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विश्व जनसंख्या दिवस : डराते हैं बढ़ती आबादी के ये आंकड़े, जरूरी है परिवार नियोजन

locationलखनऊPublished: Jul 12, 2018 08:14:14 pm

Submitted by:

Hariom Dwivedi

बढ़ती जनसंख्या के कारण देश में संसाधन, रोजगार, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं की बड़े स्तर पर कमी है…

World Population Day

विश्व जनसंख्या दिवस : डराते हैं बढ़ती आबादी के ये आंकड़े, जरूरी है परिवार नियोजन

लखनऊ. विश्व जनसंख्या दिवस (world population day) दुनिया भर में हर वर्ष 11 जुलाई को मनाया जाता है। आज के दिन ही वर्ष 1989 में भारत में सबसे पहले बढ़ती जनसंख्या को लेकर मंथन शुरू हुआ था। तभी से हर 10 साल में देश की आबादी की गणना की जाती है। जनगणना के आधार पर ही केंद्र और राज्य सरकारें योजनाएं बनाती हैं। जनसंख्या दिवस मनाने का उद्देश्य लोगों को बढ़ती जनसंख्या के दुष्परिणामों से सचेत करना और उन्हें परिवार नियोजन (family planning) के बारे में सही जानकारी देना है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत की आबादी एक अरब 21 करोड़ है, जो चीन से महज 10 करोड़ ही कम है। जानकारों की मानें तो अगले छह सालों में हम आबादी के मामले में चीन को पछाड़ देंगे। वहीं, उत्तर प्रदेश की आबादी करीब 21 करोड़ है, जो ब्राजील की आबादी के बराबर है। यह हाल तब है जब वर्ष 1952 में परिवार नियोजन अपनाने वाला भारत दुनिया का पहला देश था। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश की सकल प्रजनन दर (टोटल फर्टिलिटी रेट- टीएफआर) में कमी आई है।
बढ़ती जनसंख्या के कारण देश में संसाधन, रोजगार, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं की बड़े स्तर पर कमी है। अगर स्थिति नियंत्रित नहीं हुई तो हालात और भी मुश्किल ही होंगे। ऐसा नहीं है कि बढ़ती आबादी पर सरकार ने नीतियां नहीं बनाई या मंथन नहीं किया। बदलते वक्त में हालात काफी सुधरे भी हैं। लेकिन ये नाकाफी हैं। भले ही शहरों (जन्म दर 1.8) में गांवों (2.5) की अपेक्षा जन्म दर में कमी आई है, लेकिन बढ़ती आबादी चिंता का सबब है। विश्व जनसंख्या दिवस पर हर किसी के लिये ये जानना जरूरी है कि दुनिया की कुल आबादी में अकेले हमारी (भारत) हिस्सेदारी 17 फीसदी है, जबकि हमारे पास दुनिया का केवल चार फीसदी पानी और 2.5 फीसदी ही जमीन है। यही कारण है कि आज करोड़ों भारतीय बुनियादी सुविधाओं से मरहूम हैं।
World Population Day
चिंताजनक हैं विश्व बैंक के आंकड़े-
विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में करीब 22 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, जिनके पास दो वक्त की रोटी का भी जुगाड़ नहीं है। देश की 15 फीसदी आबादी कुपोषण का शिकार है, इनमें बच्चों की संख्या 40 फीसदी है। 65 फीसदी आबादी के पास शौचालय नहीं है, जबकि 26 फीसदी आबादी अभी भी निरक्षर है। हर साल एक करोड़ से अधिक नये लोग रोजगार की तलाश में बाजार आते हैं। इन सबका कारण बढ़ती जनसंख्या है। अस्पतालों के बाहर लंबी-लंबी लाइनें लगी हैं। बेहतर शिक्षा के इंतजाम नहीं हैं। संसाधनों की कमी है। ट्रेनें का टिकट महीनों पहले बुक हो जाता है। डॉक्टर्स के मरीजों की संख्या इतनी होती है कि वह सभी मरीजों को देख नहीं पाते हैं। संसाधनों के अभाव में मरीज बिना इलाज के दम तोड़ देते हैं।
खड़ी है बेरोजगारों की फौज-
मौजूदा समय में जिस तरह से जनसंख्या बढ़ रही है, वैसे ही सुविधाएं और संसाधन भी सिकुड़ते जा रहे हैं। बाजार में हर साल एक करोड़ से अधिक नये युवा रोजगार की तलाश में आते हैं, जबकि यहां पहले से ही बेरोजगारों की लंबी फौज खड़ी होती है। यही कारण है कि एक सरकारी नौकरी के लिये सैकड़ों के आवेदन आते हैं। हाल ही उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड ने करीब 45000 सिपाहियों की भर्ती के लिये विज्ञापन निकाला था, जिसमें 10 लाख से अधिक आवेदन आये। इतना ही नहीं सचिवालय में चपरासी की नौकरी के लिये एमए, बीए, बीएड, पीएचडी और एमबीए डिग्री वाले युवाओं ने आवेदन किया था। सरकारी हो या निजी हर सेक्टर में नौकरी की मारामारी है।
… तो सामने आएगा खाद्यान्न का संकट-
