफ प्रॉफिट’ के तहत अवैध नहीं माना जा सकता।
सांसद और मुख्यमंत्री पद की प्रकृति: अदालत ने कहा कि सांसद का पद कोई संवैधानिक पद नहीं, बल्कि एक निर्वाचित पद है। जबकि मुख्यमंत्री की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 164 के तहत राज्यपाल द्वारा की जाती है।
अल्पकालीन सदस्यता की अनुमति: अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान यह अनुमति देता है कि कोई व्यक्ति, जो राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं है, वह छह माह तक मुख्यमंत्री या मंत्री पद पर रह सकता है। इस अवधि में योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य ने संसद सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था, जिससे किसी भी संवैधानिक अड़चन का सवाल ही नहीं बचता।
याची ने यह भी तर्क दिया कि मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए सांसद होना शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत के खिलाफ है। हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि राज्य सरकार और संसद के बीच शक्तियों का पृथक्करण पहले से संविधान द्वारा स्पष्ट रूप से नियंत्रित है, और मंत्रियों को संसद सदस्य होने की अनुमति संविधान में दी गई है। अदालत ने कहा कि भारत का संविधान संविधानिक पदों और निर्वाचित पदों के बीच स्पष्ट अंतर करता है। इसलिए यह कहना कि सांसद रहते हुए कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री नहीं बन सकता, संविधान के नियमों के विपरीत है, अनुचित है।
हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि यह कानूनी रूप से पूरी तरह वैध है कि कोई सांसद मंत्री या मुख्यमंत्री पद ग्रहण कर सकता है। प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं: सांसद का पद निर्वाचित है, संवैधानिक नहीं। संविधान के अनुच्छेद 164 के अनुसार, राज्यपाल किसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त कर सकते हैं, चाहे वह उस समय राज्य विधानमंडल का सदस्य न हो। नियुक्ति के छह माह के भीतर व्यक्ति को विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य बनना आवश्यक है। योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य ने नियमानुसार सांसद पद से इस्तीफा दे दिया। इस प्रकार, नियुक्ति पूरी तरह से संवैधानिक और कानूनी है।
अदालत ने यह निर्णय जनहित और संवैधानिक दृष्टिकोण से संतुलित बताते हुए कहा कि किसी राजनीतिक निर्णय या नियुक्ति पर प्रश्न उठाना तभी उचित है जब संविधान का उल्लंघन हो, और इस मामले में ऐसा कोई उल्लंघन नहीं पाया गया।
न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति राजीव भारती ने कहा कि संविधान स्वयं यह अनुमति देता है कि कोई व्यक्ति छह माह तक राज्य विधानमंडल का सदस्य न होने के बावजूद मुख्यमंत्री या मंत्री पद पर रह सकता है। ऐसे में किसी सांसद को मुख्यमंत्री या उप मुख्यमंत्री बनने से रोकना संविधान के तहत अनुचित और असंगत होगा।”
इस फैसले का राजनीतिक और सामाजिक महत्व भी है। 2017 की नियुक्तियों पर सवाल उठाने वाली याचिका का खारिज होना साफ संदेश देता है कि भारत का संविधान-
इस निर्णय से भविष्य में ऐसी याचिकाओं के लिए भी मार्गदर्शन स्थापित होगा
Published on:
18 Dec 2025 11:43 am
बड़ी खबरें
View Allलखनऊ
उत्तर प्रदेश
ट्रेंडिंग
