“क्वांटम फील्ड सिद्धान्त के अनुसार, सृजन और विनाश का नृत्य ही हमारे अस्तित्व का मूल आधार है। आधुनिक भौतिकी ने इस बात को सिद्ध कर दिया है कि, प्रत्येक सबएटॉमिक कण सिर्फ ऊर्जा का प्रवाह ही नहीं बल्कि एक ऊर्जा का नृत्य भी है जो सृजन और विनाश के प्रसंस्करण की प्रक्रिया है। इसीलिए आधुनिक भौतिकविदों के लिए भगवान शिव का नृत्य, परमाणु पदार्थ का नृत्य है, जो समस्त अस्तित्व और सभी प्राकृतिक घटनाओं का आधार है।”
hiv Tandav: भगवान शिव के ताण्डव से आती है प्रलय, वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है ये ‘सच’
Shiv Tandav: महाशिवरात्रि आने वाली है। प्रदेश और देश भर के सभी शिव मंदिरों में इसकी तैयारी शुरू हो चुकी है। शिव की नगरी काशी में भी जोर-शोर से तैयारियाँ शुरू हो गयी हैं। भगवान शिव का एक रूप नटराज का भी है। यह वो रूप है जिसमें महादेव ताण्डव नृत्य कर रहे होते हैं। अब तो दुनिया के वैज्ञानिकों ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया है कि शिव के ताण्डव से सच में प्रलय आती है। स्विट्जरलैण्ड के जेनेवा में स्थित दुनिया के सबसे बड़े भौतिकी प्रयोगशाला ‘सर्न’ के बाहर एक विशाल मूर्ति लगी है। ये मूर्ति है ‘नटराज’ की। नटराज यानि भगवान शिव की ताण्डव करते हुए मुद्रा। आपका बता दें कि ‘सर्न’ यानि यूरोपियन ऑर्गनाइज़ेशन फॉर न्यक्लियर रिसर्च, वही प्रयोगशाला है जहां ‘लॉर्ज हैड्रॉन कोलाइडर’ के द्वारा “गॉड पार्टिकल” की खोज की गयी थी।
सवाल ये है कि इस वैज्ञानिक प्रयोगशाला के बाहर भगवान शिव के नटराज स्वरूप की प्रतिमा आखिर क्यों लगी है। इसका उत्तर आपको मूर्ति के पास लगे पट्टिका पर मिल जाएगा। इस पट्टिका पर विख्यात भौतिक विज्ञानी प्रोफेसर फ्रित्जोफ कापरा की किताब “द ताओ ऑफ फिजिक्स” की कुछ पंक्तियां लिखी हैं। आपको बता दें कि प्रोफेसर फ्रित्जॉफ कापरा की किताब, “The Tao of Physics: An Exploration of the Parallels between Modern Physics and Eastern Mysticism, पहली बार 1975 में प्रकाशित हुई थी और आज भी दुनिया भर के 40 संस्करणों में छप रही है।
प्रोफेसर कापरा ने अपनी किताब में इस बात को स्वीकार किया है कि, “शिव का नृत्य सभी अस्तित्व का आधार है”। उन्होंने किताब में लिखा है कि, “शिव हमें यह याद दिलाते हैं कि, हम अपने आस-पास की दुनिया में जो कुछ भी देखते हैं वो सब मौलिक नहीं हैं, बल्कि ये भ्रम है जो हमेशा बदलता रहता है। आधुनिक भौतिकी ने सिद्ध किया है कि सृजन और विनाश की लय केवल बदलते मौसम और सभी जीवित प्राणियों के जन्म और मृत्यु में ही प्रकट नहीं होती है, बल्कि यह पूरी सृष्टि का मूल भी है।”
उन्होंने आगे लिखा है कि, “क्वांटम फील्ड सिद्धान्त के अनुसार, सृजन और विनाश का नृत्य ही हमारे अस्तित्व का मूल आधार है। आधुनिक भौतिकी ने इस बात को सिद्ध कर दिया है कि, प्रत्येक सबएटॉमिक कण सिर्फ ऊर्जा का प्रवाह ही नहीं बल्कि एक ऊर्जा का नृत्य भी है जो सृजन और विनाश के प्रसंस्करण की प्रक्रिया है। इसीलिए आधुनिक भौतिकविदों के लिए भगवान शिव का नृत्य, परमाणु पदार्थ का नृत्य है, जो समस्त अस्तित्व और सभी प्राकृतिक घटनाओं का आधार है।”
