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Light Pollution: हमें अंधा कर रही है एलईडी बल्ब की रोशनी, जानिए इन जगमगाते रातों की स्याह सच्चाई

जब हम प्रदूषण की बात करते हैं तो सबसे पहले हमारे ज़ेहन में चार प्रकार के प्रदूषण की बात ही आती है। वो है वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा (भूमि) प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण। मगर इसके अलावा एक और प्रदूषण भी हमारे आसपास बेहद तेजी से फैल रहा है जिसकी तरफ कभी हमारा ध्यान ही नहीं जाता। जी हाँ हम बात कर रहे हैं प्रकाश प्रदूषण की।

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Light Pollution: हमें अंधा कर रही है एलईडी बल्ब की रोशनी

Light Pollution: हमें अंधा कर रही है एलईडी बल्ब की रोशनी

light pollution: आजकल शहरों की सड़कें शाम होते ही एलईडी लाइट की रोशनी में जगमगाने लगती हैं। दरअसल सरकार बिजली के खर्चे में कमी लाने की कोशिश में है। इसी क्रम में सड़कों, पार्कों, सरकारी दफ्तरों समेत तकरीबन हर जगह एलईडी लाइट के उपयोग पर जोर दिया जा रहा है। आलम ये है एलईडी लाइट का इस्तेमाल अब गाँवों में भी हो रहा है। गाँवों की सड़कें, रास्ते और सार्वजिनक जगह भी एलईडी लाइट की रोशनी से जगमगा रहे हैं। वजह ये है कि सोडियम लाइट की तुलना में एलईडी लाइट में ऊर्जा की खपत 40 प्रतिशत तक कम हो जाती है। ये बात तो सही है कि एलईडी लाइट में ऊर्जा की खपत कम होती है। मगर इससे होने वाले प्रकाश के कुछ नुकसान भी हैं। जिसे हम प्रकाश प्रदूषण कह सकते हैं।

माइग्रेन जैसी शिकायतों की वजह प्रकाश प्रदूषण

हालांकि अभी प्रकाश प्रदूषण को लेकर लोग ज्यादा जागरूक नहीं हुए हैं। एलईडी में कोल्ड ब्ल्यू वेवलेंथ की रोशनी होती है। यह वे तरंगें हैं जो प्रकाश के प्रदूषण को तेज करती हैं। चूंकि एलईडी लाइट ऊर्जा की खपत कम करती है इसलिए इनका जमकर इस्तेमाल हो रहा है। शॉपिंग माल्स, सिनेमा हॉल और बाजारों में भी चौंधिया देने वाली रोशनी का रिवाज आम हो चुका है। जाहिर है कि इसके कुछ दूसरे नतीजे भी होंगे जिसे हम प्रकाश प्रदूषण कहते हैं। आज माइग्रेन, सिर दर्द, थकावट, चिड़चिड़ापन जैसी शिकायत बढ़ती जा रही है। जिसकी एक बड़ी वजह प्रकाश प्रदूषण भी है।

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पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ रहा असर

प्रकाश प्रदूषण एक ऐसी समस्या है जिसका तात्कालिक रूप में इंसानी जिन्दगी, स्वास्थ्य या पर्यावरण पर कोई असर नहीं भले ही न दिखे मगर दीर्घकालिक रूप में ये हमें और हमारे आस-पास के पर्यावरण पर बेहद प्रभाव डाल रहा है। यहां एक बात और ध्यान देने वाली है कि, प्रकाश प्रदूषण का असर इंसानों से ज्यादा पशु-पक्षियों, वनस्पतियों और हमारे पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ रहा है।

दो तरह के विजन

इंसान की आंखों में दो तरह के विजन होते हैं- 1. कोन विजन और 2. रॉड विजन। जब हम रोशनी में चीजों को देखते हैं तो हमारी आंखें कोन विजन का इस्तेमाल करती है और जब हम अंधेरे में देखते हैं तो उस समय हमारी आंखें रॉड विजन मोड में होती हैं। 2001 में अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी में हुए शोध के मुताबिक वहां के चकाचौंध भरे जीवन की वजह से वहां रहने वाले लोगों में रॉड विजन का प्रयोग ही नहीं हो रहा जिसके चलते ये धीरे-धीरे काम करना बंद कर रहा है। यानि आंखों की रात में देखने की क्षमता खत्म होती जा रही है और अगर दिन और रात तकी रोशनी में अंतर नहीं रहा तो आने वाले समये में इंसान, अंधेरे में देखने के कबिल ही नहीं रह जाएगा।

रात के अंधरे में बनता है मेलाटोनिन हार्मोन

हमारे शरीर में मेलाटोनिन नामक एक हार्मोन का निर्माण तभी संभव है जब हमारी आंखों को अंधेरा होने का संकेत मलता है। मेलाटोनिन का काम शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता से लेकर कोलेस्ट्राल में कमी लाना है साथ ही स्वस्थ शरीर के लिए अहम कुछ और कामों को भी ये करता है।

