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मातृभाषा का दर्जा तो मिल गया लेकिन आज भी अपने सम्मान के लिए चीख रही है हिंदी

भारत की मातृभाषा होने के बावजूद आज भी अपने सम्मान के लिए 'हिंदी' चीख रही है।

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लखनऊ

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Akansha Singh

Sep 15, 2017

hindi diwas

लखनऊ. 1949 में आज ही के दिन यानि 14 सितंबर को हिंदी को भारत की राजभाषा का दर्जा मिला था। तबसे इस दिन को हम Hindi Diwas के रूप में मनाते हैं। भारत की राजभाषा होने के बावजूद आज भी अपने सम्मान के लिए 'हिंदी' चीख रही है। आज हमारी मातृभाषा तो है हिंदी लेकिन लोगों को हिंदी बोलने में शर्म महसूस हो रही है। माता पिता अपने बच्चों को बचपन से ये तो पढ़ा रहे हैं की हमारी मातृभाषा हिंदी है लेकिन बोलचाल में अंग्रेजी को तवज्जो दे रहे हैं।

गायब होती नज़र आ रही है हिंदी

भारत की मातृभाषा होने के बाद भी बोल-चाल की भाषा में हिंदी का पतन होता जा रहा है। आज भारत की राष्ट्रीय भाषा होने के बावजूद हिंदी को वो सम्मान नहीं मिल पा रहा हैं जिसकी वो हक़दार है। आज समाज में हिंदी बोलना लोगों के लिये शर्मनाक साबित हो रहा है। आज बड़े कार्यक्रमों में भाषण अंग्रेजी में दिए जा रहे हैं, क्योंकि हिंदी में भाषण देना अल्पज्ञान का प्रतीक माना जा रहा है। हिंदी की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। हिंदी अपने अस्तित्व को खो रही है। हिंदी चीख चीख कर अपने सम्मान की मांग कर रही है। आज हिंदी विलुप्त होती जा रही है।

क्यों 14 सितम्बर को मानते हैं हिंदी दिवस

बात 1947 की है जब हमारा देश अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ तो देश के सामने भाषा को लेकर सबसे बड़ा सवाल था। भारत में हमेशा से अनेकों तरह की भाषाओँ का उपयोग होता रहा है।

भारत की राष्ट्र भाषा क्या होगी इसके लिए काफी मंथन हुआ। उसके बाद संविधान सभा ने देवनागरी लिपी में लिखी हिंदी को राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार कर लिया। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि इस दिन के महत्व देखते हुए हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाए। पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 में मनाया गया था। बता दें कि साल 1918 में महात्मा गांधी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने को कहा था। इसे गांधी जी ने जनमानस की भाषा भी कहा था।

अग्रेंजी भाषा पर हुआ विरोध

14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में यह निर्णय लिया गया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी। लेकिन इसके परिणाम स्वरुप देश के कई हिस्सों में अंग्रेजी भाषा को हटाए जाने की खबर पर दंगे व विरोध प्रर्दशन शुरू हो गए। इसका सबसे ज्यादा विरोध तमिलनाडू में हुआ। यहाँ जनवरी 1965 में भाषा विवाद को लेकर दंगे हुए।