बढ़ती आबादी का ही कारण है कि आज गांव कस्बों में, कस्बे शहरों में और शहर बड़े शहरों में तब्दील होते जा रहे हैं। खेती योग्य जमीन सिकुड़ती जा रही है। खेतों में बिल्डिंगें बन रही हैं। इसके अलावा सरकारें भी विकास के नाम पर लाखों हरे पेड़ों की अंधा-धुंध कटाई कर रही है, जिसके कारण मानसून रूठ सा गया है। समय पर बारिश नहीं हो रही है। बादल बिना बरसे ही चले जाते हैं। जानकारों का मानना है कि अगर इसी तरह खेती योग्य जमीनों को शहर निगलते रहे और हरे पेड़ों को काटा जाता रहा तो कृषि प्रधान कहे जाने वाले देश में जल्द ही खाद्यान का बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा।
Pariwar niyojan
परिवार नियोजन-
बढ़ती आबादी से निपटने के लिये केंद्र व राज्य सरकारें परिवार नियोजन पर जो देती हैं। गर्भनिरोध के आधुनिक उपायों में महिला एवं पुरुष नसबंदी, गर्भनिरोधक गोलियां, आईयूडी एवं पीपीआईयूडी (कॉपर-टी), गर्भनिरोधक इंजेक्शन, पुरुष एवं महिलाओं के कंडोम और गर्भनिरोध के आपात उपाय शामिल हैं। आइए जानते हैं क्या हैं परिवार नियोजन के क्या हैं उपाय-
कंडोम और गर्भनिरोधक गोलियां-
सरकार सीएचसी-पीएसची पर बच्चों में अंतर रखने के लिये कंडोम और गर्भनिरोधक गोलियां मुफ्त में दे रही है। इनका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता। ये तरीके बच्चों में अंतर रखने का आसान उपाय है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार मिशन परिवार विकास योजना की योजना के तहत नवविवाहिताओं को शादी के शगुन में एक किट देगी। इसमें स्वास्थ्य व साफ-सफाई के सामान, कंघा, शीशा और तौलिया होगी। साथ ही कंडोम और गर्भनिरोधक गोलियां होंगी। सरकार की ओर से दी गई इस किट में एक पत्र भी होगा, जिसमें परिवार नियोजन के लाभ बताये जाएंगे।
अंतरा इंजेक्शन : तीन महीने तक नहीं ठहरेगा गर्भ
परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत गर्भ निरोधक इंजेक्शन (अंतरा) मुफ्त में लगाया जाता है। यह बच्चों में अंतर रखने का बेहतर तरीका है। परिवार कल्याण मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने बताया कि एक बार इंजेक्शन लगाने पर तीन माह तक गर्भ ठहरने की संभावना नहीं रहती है। अभी तक ये इंजेक्शन सिर्फ जिला महिला अस्पताल में ही लगाये जाते थे, लेकिन अब से यह सुविधा प्रदेश की हर सीचएसी-पीएचसी पर मिलेगी। अंतरा इंजेक्शन के लाभार्थी और आशा को 100-100 रुपये मानदेय भी सरकार देने जा रही है, जिसका उद्देश्य अधिक से अधिक महिलाओं अंतरा इंजेक्शन का इस्तेमाल करें।
पीपीआईयूडी (कॉपर टी)
पोस्टपार्टम इंस्ट्रायूटिराइन कंट्रासेप्टिव डिवाइस (ppiud) यानी कॉपर टी बच्चों में अंतर रखने का आसान तरीका है। मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने बताया कि जनसंख्या नियंत्रण में पीपीआईयूडी काफी असरदार सुविधा है। यह सुविधा हर सरकारी अस्पतालों में महिलाओं को प्रसव के बाद मुफ्त दी जाती है। प्रसव के उपरांत या गर्भपात के बाद कॉपर टी अपनाने पर लाभार्थी को 300 रुपये की धनराशि दी जा रही है। मंत्री रीता के मुताबिक, कॉपर टी इस्तेमाल करने वाली महिलाओं की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। उन्होंने बताया कि 2015-16 में कॉपर टी इस्तेमाल करने वाली लाभार्थियों की संख्या 1.9 लाख थी, जो 2017-18 के दौरान बढ़कर 2.95 लाख हो गई है।
नसबंदी : गर्भ ठहरने के झंझट से मुक्ति
नसबंदी (Sterilization) गर्भ ठहरने से बचने का पूर्णकालिक उपाय है। मिशन परिवार विकास (एमपीवी) योजना उत्तर प्रदेश के 57 जिलों में चल रही है। इस योजना के तहत सरकारी अस्पतालों में महिला व पुरुष दोनों की नसबंदी मुफ्त में की जाती है। नसबंदी बेहद ही सरल उपाय है। नसबंदी बदले में सरकार लाभार्थी को धनराशि भी उपलब्ध कराती है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निदेशक पंकज कुमार ने बताया कि एमपीवी जिलों में नसबंदी के पश्चात महिला लाभार्थी को 2000 रुपये, प्रसव के बाद नसबंदी कराने पर 3000 रुपये और पुरुष लाभार्थियों को नसबंदी के पश्चात 3000 रुपये दिये जाते हैं। वहीं, नसबंदी कराने पर प्रत्येक प्रेरक या आशा को 400 रुपये दिये जाते हैं। गैर एमवीवी जिलों में नसबंदी कराने वाली महिला लाभार्थियों को 1400 रुपये, प्रसव के बाद नसबंदी कराने पर 2200 रुपये और पुरुष लाभार्थियों नसबंदी के पश्चात 2000 रुपये दिये जाते हैं। पंकज कुमार ने बताया कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं नसबंदी कराने में आगे हैं। उन्होंने बताया कि एमपीवी जिलों में वर्ष 2017-18 के दौरान 1.82 लाख महिलाओं ने नसबंदी कराई, जबकि पुरुषों की संख्या महज 3227 रही।
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