
कैप्टन मनोज पाण्डेय और उनका अंतिम पत्र
PVC CAPT MANOJ PANDEY: अपने सहपाठी मित्र पवन मिश्र को 30 जून 1999 को लिखे जीवन के अंतिम पत्र में वह लिखते हैं कि इस ऊंचाई पर दुश्मन से लड़ाई बहुत मुश्किल है। वे बंकर के भीतर सुरक्षित है और हम खुले में हैं। उन्होंने अपनी रणनीति बहुत कायदे से बनाई है और अधिकांश ऊंचाईयों पर कब्जा कर चुके हैं।
शुरुआत में हमारे लिए चीजें बेहद खराब थी और इस दौरान हमने कई जानें गवांई लेकिन अब हालात काबू में हैं नियोजित और सफलतापूर्वक हमला जारी है... वह आगे लिखते हैं कि पूरे देश से संदेश मिल रहे हैं कि जस्ट डू इट यह देखना सुखद है कि संकट के समय हमारा देश एकजुट हो जाता है।
पाकिस्तानी घुसपैठियों को पीछे करेंगे चाहे जान की बाजी लगानी पड़े
अपने अंतिम पत्र में कैप्टन मनोज पाण्डेय लिखते हैं कि अभी मै तुम्हे और सारे देशवासियों को आश्वस्त करता हूं कि हम निश्चित तौर पर किसी कीमत पर पाकिस्तानी घुसपैठियों को पीछे करेंगे चाहे इसके लिए जान की बाजी क्यों न लगानी पड़े।
यहां मौसम ठंढ़ा है बर्फ पिघलनी शुरू हो गई है, सूरज निकलने की स्थिति में दिन अच्छा होता है लेकिन रात में तापमान माइनस पांच से पंद्रह तक पहुंंच जाता है। भारतीय थल सेना के पैदल दस्ता ज्वाईन करने पर गौरवाविंत हूं कि तुम्हे बता नहीं सकता...
सुबह होने से पहले दुश्मन की गोलियों से बचते आगे बढऩा है
कारगिल के ऑपरेशन विजय के दौरान जुबार टॉप और बटालिक पर कब्जा करने के क्रम मेें भारतीय सेना को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। दो से तीन जुलाई 1999 की रात मनोज पाण्डेय की पलटन खालूबार की तरफ बढ़ रही थी। दुश्मन ऊंचाईयों से गोलियांं बरसा रहे थे लेकिन दुश्मनों के घातक हमलों से बचाते हुए पलटन को सुबह होने से पहले ऐसी जगह पहुंचना था जहां खतरा कम हो।
कैप्टन मनोज पाण्डेय ने पलटन की एक टुकड़ी को दाहिने तरफ भेजा और खुद बाएं तरफ बढ़ते दुश्मन के एक के बाद एक ठीकनों को तबाह करने लगे। तीसरे ठीकाने को तबाह करने के दौरान कंधे और पैर में गोलियां लगी लेकिन तीसरे ठीकाने को तबाह करने के बाद दुश्मन के चौथे ठीकाने को भी बरबाद कर दिए। एक बुलेट सिर में लगी उसके बाद भी वह पाकिस्तानी दुश्मनों को ललकारते रहे और अपनी पलटन का हौसला बढ़ाते रहे ... आखिरकार बलिदान सार्थक हुआ बटालिक और खालूबार पर तिरंगा लहराने लगा।
मै एक दिन परम वीर चक्र विजेता बनूंगा
कैप्टन मनोज पाण्डेय के मित्र प्रयागराज हाईकोर्ट के अधिवक्ता संदीप पाण्डेय बताते हैं कि ‘मनोज की स्मृति मेरे दिमाग में हमेशा बनी रहती है, उन दिनों दूरदर्शन पर एक सिरियल आता था जिसका नाम परम वीर चक्र विजेता था। वह सिरियल हमलोग हॉस्टल में साथ-साथ देखते थे। जब भी वह सिरियल खत्म होता तो मनोज बड़े जोश में कहता एक दिन मैं भी परम वीर चक्र विजेता बनूंगा। नियति को शायद यही मंजूर था, चंद साल नहीं गुजरे वह परम वीर चक्र विजेता बन ही गया।’
दो घंटे में सीखा स्केटिंग
कैप्टन मनोज पाण्डेय के मित्र सिनियर जेल सुपरिटेडेंट शशिकांत सिंह और रियल एस्टेट कारोबारी चंद्रशेखर आजाद कहते हैं कि ‘हॉस्टल में वह स्कैटिंग सीख रहा था और बार-बार गिर जा रहा था। जिसे देखकर हमलोग हंसने लगे तो वह भी शरमा कर हंसने लगा। कई बार सीखने में उसे चोट भी लगी लेकिन हर बार उठकर सीखने लगता। थोड़ी देर में जब हमलोग मेस से लंच करके वापस आ रहे थे तो देखकर आश्चर्य हुआ कि वह पूरी तरह स्कैटिंग सीखकर तेजी से चल रहा था।’
भाई के जीवन के कठिन समय में मार्गदर्शन करते रहना
परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पाण्डेय के नाम पर अब यूपी के लखनऊ का सैनिक स्कूल जाना जाता है। अदम्य साहस का परिचय देने वाले और घुसपैठियों के वेष में आने वाले पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा देने वाले मनोज पाण्डेय को एहसास था कि लड़ाई मुश्किल है। वह अपने जीवन के अंतिम पत्र में अपने मित्र को लिखते हैं कि भाई के जीवन के कठिन हालातों में उसका मार्गदर्शन करते रहना। अगर मै लौटकर आया तो निश्चित तौर पर बातें करने को काफी कुछ होगा... लेकिन कारगिल का महानायक हमेशा के लिए भारत मां के आंचल में सो गया।
Published on:
03 Jul 2023 01:17 pm
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