20 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

…आज भी बगल में पुरुष के बैठते ही बदल लेती हूं सीट

आठ साल की उम्र में चाचा के साथ भयावह बस यात्रा को याद कर सिहर उठती है यह महिला पत्रकार, #MeToo के साथ शेयर किया दर्द

2 min read
Google source verification

लखनऊ

image

sanjiv mishra

Oct 17, 2017

me too

MeToo

लखनऊ. वह पत्रकारिता की छात्रा रही हैं। आज लखनऊ में एक बड़े समाचार पत्र समूह की पत्रकार हैं। बड़े-बड़ों को चुटकियों में जवाब दे लेती है, पर बचपन की एक घटना ने उन्हें जिंदगी भर का दर्द सा दे दिया है। जब दुनिया भर में महिलाओं ने #MeToo हैशटैग के साथ अपने साथ हुई अप्रिय घटनाओं का खुलासा करना शुरू किया तो यह पत्रकार भी सामने आयीं। उन्होंने बताया कि आठ साल की उम्र में गांव से शहर की बस यात्रा के दौरान उनके एक चाचा ने उन्हें गोद में बिठाकर जो हरकतें कीं, उन्हें याद कर आज भी वह सिहर उठती हैं। हालत ये है कि यदि वह बस से कहीं जा रही होती है और बगल में कोई पुरुष बैठ जाता है तो सीट बदल लेती हैं। यहां पढ़िए, महिला पत्रकार का दर्द, उनकी ही जुबानी।


वो मेरे ही चाचा थे
उस समय मेरी उम्र आठ साल के आसपास रही होगी। मैं दशहरे की छुट्टियां ख़त्म कर अपनी पढ़ाई के लिए गांव से शहर जा रही थी। मेरे मेरे साथ मेरी बड़ी बहन और भाई भी थे। बस में भीड़ अधिक थी, इस बीच वहीं मेरे गांव के एक चाचा दिख गए। दीदी व भइया ने मुझे उनके पास बिठा दिया। उस आदमी ने कुछ देर तो बहुत अच्छे तरीके से बात की किन्तु बस चलते ही वो मुझे गलत तरीके से छूने लगा। अपना हाथ कभी मेरी कमर में डालता तो कभी मुझे गंदे तरीके से पकड़ता। बस एक स्टॉप पर रुकी और बस में बहुत से यात्री और चढ़े। हर स्टॉप के साथ भीड़ बढती ही जा रही थी और साथ ही उसकी हरकतें भी रफ्तार पकड़ रही थीं। हद तो तब हो गई जब एक आंटी को सीट देने के बहाने उसने मुझे अपनी गोद में बैठा लिया। इसके बाद मुझे अपने कंधे पर सुलाते हुए अपना हाथ मेरी पीठ पर फेरने लगा। मैं चुपचाप यह सब बर्दाश्त करने को मजबूर थी।


आज भी डरी हुई हूं
मैं हर पल कांप सी रही थी। इसी बीच वह बस स्टॉप आ गया, जहां हमें उतरना था। दीदी मेरे पास आयीं तो मैं उनसे चिपक सी गयी। वह चाचा भी चला गया किन्तु मैं उसे कभी भूल नहीं पायी। बचपन की वो घटना मेरे दिमाग में एक दुःस्वप्न की तरह घर कर चुकी है। मैं आज भी इतना डरी हुई हूं कि यदि कहीं बस से जाती हूं तो उस घटना को भुला नहीं पाती हैं। बस में यदि कोई मेरे बगल में आकर बैठ जाता है तो मैं सीट बदल लेतीी हूं। यह स्थिति तब है, जबकि मुझे खुद लगता है कि अब मैं किसी का भी सामना करने और ऐसी कोई हरकत करने पर उसे सबक सिखाने के काबिल हूं। पता नहीं क्यों, बचपन का वो मंजर मेरे दिमाग से जाता ही नहीं है। ऐसा लगता है कि सब कुछ अभी अभी मेरे साथ हुआ है और बगल में बैठा हुआ इंसान वही आदमी दिखने लगता है। मैं नहीं भूल पाती कि वह निहायत घटिया इंसान मेरा चाचा लगता है।