
ceed
लखनऊ. विश्व भर में 90 प्रतिशत आबादी ज़हरीली हवा में सांस लेने को मजबूर है। पिछले 17 साल के आकलन को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यदि हम अभी नहीं चेते तो फिर बहुत देर हो जाएगी। इसको और आसान भाषा में कुछ ऐसे समझा जा सकता है कि फिलहाल प्रदूषण कैंसर से भी घातक है हो चुका है। प्रदूषण हर साल तेजी से बढ़ रहा है। इसका स्तर सामान्य स्तर 40 माइक्रोग्राम से 120% तक ज्यादा है। ये आकलन 11 शहरों में किया गया है जिसमें 7 उत्तर प्रदेश के हैं। चिंताजनक बात अध्ययन की यह रही कि इन शहरों में हर साल 22,412 जाने जा रही हैं और हम अब तक सिर्फ फाइलों में प्रदूषण को नियंत्रित कर रहे हैं। यह जानकारी सेंटर ऑफ़ एनवायरनमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) द्वारा जारी अपनी रिपोर्ट में दी गई।
आईआईटी दिल्ली , आईआईटी मुंबई और सीड ने किया अध्ययन
आईआईटी दिल्ली, आईआईटी मुंबई और सीड द्वारा किए गए इस अध्ययन में यह बातें सामने आई हैं। इस अध्ययन के लिए 11 शहरों को चुना गया जिसमें प्रदेश के आगरा , इलाहाबाद, कानपुर, लखनऊ, मेरठ वाराणसी, गोरखपुर जबकि बिहार से पटना, गया, मुजफ्फरपुर और झारखंड से रांची को शामिल किया गया। यह अध्ययन सैटेलाइट पर आधारित था और पिछले 17 सालों के केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के आंकड़ों का अध्यन्न किया गया।
गंगा के मैदानी इलाकों में अधिक प्रदूषण
बात उत्तर प्रदेश की करें तो मुख्य तौर पर यह सामने आया कि गंगा के मैदानी इलाकों पर बसे शहरों में प्रदूषण सबसे अधिक है। प्रदूषण लगातार पश्चिम से पूर्वो इलाकों की ओर जा रहा है। शहरों में सबसे अधिक प्रदूषण का स्तर बनारस में है लेकिन अन्य शहरों में प्रदूषण का स्तर चिंताजनक है।
प्रदूषण लगातार ले रहा जान
प्रदूषण लगातार लोगों की जान ले रहा है। मौतों के आंकड़े हैरान करने वाले हैं। इन 11 शहरों में हर साल औसत तौर पर 22,412 जाने जा रही हैं। इनमें सबसे अधिक 4 साल से कम उम्र के बच्चे हैं। इनमें सबसे आगे कानपुर है। कानपुर में हर साल 4,173 जाने जा रही हैं जबकि लखनऊ में 4,127 लोगों की मृत्यु हो रही है।
जानकारी देते हुए सीड की सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर अंकिता ज्योति ने बताया कि सेटेलाइट के अध्ययन में सामने आया कि प्रदूषण सबसे अधिक सल्फेट ऑर्गेनिक कार्बन ब्लैक कार्बन जैसे प्रदूषकों के चलते बढ़ रहा है। इसमें सबसे अधिक पीएम 2.5 आवासीय क्षेत्रों से घुल रहा है। उनका कहना है कि यहां 73 प्रतिशत तक पीएम 2.5 निकलता है। इसमें बड़ा कारण फॉसिल फ्यूल है। घरों में जलने वाले लड़की के चूहले आदि चीजें में प्रयोग होने वाला कोयला, लकड़ी आदि। रेस्टोरेंट और होटल की चिमनियों से निकलने वाला धुआं भी एक नया चाइनीज बनता जा रहा है। फसलों का जलना, गाड़ियों से निकलने वाला धुंआ और कंस्ट्रक्शन के काम भी एक वजह हैं।
सीट के डायरेक्टर प्रोग्राम्स अभिषेक प्रताप ने बताया कि उनके द्वारा किया गया अध्ययन प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जल्द सौंपा जाएगा। इससे पहले पर्यावरण मंत्री और प्रदूषण बोर्ड के अधिकारियों से इसको लेकर बैठक की जा चुकी है। उन्होंने बताया कि जल्द ही एक एक क्लीन एयर एक्शन प्लान की जरूरत है। साथ ही लोगों को भी इसके बारे में जागरूक करने की जरूरत है इंटर स्टेट कोआर्डिनेशन भी इसके लिए बेहद जरूरी है।
बताते चलें इससे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की रिपोर्ट ने उत्तर प्रदेश की घंटी बजाई थी। इससे चिंता बढ़ी थी। डब्लूएचओ की तरफ से दुनिया के प्रदूषित शहरों की जो सूची जारी की गयी है, जिनमें 20 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में 6 शहर उत्तरप्रदेश के शामिल हैं। अगर सिर्फ साल 2016 के बाद डाटा को देखा जाये तो कानपुर को इस लिस्ट में दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बताया गया है। 20 सबसे प्रदूषित शहरों में अकेले भारत के 15 शहर शामिल हैं।
Published on:
22 May 2018 03:10 pm
बड़ी खबरें
View Allलखनऊ
उत्तर प्रदेश
ट्रेंडिंग