पशु-पक्षियों पर भी पड़ रहा असर

ये तो रही इंसानों की बात, प्रकाश प्रदूषण जानवरों, वनस्पतियों और नदियों तक पर भी अपना असर डालता है। लखनऊ विश्वविद्यालय में जंतु विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोसफर डॉ गीतांजलि मिश्रा के मुताबिक आदमियों ने अपनी परिधि बढ़ा ली है जिससे जानवरों के प्राकृतिक वास में दिक्कत आ रही है। महानगरों में रात भर लाइट चकाचौंध के चलते निशाचर प्राणियों की फीडिंग से लेकर री-प्रोडक्शन तक सब कुछ फ्राभावित हो रहा है और उनके खत्म होने की संभावना बढ़ती जा रही है। जिसमें चमगादड़, मेढक, विभिन्न प्रकार के कीड़े-मकोड़े आदि शामिल हैं।

ये प्राणी और कीड़े-मकोड़े हमारी प्रकृति में संतुलन स्थापित करते हैं। शहरों में रहने वाले परिंदों और जानवरों जेसे कुत्तों, बिल्ली, गाय, भैंस आदि के सोने का अभ्यास बदल गया है। रात में कुत्तों के काटने की घटनाएं बढ़ने लगी हैं। आसमान में उड़ने वाले परिंदे अक्सर अपना ठिकाना बदलते हैं जैसे साइबेरियन पक्षी वगैरह। ये चांद और सितारों की स्थिति से अपने गंतव्य स्थान तक पहुँचते हैं मगर कृत्रिम रोशनी की अधिकता से ये अपने रास्ते भटक जाते हैं।

बीबीएयू में इनवॉयरमेंटल साइंटिस्ट डॉ वेंकटेश दत्ता के मुताबिक प्रकाश प्रदूषण का इंसानी स्वास्थ्य पर तत्काल असर तो नहीं दिखाई देता। लेकिन धीरे-धीरे ये हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। नदियों और वनस्पतियों पर भी इसका असर पड़ रहा है। रात में कृत्रिम प्रकाश की वजह से वनस्पतियों और नदियों में पैदा होने वाली पे पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बढ़ जाती है। दरअसल कृत्रिम रोशनी की अधिकता की वजह से ये पौधे दिन और रात में फर्क ही नहीं कर पाते जिससे नदियों में शैवाल बढ़ने लगते हैं। जिससे नदियों का बहाव बधित होता है, उसमें ऑक्सीजन की कमी होने लगती है, कार्बन डाई-ऑक्साइड बढ़ने लगता है। कृत्रिम रोशनी में रहने वाले पौधों का विकास देर से हाने लगा है।

डॉ दत्त का कहना है कि, चूंकि प्रकाश प्रदूषण के क्षेत्र में बेहद कम शोध हुआ है इसलिए इस बारे में लोगों की जानकारी बेहद कम है। अब तक प्रकाश प्रदूषण को मापने की कोई विधि इजाद नहीं हुई है। मगर ये धीरे-धीरे हमारे पर्यावरण और पारिस्थितिकीय संतुलन को प्रभावित कर रहा है। हम इसे रोक भले नहीं सकते मगर कुछ सावधानियों से इसके दुष्प्रभावों को खत्म या कम कर सकते हैं। याद रखिये कि हम जितना ज्यादा लाइट जलाते हैं ग्रीन हाउस उत्सर्जन उतना ही ज्यादा होता है।

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लखनऊ विश्वविद्यालय में जन्तु विज्ञान विभाग में प्रोफेसर डॉ गीतांजलि मिश्रा के मुताबिक, प्रकाश प्रदूषण को रोका नहीं जा सकता। लेकिन इंसानों को अपना दायरा समझना होगा और उसी में रहना होगा। ये धरती सभी प्राणियों की है और हमें उनके क्षेत्र और उनकी प्राकृतिक जरूरतों और आवास को समझना होगा। तभी इस ग्रह के सभी प्राणी साथ रह सकते हैं। अन्यथा प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाएगा जिसका गंभीर खामियाजा हमारी आने वाली पीढ़ी भुगतेगी।









“चूंकि प्रकाश प्रदूषण के क्षेत्र में बेहद कम शोध हुआ है इसलिए इस बारे में लोगों की जानकारी बेहद कम है। अब तक प्रकाश प्रदूषण को मापने की कोई विधि इजाद नहीं हुई है। मगर ये धीरे-धीरे हमारे पर्यावरण और पारिस्थितिकीय संतुलन को प्रभावित कर रहा है। हम इसे रोक भले नहीं सकते मगर कुछ सावधानियों से इसके दुष्प्रभावों को खत्म या कम कर सकते हैं। याद रखिये कि हम जितना ज्यादा लाइट जलाते हैं ग्रीन हाउस उत्सर्जन उतना ही ज्यादा होता है।”


- डॉ वेंकटेश दत्ता, इनवॉयरमेंटल साइंटिस्ट, बीबीएयू, लखनऊ










“प्रकाश प्रदूषण को रोका नहीं जा सकता मगर इंसानों को अपना दायरा समझना होगा और उसी में रहना होगा। ये धरती सभी प्राणियों की है। हमें उनके क्षेत्र और उनकी प्राकृतिक जरूरतों और आवास को समझना होगा, तभी इस ग्रह के सभी प्राणी साथ रह सकते हैं। अन्यथा प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाएगा जिसका गंभीर खामियाजा हमारी आने वाली पीढ़ी भुगतेगी।”


- डॉ गीतांजलि मिश्रा, एसोसिएट प्रोफेसर, जंतु विज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय