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साड़ियों पर है महेश्वर के किले और नर्मदा की शान

विश्व प्रसिद्ध महेश्वरी साड़ी पर व्याख्यान हुआ

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साड़ियों पर है महेश्वर के किले और नर्मदा की

ritesh singh
लखनऊ । महेश्वरी साड़ियां देवी अहिल्या बाई की देन है। उनकी प्रेरणा से साड़ी पर महेश्वर के किले की डिजाइने, नर्मदा के मनोरम घाट उकेरे गए। महेश्वरी साड़ियां मशहूर फिल्म अभिनेत्री विद्याबालन को इतनी अधिक पसंद आयी कि उन्होंने महेश्वर जाकर इस कला के बारे में विस्तार से जाना। आज भी विवाह समारोहों में बहु का स्वागत और विदाई महेश्वरी साड़ी में करने की प्रथा है।

मृगनयनी, मध्य प्रदेश शासन, हस्तशिल्प एवं हथकरघा विकास विभाग की ओर से अलीगंज के ललित कला अकादमी में हस्तकला प्रदर्शनी का आयोजन 20 अक्टूबर से 2 नवम्बर तक किया गया है। इस दौरान व्याख्यानों की श्रंखला आयोजित की गई है। इस कड़ी में विश्व प्रसिद्ध महेश्वरी साड़ी पर व्याख्यान हुआ। महेश्वरी साड़ी के नेशनल अवार्डी अहमद हुसैन अंसारी ने बताया कि महेश्वर शहर मध्य प्रदेश के खरगोन जिला में है।

महेश्वर का सम्बंध हैहयवंशी राजा सहस्रार्जुन से है जिसने रावण को पराजित किया था। महान देवी अहिल्याबाई होल्कर के काल 1764 - 1795 में हैदराबादी बुनकरों ने "महेश्वरी साड़ी" का देश विदेशों तक में पहुंचा दिया। कहा जाता है नर्मदा के पास तांबें की सुइयां पाई गई थी जिसे वहां के “रहवासी” महारानी के पास लेकर गए तो महारानी अहिल्याबाई ने उन्हें पारंपरिक बुनाई की परंपरा को नए अंदाज में तैयार करने के लिए प्रेरित किया। राजसी में हस्तकला ने विकास किया। एक बार जब महारानी के लिए साड़ी बुनकरों ने तैयार की तो उसकी डिजाइन बिगड़ गई तो महारानी ने कलाकारों का उत्साह बढ़ाते हुए उसे “बुगड़ी” का नाम दिया वहीं जो सर पर सजी उसे पगड़ी पुकारा।

आज भी बुगड़ी नाम से महेश्वरी साड़ी की डिजाइनें मशहूर हैं। बुनकरों ने मुख्य रूप से महेश्वर किले की दीवारों पर उकेरी गई डिजाइनों को साड़ियों में उकेरा। वर्तमान में इंदौर राजवंश के युवराज रिचर्ड होलकर 'रेवा सोसाइटी' नाम से पारंपरिक महेश्वर साड़ियों के पारंपरिक रूप को विश्व भर में लोकप्रिय कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि 19वीं सदी में गर्भ रेश्मी साड़ियों के रूप में महेश्वर साड़ियों की खासी मांग रही। बाद में सिल्क और काटन के संयोजन से तैयार महेश्वर साड़ियां नीम रेशमी के रूप में लोकप्रिय हुईं।

अधिकतर महाराराष्ट्र के पारंपिक परिवारों में आज भी दुल्हन महेश्वरी साड़ी में ही विदा होती है। उनके अनुसार हरे रंग वाली दालिम्बी साड़ी में बहु विदा की जाती है वहीं अनारी गुलाबी रंग की साड़ी में बहु का परिवार में स्वागत किया जाता है। डिजाइनों में नर्मदा के घाट, मेंहदी से भरे हाथ तक बनाए जा रहे हैँ। मृगनयनी प्रदर्शनी के संयोजक एम.एल.शर्मा ने बताया कि इस प्रदर्शनी का मकसद मध्य प्रदेश की हस्तकलाओं का प्रचार प्रसार और लोगों को मूल कलाकारी से परिचित करवाना है।