प्रोफेसर फ्रित्जॉफ कापरा के इस विषय को गहराई से समझने के लिए आइए पहले फेयनमैन्स डायग्राम को समझते हैं। सन् 1948 में, भौतिक वैज्ञानिक रिचर्ड फेयनमैन ने पहली बार फेयनमैन्स डायग्राम को दुनिया के सामने लाया था। दरअसल यह डायग्राम sub-atomic कणों के व्यवहार का चित्रण करता है। विज्ञान की भाषा में, कहें तो सब एटॉमिक कणों में कुछ पारस्परिक क्रियाओं के परिणामस्वरूप मौलिक कण समाप्त हो जाते हैं और उनका स्थान नए सब एटॉमिक कण ले लेते हैं। इस प्रकार सब एटॉमिक कणों के विनाश और निर्माण की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है, जिसे हम ऊर्जा-नृत्य यानि energy dance भी कहते हैं।
इसी ऊर्जा नृत्य यानि एनर्जी डांस की तुलना प्रोफेसर कापरा ने भगवान शिव के नृत्य से की है। वे कहते हैं कि, “सभी सब-एटॉमिक कण केवल ऊर्जा नृत्य नहीं कर रहे हैं, अपितु वह स्वयं में भी ऊर्जा नृत्य है। यह एक ऐसी लय और प्रलय यानि सृजन और विनाश की प्रक्रिया, जो निरन्तर गतिमान है। उन्होंने लिखा है कि, “भौतिक वैज्ञानिकों के लिए भगवान शिव का नृत्य ऐसे ही सब-एटॉमिक परमाण्विक कणों का नृत्य है। हिन्दू मत के अनुसार यह सृष्टि के प्रलय और सृजन की प्रक्रिया का निरन्तर गतिमान रहने वाला नृत्य है, जो कि सम्पूर्ण जगत का आधार है।
प्रोफेसर कापरा ने आगे लिखा है कि, “इसके अतिरिक्त भगवान शंकर का बाह्य रूप भी सांकेतिक है। भगवान शिव को उमा अर्थात् पृथ्वी और समस्त प्रजातियों का रक्षक कहकर भी संबोध्ति किया जाता है। वे अपने चार हाथों से सम्पूर्ण चराचर जगत की रक्षा कर रहे हैं। शिव जी का ऊपरी दायां और बायां हाथ फेयनमैन्स डायग्राम में घटित प्रक्रिया को दर्शाता है। उनके ऊपरी दाएं हाथ में डमरू विराजमान है- जो सृजनात्मक ध्वनि का प्रतिनिधित्व करता है। वह नाद, जिसके द्वारा सृष्टि का सृजन होता है। ऊपरी बाएं हाथ में उन्होंने अग्नि की ज्वालाओं को धरण किया हुआ है- जो प्रलय का प्रतीक है। ठीक यही प्रक्रिया तो फेयनमैन्स डायग्राम में घटित होती है। दो सब-एटॉमिक कणों- इलैक्ट्रॉन और प्रोटॉन का लय हुआ। और नए कणों क्वार्क और एंटी-क्वार्क का निर्माण हुआ।
प्रोफेसर कापरा कहते हैं कि, “यहाँ एक बात और भी ध्यान देने वाली है कि जिस प्रकार दो सब-एटॉमिक कणों के लय और नये सब-एटॉमिक कणों के निर्माण के मध्य में वर्चुअल फोटॉन होता है। ठीक उसी प्रकार भगवान शिव का ऊपरी दायाँ हाथ, जो सृजन को दिखाता है और ऊपरी बायाँ हाथ, जो प्रलय को दिखाता है, के बीच उनका जागृत चेतन-स्वरूप है। और यह जागृत चेतन स्वरूप ही वर्चुअल फोटॉन यानि निराकार प्रकाश का द्योतक है।
उन्होंने आगे लिखा है कि, “इन समस्त तथ्यों से यह भी स्पष्ट होता है कि विज्ञान को अध्यात्म द्वारा ही पूर्णरूपेण समझा जा सकता है”। विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय पर प्रकाश डालते हुए प्रो. कैपरा कहते हैं कि, “वैज्ञानिकों को इस भय से कि उनकी सोच वैज्ञानिक नहीं रहेगी, धार्मिक या आध्यात्मिक रूपरेखा को अपनाने से परहेज करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि भौतिक विज्ञान स्वयं स्पष्ट कर देगा कि आध्यात्मिक रूपरेखा केवल वैज्ञानिक ही नहीं है, अपितु वह आज के उन्नत वैज्ञानिक सिद्धान्तों के अनुरूप भी है”।