
अदालत ने कहा-‘जांच में सहयोग नहीं’, सोशल मीडिया टिप्पणी पर बढ़ी कानूनी मुश्किलें (फोटो सोर्स :Facebook News Group)
Neha Singh Rathore anticipatory bail plea rejected: लोकप्रिय लोक गायिका और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर नेहा सिंह राठौर को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से उस समय बड़ा झटका लगा, जब उनकी अग्रिम जमानत याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संदर्भ में की गई कथित अपमानजनक टिप्पणी और सोशल मीडिया पोस्ट से जुड़े मामले में दाखिल अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने स्पष्ट कहा कि याचिकाकर्ता जांच में सहयोग नहीं कर रही हैं, इसलिए उन्हें राहत नहीं दी जा सकती।
जस्टिस बृजराज सिंह की एकल पीठ ने शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि दर्ज मामले में जांच बाधित हो रही है और इस दौर में अग्रिम जमानत का लाभ नहीं दिया जा सकता। हाईकोर्ट के इस निर्णय के बाद हजरतगंज कोतवाली में दर्ज FIR मामले में नेहा सिंह पर गिरफ्तारी की तलवार पहले से अधिक लटक गई है।
नेहा सिंह राठौर के खिलाफ यह FIR अप्रैल 2024 में लखनऊ की हजरतगंज कोतवाली में दर्ज की गई थी। मामला एक सोशल मीडिया पोस्ट से जुड़ा था, जिसमें उन्होंने पहलगाम आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कथित अपमानजनक टिप्पणी की थी।
सरकार की ओर से यह आरोप लगाया गया कि उक्त टिप्पणी में कई तथ्य भ्रामक, उकसाने वाले और अपमानजनक स्वरूप के थे, जिसके कारण शांति व्यवस्था प्रभावित हो सकती थी। इसी आधार पर IPC की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज हुआ।
इन तर्कों को सुनने के बाद अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि जांच में सहयोग न करना गंभीर विषय है। ऐसे में आरोपी को अग्रिम जमानत देना जांच प्रक्रिया को बाधित कर सकता है। यही कारण रहा कि अदालत ने उनके पक्ष में कोई राहत नहीं दी।
यह मामला पहली बार नहीं है जब नेहा सिंह राठौर को अदालत से झटका मिला हो। सितंबर 2024 में हाईकोर्ट की खंडपीठ ने उनकी उस याचिका को भी खारिज कर दिया था जिसमें उन्होंने FIR रद्द करने की मांग की थी। नेहा सिंह ने तर्क दिया था कि उनके बयान “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” के दायरे में आते हैं। किसी भी राजनीतिक टिप्पणी को देशद्रोह या सामाजिक वैमनस्य फैलाने की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, लेकिन अदालत ने मामले को गंभीर मानते हुए हस्तक्षेप से इनकार किया था।
सितंबर में ही मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा था। नेहा ने शीर्ष अदालत से FIR रिकॉर्ड में दखल देने, या कम से कम अंतरिम राहत देने की मांग की थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि FIR की जांच में अदालत का हस्तक्षेप उचित नही। जांच एजेंसी स्वतंत्र रूप से कार्य करेगी। नेहा चाहें तो ट्रायल प्रक्रिया के दौरान आरोप चुनौती दे सकती हैं, लेकिन फिलहाल के लिए किसी अंतरिम राहत का आधार नहीं बनता। इस तरह, शीर्ष अदालत ने भी उन्हें तत्काल राहत देने से इंकार कर दिया था।
लेकिन अदालत ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए भी कहा कि भले ही टिप्पणी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ी हो, लेकिन जांच की प्रक्रिया में सहयोग करना अनिवार्य है। उसके अभाव में अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती।
Published on:
06 Dec 2025 10:51 am
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