खालूबार चोटी पर हुए शहीद लेफ्टिनेंट मनोज पाण्डेय को पहली पोस्टिंग श्रीनगर में मिली। यहाँ से उन्हें सियाचिन भेजा गया। इन दोनों स्थानों पर इनकी तैनाती और काम को देखते हुए उन्हें कमांडो ट्रेनिंग के लिए भेज दिया गया। इन सबके बीच मनोज पाण्डेय को जिस दिन का इन्तजार था, वह भी आ गया। कारगिल में हुए घुसपैठ के दौरान मनोज पाण्डेय को कारगिल सेक्टर में तैनाती दी गई। इसी दौरान वे प्रमोट कर कैप्टन बना दिए गए। खालूबार चोटी पर दुश्मन के कब्जे की खबर पर 2 जुलाई 1999 की आधी रात को मनोज पाण्डेय ने अपनी युनिट के साथ धावा बोलकर तीन बंकरों को दुश्मन के कब्जे से मुक्त कराया। खालूबार चोटी के आखिरी बंकर को दुश्मन से मुक्त कराते समय दुश्मन सैनिक की एक गोली ने मनोज को जख्मी कर दिया। परमवीर मनोज पाण्डेय ने 3 जुलाई 1999 को दुनिया को अलविदा कह दिया लेकिन अपने पीछे वे शहादत की अनूठी कहानी लिख गए।
शहादत की मिसाल जब शहीद मनोज पाण्डेय का शव लखनऊ पहुंचा तो पूरा शहर अपने इस परमवीर को आखिरी सलामी देने के लिए उमड़ पड़ा। मनोज पाण्डेय की याद में उनके घर के पास स्थित चौराहे को कैप्टन मनोज पाण्डेय का नाम दिया गया । उनकी विशालकाय मूर्ति लगाईं गई है। इस मूर्ति का अनावरण साल 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने किया था। गोमती नगर स्थित मनोज पाण्डेय चौराहे पर लगी उनकी मूर्ति और इस जगह से कुछ दूरी पर स्थित उनका आवास हर भारतीय को उस अहसास और गर्व की भावना से भर देता है, जिससे देश के लिए अपना सब कुछ बलिदान करने की प्रेरणा मिलती है। मात्र 24 साल की उम्र में देश के लिए अपनी जान लुटाने वाला यह जांबाज आज हर भारतीय के लिए एक मिसाल है।