– प्रतिनिधि मंडल ने कहा कि जब कोरोना काल में सभी शिक्षण संस्थाएं बंद रहीं, तो शिक्षण संस्थाओं का वर्तमान में किसी प्रकार का व्यय नहीं हुआ तथा ना ही छात्रों को शिक्षण संबंधी ज्ञान/लाभ प्राप्त हो सका। ऐसी स्थिति में अभिभावकों द्वारा मासिक शुल्क दिए जाना न्याय उचित नहीं होगा।
– विगत कई वर्षों से विभिन्न शिक्षण संस्थाओं का संचालन किया जा रहा है, जिनमें मासिक शुल्क के अतिरिक्त अनेकों प्रकार के अन्य शुल्क लगाकर आय अर्जित की जा रही थी, यदि कोरोना काल में शिक्षण संस्थायें किसी प्रकार के व्यय की बात करती हैं, तो पूर्ण कालीन आय /लाभ से अपने स्तर पर व्यवस्था करना सुनिश्चित करें।
– यदि शिक्षण संस्थान ऑनलाइन अध्यापन की बात करते हैं, तो ऑनलाइन अध्यापन के माध्यम से अध्ययन के लिए आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक अभिभावक लैपटॉप आदि का वहन कर सके तथा प्रत्येक छात्र तकनीकी तौर पर सजग नहीं होता। लैपटॉप अथवा मोबाइल पर ऑनलाइन अध्यापन के अंतर्गत यदि छात्र चार से सात घंटा अध्ययन करेगा तो छात्रों की आँखों व स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
– ऑनलाइन अध्ययन के अंतर्गत यदि देखा जाए तो एक छात्र के गृहकार्य/प्रोजेक्ट आदि की शीट निकलवाने में लगभग 50 से 100 रुपए का व्यय होता है, जो कि अभिभावक पर वर्तमान में बिगड़ी आर्थिक सामाजिक स्थिति में असहनीय अतिरिक्त भार होगा।
– वर्तमान में कोरोना काल के कारण समाज में बहुत से अभिभावक आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहे/लड़ रहे हैं, जिसके कारण तमाम अभिभावकों की आर्थिक स्थिति दयनीय है तथा वह शुल्क देने में असमर्थ है।