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दस लाख पौधे रोपने का लिया है संकल्प, सरकारी पौधारोपण अभियानों को दिखा रहे हैं आईना

सरकारी फाइलों में तो हरियाली खूब दिखती है लेकिन जमीन पर अभी भी उजाड़ सा नजारा दिखाई पड़ता है।  

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दस लाख पौधे रोपने का लिया है संकल्प, सरकारी पौधारोपण अभियानों को दिखा रहे हैं आईना

लखनऊ. सरकारी स्तर पर पौधारोपण को लेकर हर साल बड़े पैमाने पर होने वाले बड़े आयोजनों के बावजूद उस तरह के नतीजे नहीं मिल रहे, जो पर्यावरण संरक्षण को लेकर किसी तरह का सकारात्मक संकेत देते हों। इन सबके बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जो व्यक्तिगत स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए पौधारोपण को बढ़ाने को अपनी जिंदगी का मकसद बना चुके हैं। ऐसे ही एक पर्यावरण प्रेमी इंसान हैं चंद्रभूषण तिवारी। इन्हें लोग पेड़ वाले बाबा के नाम से भी जानते हैं। अब तक दो लाख से अधिक पौधे लगा चुके तिवारी अपने जीवन में 10 लाख से अधिक पौधे लगाने का लक्ष्य निर्धारित कर चुके हैं।

कर चुके हैं 2 लाख से ज्यादा पौधारोपण

पर्यावरण के संरक्षण के लिए जिन लोगों ने लीक से हटकर काम किया, उनमें से एक नाम है राजधानी लखनऊ के चंद्रभूषण तिवारी का। पेड़-पौधों के संरक्षण और उनकी चिंता के कारण लोगों ने इनका नाम ही पेड़ वाले बाबा रख दिया है। पर्यावरण को बचाने की अपनी मुहिम के तहत वे 2006 से 2017 के बीच दो लाख से अधिक पौधे लगा चुके हैं। उन्होंने संकल्प लिया है कि वे दस लाख से अधिक पौधे लगाएंगे।

लोगों को करते हैं पौधारोपण के लिए प्रेरित

चंद्रभूषण तिवारी बताते हैं वे पौधों की देखभाल बेटी की तरह करते हैं।इसके अलावा उन्होंने हराहरी व्रत कथा भी लिखी है, जिससे पानी और पेड़ पर आए संकट को लेकर लोगों तक बात पहुंचाई जा सके। तिवारी कहते हैं कि पर्यावरण को लेकर लोगों की सोच बदल रही है लेकिन फिर भी पूरी तरह से लोग प्रकृति के प्रति समर्पित नहीं हुए हैं। पौधों के महत्व को इसलिए भी समझना जरूरी है क्योंकि इनके बिना इंसानी जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी। तिवारी बचपन से ही लोगों को पौधरोपण के लिए प्रेरित कर रहे हैं और खुद भी इस अभियान में जुटे हुए हैं।

सरकार को सीख लेने की जरूरत

चंद्रभूषण तिवारी की तरह और भी बहुत सारे लोग पौधारोपण के काम में बिना किसी सरकारी मदद के अपनी मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण से जुड़े विशेषज्ञ मानते हैं कि समाज के जो लोग पौधारोपण को लेकर काम कर रहे हैं, उन्हें प्रोत्साहित किये जाने की जरूरत है। ऐसे प्रोत्साहन से अन्य लोग प्रेरित होंगे और पौधरोपण के प्रति जागरूकता का भाव बढ़ेगा लेकिन लाल फीताशाही में उलझी नौकरशाही के लिए एक माह के उत्सव में पौधे रोपने और उनकी संख्या का प्रचार करने के अलावा अन्य बातों में रुझान कम ही दिखता है। शायद यही कारण है कि सरकारी फाइलों में तो हरियाली खूब दिखती है लेकिन जमीन पर अभी भी उजाड़ सा नजारा दिखाई पड़ता है।


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