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Mihir Bhoj: मिहिर भोज ने सिंध के शासकों को चेताया था अरब मलेच्छ है, समुद्र से आगे मत बढऩे देना

100 साल और वह सम्राट रहा होता तो भारत का इतिहास, भूमि और भूगोल कुछ और होता। जिसकी जाति को लेकर पश्चिमी यूपी में बवाल चल रहा है। जब नोएडा में मिहिर भोज की प्रतिमा का सीएम योगी ने अनावरण किया था, तब भी गुर्जर लिखे जाने पर आपत्तियां की गई थी। आइए जानते हैं मिहिर भोज कौन थे, क्या था उनका इतिहास...

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मिहिर भोज

Mihir Bhoj: मगध के पतन के बाद उत्तर भारत में साम्राज्य को लेकर महाशक्तियों के बीच जंग छिड़ गई। जिसे त्रिपक्षीय संघर्ष के रुप में इतिहास मेें दर्ज किया है। यह दक्षिण के राष्ट्रकूटों, बंगाल के पाल शासकों और उत्तर भारत के राजपूतों के बीच हुआ। उत्तर भारत की सत्ता के लिए चले इस संघर्ष का केंद्र कन्नौज था।

करीब तीन दशकों तक चले इस संघर्ष में भले ही राष्ट्रकूटों ने विजय पाई हो लेकिन अंतिम विजय प्रतिहार शासक मिहिर कुल की हुई थी। इतिहास गवाह है कि भारत के भाग्य बदलने वाले दो महान सम्राटों का चुनाव करना हो तो पहला यदि समुद्रगुप्त होंगे तो दूसरा महान सम्राट मिहिर भोज का नाम आएगा। जिनका साम्राज्य सौ साल और रहा होता तो वर्तमान भारत का इतिहास, भूमि और भूगोल कुछ और होता।

836 ईसवीं से 885 ईसवी तक मिहिर भोज का शासन काल था, कानपुर के पास कन्नौज इनके शासन की राजधानी थी। इतिहास के अनुसार बंगाल से गुजरात तक, कश्मीर से कर्नाटक तक साम्राज्य फैला था। यही वक्त था जब विदेशी इस्लाम ने अपना पैर भारत में पसारना शुरु किया था। गुजरात के सोमनाथ पर गजनी के आक्रमण शुरू होने की पृष्ठभूमि तैयार होने लगी थी। गुलाम वंश ताक में बैठा था लेकिन मिहिर भोज की तलवारे उन्हें भारत भूमि की तरफ देखने से रोकती रहीं थीं।

सिंध के राजाओं को मिहिर भोज ने किया था आगाह
सिंध क्षेत्र में दाहिर के पूर्वज शासक अरबों पर मेहरबान हो रहे थे। वे अरब व्यापारियों को हर तरह की छूट और सुविधाएं देने लगे थे। इसकी जानकारी जब कन्नोज के शासक मिहिर भोज को हुई तब उन्होंने अपना दूत सिंध के राजाओं को भेजा और चेतावनी दी कि अरबों के प्रति सहानुभूति बंद कर दो। अरब मलेच्छ है और इनको समुद्र से आगे मत बढऩे देना।

लेकिन सिंध के राजाओं ने मिहिर की सलाह को अनसुना कर दिया था। परिणाम क्या हुआ यह इतिहास में दर्ज हो चुका है। हांलाकि इतिहासवेत्ताओं का यह भी मानना है कि मिहिर भोज ने अपनी चेतावनी को अनसुना करने पर सिंध के राजाओं को सबक सिखाया था। प्रयाग विश्वविद्यालय के इतिहास लेखक अवनीश पाण्डेय कहते हैं कि ‘केरल में पहली मस्जिद बन चुकी थी, लेकिन बाद में इस्लाम ने भारत में जैसा कहर बरपाया वह नहीं हो पाया होता अगर मिहिर भोज की चेतावनी को सुन लिया गया होता।’

शुद्ध राष्ट्रवादी महान शासक पर राजनीति क्यों
निसंदेह मिहिर भोज महान शासक थे, उनको जाति के छोटे से दायरे में कैद करना उनके साथ अन्याय है। चालुक्य, चौहान, चंदेह, तोमर की तरह ही गुर्जर भी क्षत्रिय थे और इतिहास के उत्थान-पतन में समान रुप से भागीदार थे। सुप्रसिद्ध इतिहास लेखक वीडी महाजन का प्राचीन भारत देखें तो मिहिर भोज प्रतिहार वंश के सबसे शक्तिशाली शासक थे।

प्रतिहार शासक खुद की उत्पति अयोध्या से बताते हैं, इसमें वह लक्ष्मण को अपने वंश का संस्थापक मानते हैं। भारतीय इतिहास में हर्षवर्धन के बाद का समय राजपूत काल के रुप में जाना जाता है लेकिन राजपूतों की उत्पत्ति पर इतिहासकारों में मतभेद है।

कर्नल जेम्स टॉड अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि राजपूत विदेशी सिथियन जाति के हैं, भारतीय विद्वान आरजी भंडारकर राजपूतों की विदेशी उत्पत्ति का समर्थन करते हैं। जबकि गौरीशंकर ओझा, सीवी वैद्य और कुछ इतिहासकार राजपूतों के विदेशी उत्पत्ति को खारिज कर देते हैं।

अग्रि कुंड का वर्णन
पृथ्वीराज रासो में अग्रिकुंड का वर्णन किया गया है जिसमें परमार, प्रतिहार, चौहान और चालुक्य का जिक्र मिलता है। इतिहासकार इन चारों की उत्पत्ति गुर्जर कुल से मानते हैं। जबकि एक अन्य इतिहासकार जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हरवंश मुखिया के अनुसार आज जो गूजर या गुर्जर हैं, उनका संबंध गुर्जर प्रतिहार वंश से हैं। गुर्जर और प्रतिहार अलग-अलग नहीं है, बल्कि एक ही कुल की उत्पत्ति हैं।