बांदी थी चांदी की राखी

बेशक मायावती ने लालजी टंडन की कलाई पर चांदी की राखी बांधी हो लेकिन इस रिश्ते को आगे भुनाने में असफल रहीं। अगले ही वर्ष उनके भाई लालजी टंडन रक्षाबंधन पर उनकी राह देखते रहे लेकिन बहन जी नहीं आयीं। बहन का दिल एक ही वर्ष में अपने बुजुर्ग भाई से ऊब गया और उसने भाई से किनारा कर लिया।
राजनैतिक जानकार मानते हैं कि उस दौरान यह रिश्ता इसलिए बना था ताकि मायावती के खिलाफ भाजपा कोई ठोस कदम न उठाए साथ ही चुनावों में भी पूरी मदद मिले। अतः राजनैतिक उद्देश्य को साधने के लिए बनाया गया रिश्ता कुछ ही समय में टूट गया।
हालाँकि प्रदेश से लेकर दिल्ली तक मायावती को लोग बहनजी के नाम से पुकारते हैं लेकिन लालजी टंडन शायद अब उन्हें बहन नहीं कहना चाहते। इनके अलावा ब्रह्मदत द्विवेदी को भी मायावती सामाजिक तौर पर भाई कह चुकी हैं जिनसे उन्होंने काफी हद तक रिश्ता निभाया भी है।