
Maha Shivratri
लखनऊ , ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं,उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात्। पंडित शक्ति मिश्रा ने बतायाकि सनातन धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है। Lord Shiva की आराधना का यह विशेष पर्व माना जाता है। पौराणिक तथ्यानुसार इस दिन (Maha Shivratri) भगवान शिव के रूप में उत्पत्ति हुई थी। प्रमाणान्तर से इसी दिन Lord Shiva का देवी पार्वती से विवाह हुआ है। अतः सनातन धर्मावलम्बियों द्वारा यह व्रत एवं उत्सव दोनों रूप में अति हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
इस वर्ष कुछ पंंचांगकारोंं एवं धर्माधिकारियों के द्वारा इस पर्व की तिथि को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है। इस सम्बन्ध में कुछ लोग 13 फरवारी तो कुछ लोग 14 फरवरी को इसके आयोजन एवं अनुष्ठान का उपदेश कर रहे हैं। परन्तु हमारी सनातन व्यवस्था में इसका ठीक-ठीक निर्धारण ज्योतिष एवं धर्मशास्त्र के सामञ्जस्य से ही सम्भव है।
कैसे करें शिव उपासना
फाल्गुन कृष्णपक्ष की चतुर्दशी Maha Shivratri होती है। परन्तु इसके निर्णय के प्रसंग में कुछ आचार्य प्रदोष व्यापिनी चतुर्दशी तो कुछ निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी में Maha Shivratri मानते है। परन्तु अधिक वचन निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी के पक्ष में ही प्राप्त होते है। कुछ आचार्यों जिन्होने प्रदोष काल व्यापिनी को स्वीकार किया है
वहाॅं उन्होने प्रदोष का अर्थ ‘अत्र प्रदोषो रात्रिः’ कहते हुए रात्रिकाल किया है। ईशान संहिता में स्पष्ट वर्णित है कि ‘‘ फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्याम् आदि देवो महानिशि। शिवलिंगतयोद्भूतः कोटिसूर्यसमप्रभः।। तत्कालव्यापिनी ग्राहृा शिवरात्रिव्रते तिथिः।।’ फाल्गुनकृष्ण चतुर्दशी की मध्यरात्रि में आदिदेव भगवान शिवलिंग रूप में अमितप्रभा के साथ उद्- भूूूत हुए अतः अर्धरात्रि से युक्त चतुर्दशी ही शिवरात्रि ? व्रत में ग्राहृा है।
(फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्याम् आदि देवो महानिशि।
शिवलिंगतयोद्भूतः कोटिसूर्यसमप्रभः।।
तत्कालव्यापिनी ग्राह्या शिवरात्रिव्रते तिथिः।।)
फाल्गुन कृष्ण ? चतुर्दशी की मध्यरात्रि में आदिदेव भगवान शिवलिंग रूप में अमितप्रभा के साथ उद्भूूूत हुए अतः अर्धरात्रि से युक्त चतुर्दशी ही Lord Shiva व्रत में ग्राह्य है इसलिये धर्मसिन्धु ओर निर्णय सिंधु के मत अनुसार निशीथव्यापिनी फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के दिन Maha Shivratri का व्रत एवं रात्रि चार पहर पूजन किया जाता है।
पंडित शक्ति मिश्रा ने बतायाकि चतुर्दशी की धीरे धीरे बदलती स्थितियों में इस व्रत का निर्णय धर्मशास्त्रों ने इस प्रकार से किया है।
1 यदि चतुर्दशी पहले ही दिन निशीथव्यापिनी हो तो व्रत पहले ही दिन।
2 यदि चतुर्दशी दूसरे दिन निशीथव्यापिनी हो तो व्रत दूसरे दिन।
3 यदि चतुर्दशी दोनो ही दिन निशीथव्यापिनी नाहो तो व्रत दूसरे दिन।
4 यदि चतुर्दशी दोनो ही दिन निशीथ को पूरी तरह या आंशिक रूप से व्याप्त करे तो भी व्रत दूसरे दिन।
5 यदि चतुर्दशी दूसरे दिन निशीथ के एकदेश को और पहले दिन सम्पूर्ण भाग को व्याप्त करे तो व्रत पहले दिन।
6 यदि चतुर्दशी पहले दिन निशीथ के एकदेश को और दूसरे दिन सम्पूर्ण भाग को व्याप्त करे तो व्रत दूसरे दिन।
अतः धर्मशास्त्रीय उक्त वचनों के अनुसार इस वर्ष दिनांक 13-2-2018 ई. को चतुर्दशी का आरम्भ रात्रि 10:34 बजे हो रहा है तथा इसकी समाप्ति अग्रिम दिन दिनांक14-2-2018 ई. को रात्रि 12 :45मिनट पर हो रही है अतः" एकैक व्याप्तौ तु निशीथ निर्णयः’’ इस धर्मशास्त्रीय वचन के अनुसार चतुर्दशी 13 February को निशीथ काल एवं 14 February को प्रदोष काल में प्राप्त हो रही है ऐसे स्थिति में निशीथ के द्वारा ही इस वर्ष Maha Shivratri का निर्णय किया जाएगा।
निशीथ का अर्थ सामान्यतया लोग अर्धरात्रि कहते हुए 12 बजे रात्रि से लेते है परन्तु निशीथ काल निर्णय हेतु भी दो वचन मिलते है धर्माचार्यो के मतानुसार रात्रिकालिक चार प्रहरों में द्वितीय प्रहर की अन्त्य घटी एवं तृतीय प्रहर के आदि की एक घटी को मिलाकर दो घटी निशीथ काल होते है। पंडित शक्ति मिश्रा ने कहाकि मध्यांतर से रात्रि कालिक पन्द्रह मुहूर्त्तों में आठवां मुहूर्त निशीथ काल होता है। इसलिये स्पष्ट रूप से धर्मशास्त्रीय वचनानुसार दिनांक 13 February को ही Maha Shivratri व्रतोत्सव मनाया जाएगा।
Updated on:
13 Feb 2018 03:36 pm
Published on:
13 Feb 2018 03:14 pm
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