
24 नवंबर को जामा मस्जिद प्रशासन ने एक नोटिस जारी किया। इस नोटिस में ये लिखा था कि महिलाएं मस्जिद में अकेले एंट्री नहीं कर सकती। लोग मस्जिद के इस तरह के प्रतिबंधों को हटाए जाने की भी मांग कर रहे हैं। मस्जिद की तरफ से आए इस लिखित नोटिस ने एक बार फिर से महिलाओं के अधिकार को लेकर सवाल खड़ा कर दिया है।
सवाल ये भी है कि क्या इस्लाम भी औरतों को मस्जिद में जाने से रोकता है। कुरान में इसे लेकर क्या लिखा है। यूपी समेत पूरे भारत में ऐसे कितने मस्जिद या मंदिर हैं जहां पर औरतों के जाने की मनाही है, या अलग से इंतजाम किए गए हैं। आइये इन पांच सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं।
जामा मस्जिद के तीनों दरवाजों पर लिखित नोटिस
जामा मस्जिद को 17वीं शताब्दी में मुगलों ने बनाया था। मस्जिद में तीन एंट्री गेट हैं। तीनों दरवाजों पर ये लिखित नोटिस है कि "जामा मस्जिद में लड़के और लड़कियां का अकेले दखल मना है। इसका मतलब है कि मस्जिद में लड़के और लड़की अकेले नहीं जा सकते।
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट में ये बताया गया है कि "मस्जिद एक पूजा स्थल है, और ये जगह नमाजियों का स्वागत करती है। ऐसा देखा गया है कि मस्जिद में लड़कियां अकेले आती हैं और यहां पर डेट करती हैं, या ब्वॉयफ्रेड का इंतजार करती पाई जाती हैं। मस्जिद ने इस बात पर आपत्ति जताते हुए लड़कियों में मस्जिद में आने को लेकर लिखित मनाही दी है।
ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी मस्जिद में औरतों के जाने को लेकर आपत्ति जताई गई है। यूपी समेत पूरे देश में से कई मंदिर भी हैं जहां पर औरतों के जाने की मनाही है। आईये उन धार्मिक स्थलों के बारे में जानते हैं। और ये भी जानने की कोशिश करेंगे कि ऐसा क्यों हुआ।
केरल का सबरिमाला मंदिर, मध्य प्रदेश का जैन मंदिर, पुष्कर का कार्तिकेय मंदिर, और छत्तिसगढ़ का माता मावली मंदिर मंदिरों में औरतों के जाने की मनाही है।
लखनऊ में औरतों की अलग मस्जिद
लखनऊ में औरतों के लिए अलग मस्जिद बनाई जा चुकी है. लेकिन ये सभी मस्जिदें दक्षिण लखनऊ में है. इन मस्जिदों को ऑल इंडिया मुस्लिम वुमेन पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने बनाया है।
शाइस्ता की बनाई इस मस्जिद में कोई बी जा सकता है और नमाज पढ़ सकता है। इसके बावजूद इस मस्जिद में जुमे के दिन औरतें जाती नहीं दिखाई देती हैं।
मेरठ में अलग है औरतों की मस्जिद
मेरठ के अमरोहा मस्जिद में भी औरतों के नमाज पढ़ने के लिए अलग से इंतजाम किए गए हैं। जिसे जनानी मस्जिद के नाम से जाना जाता है, 100 साल पुरानी इस मस्जिद में कम ही औरतें नमाज पढ़ने आती हैं।
फतेहपुर सिकरी में औरतें मस्जिद के अंदर नहीं जा सकती
इस मस्जिद को जहांगीर ने बनाया था। फतेहपुर सिकरी की ये दरगाह सलीम चिश्ती की दरगाह के नाम से मशहूर है। इस मस्जिद में औरतें बाहर से ही नमाज अदा करती हैं, औरतों को अंदर आने की इजाजत नहीं है।
किछौछा शरीफ में औरतें मस्जिद के अंदर नहीं जा सकती
आयोध्या से 52 कीलोमीटर की दूरी पर मौजूद इस दरगाह पर हिंदू-मुस्लिम सभी आते हैं। यहां पर औरतें बाहर बैठ तो सकती हैं , लेकिन दरगाह के अंदर जाने की इजाजत नहीं है।
मथुरा का शाही इबगाह मस्जिद में भी मनाही
शाही ईदगाह मस्जिद श्रीकृष्ण जन्मभूमि के ऊपर बनी हुई है, इसे हटाए जाने की भी मांग होती आई है। यहां पर मस्जिद के अंदर औरतों का जाना मना है। इसे 1661 में अब्न उन नबी खान ने बनाया था।
उत्तर प्रदेश सेंट्रल शिया वक बोर्ड के चेयरमैन सय्यद वसीम रिजवी ये बताते हैं कि , यह एक रिवाज है कि औरतें नमाज पढ़ने मस्जिद नहीं जाती हैं। वो ये भी कहते हैं कि वो जाने लगें तो इंतजाम भी हो जाएंगे। हज के दौरान औरत मर्द एक साथ नमाज पढ़ते हैं। अब काबा शरीफ से बड़ी तो कोई जगह नहीं हैं।
Published on:
26 Nov 2022 01:56 pm
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