मुश्किल यह है कि बीमारी फैलने के बाद ही संबंधित क्षेत्र में स्वास्थ्य महकमा और स्थानीय प्रशासन सतर्क होता है। स्वास्थ्य कैंप लगाये जाते हैं। साफ-सफाई और छिड़काव पर फोकस किया जाता है। अलग-अलग माध्यमों से लोगों को जागरूक किया जाता है। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
सवाल है जब मौसमी बीमारियों का यह सिलसिला हर साल चलता है, तब शासन-प्रशासन इससे सबक लेकर समय रहते ऐसी स्थितियों से निपटने की तैयारियां क्यों नहीं करता? ऐसे में अब जरूरी है कि पूर्वांचल में जिस तरह से इंसेफेलाइटिस के खिलाफ युद्ध स्तर पर काम किया गया, पूरे यूपी में वैसी ही सक्रियता दिखनी चाहिए। पूरब से पश्चिम तक डेंगू जैसी बीमारियों से निपटने के लिए समग्र नीति बनाई जाए। प्रशासन सफाई अभियान चलाकर मच्छरों का खात्मा कर सकता है। इसी तरह नालियों की सफाई कर पानी के जमाव को रोका जा सकता है। लेकिन इसके लिए इच्छाशक्ति चाहिए, न कि कागजी खानापूर्ति।
सरकार के साथ-साथ लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। अपना घर के साथ ही आसपास के इलाके को भी स्वच्छ रखना सभी का नैतिक कर्तव्य है। नालियों को रोजाना साफ करें। कहीं पर भी गंदा पानी न भरने दें। कोशिश करें की घूरा गांव के मुख्य मार्ग से हटकर खेतों में हो। स्वच्छता और सफाई पर सख्त रुख अपनाकर ही वर्षाजनित बीमारियों से रोकथाम संभव है। (ह.ओ.द्वि.)