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यूपी की राजनीति में पूर्वांचल का दबदबा, ये 6 दिग्गज भी आजमा चुके हैं अपनी किस्मत

UP Politics: पूर्वांचल ने राजनीति में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन यहां कुछ ऐसे नेता भी हुए जो दलों और समीकरणों पर भारी पड़े। पेश है ऐसे नेताओं का ब्यौरा....

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लखनऊ

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Aman Pandey

Apr 02, 2024

 Purvanchal dominates UP politics these 6 stalwarts have also tried their luck

UP Politics: पूर्वांचल से चुनावी भाग्य आजमाने वालों में ऐसे भी राजनेता रहे, जिनका कद उनकी पार्टी या दल से नहीं बल्कि व्यक्तित्व से रहा। इनमें से कुछ लोग पूर्वांचल की माटी से थे तो कुछ बाहरी। इसके बावजूद इन सबकी खूबियां लगभग एक समान रहीं।

अपने-अपने क्षेत्र के दिग्गज रहे इन लोगों की कभी पूर्वांचल की राजनीति में धाक रही। लेकिन, इन्हें भी हार-जीत का खट्टा-मीठा स्वाद मिलता रहा। अब भी चुनावों के समय उन्हें याद किया जाता है। आइए जानते हैं इन शख्सियतों के बारे में...

देश के किसी सूबे की पहली महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी 1952 में गोरखपुर मध्य से संसदीय चुनाव लड़ी थीं, उन्हें जीत का स्वाद नहीं मिला। उन्होंने वर्ष 1962 में मेहदावल से विधानसभा चुनाव में भाग्य आजमाया और सफलता हासिल की। उन्होंने संघ के चंद्रशेखर सिंह को शिकस्त दी। 2 अक्टूबर 1963 से 13 मार्च 1967 तक वह सूबे की सीएम भी रहीं। अंबाला के एक बंगाली परिवार में 25 जून 1908 में पैदा हुईं सुचेता मजूमदार सर्वश्रेष्ठ संस्थान इंद्रप्रस्थ और स्टीफेंस से पढ़ी-लिखीं। बीएचयू में अध्यापन कर चुकी सुचेता प्रसिद्ध समाजशास्त्री आचार्य जेबी कृपालानी से शादी करने के बाद स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हुईं। भारत छोड़ो आंदोलन में अरुणा आसफ अली व ऊषा मेहता जैसी भूमिका निभाने वाली सुचेता देश के विभाजन के बाद नोआखाली के दंगों में गांधीजी के साथ रहीं। वह संविधान सभा की सदस्य भी रहीं।

14 साल (1960-1974) तक एमएलए व दो बार सांसद रह चुकीं किदवई का शुमार कभी कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में था। केंद्र व प्रदेश में वह कई मंत्रालयों का प्रभार संभाल चुकी हैं। राष्ट्रपति चुनाव में अपनी किस्मत आजमा चुकी किदवई पर पूर्वांचल के लोगों ने भरोसा नहीं किया। मूलतः बाराबंकी की रहने वाली मोहसिना किदवई ने वर्ष 1991 और 1996 में डुमरियागंज संसदीय सीट से बतौर कांग्रेस उम्मीदवार भाग्य आजमाया, लेकिन उन्हें 1991 में दूसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा। वर्ष 1996 में तो आलम यह रहा कि उनकी जमानत तक नहीं बच सकी।

अविभाजित देवरिया जिले में गन्ना किसानों के संघर्ष के प्रतीक रहे बाबू गेंदा सिंह के नाम पर स्थापित वर्तमान कुशीनगर जिले के सेवरही गन्ना शोध संस्थान उनके सम्मान का प्रतीक है। 17 अगस्त 1965 से 31 मार्च 1957 तक वे विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता रहे। वह एक अच्छे राजनेता के रूप में ख्यातिलब्ध रहे। वर्ष 1957 व 1962 में उन्होंने पडरौना पूर्व, वर्ष 1967 व 1969 में सेवरही विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। कांग्रेस के टिकट पर वे 1971 में पडरौना से सांसद चुने गए, लेकिन 1977 के चुनावों में जनता पार्टी की आंधी में धड़ाम हो गए।

दिग्विजयनाथ चित्तौड़ मेवाड़ ठिकाना ककरहवां में पैदा हुए और 5 साल की अल्पायु में गोरखपुर आए और यहीं के होकर रह गए। वे जिस गांधीजी से प्रभावित होकर अपनी पढ़ाई छोड़कर 1920 में असहयोग आंदोलन में शामिल हुए थे, वे ही उनकी हत्या में आरोपित हुए थे। यह बात अलग है कि सबूतों के अभाव में बरी हो गए। नाम तो उनका चौरीचौरा कांड में भी आया, लेकिन इस कांड में भी उनकी शिनाख्त नहीं हो सकी थी। वर्ष 1931 में कांग्रेस तुष्टीकरण की नीति पर चलते हुए कम्यूनल अवॉर्ड से सहमत हो गयी तब उनका कांग्रेस से मोह भंग हो गया और वे हिंदू महासभा में शामिल हो गए। वर्ष 1962, 1967, 1969 में उन्होंने विधानसभा क्षेत्र मानीराम का प्रतिनिधित्व किया। 1967 में गोरखपुर संसदीय सीट से सांसद बने। वैशाख पूर्णिमा 1894 में पैदा हुए दिग्विजयनाथ ने 28 सितंबर 1969 में चिरसमाधि ली। हिंदुत्व के मुखर पैरोकार होने के साथ वे बहुसंख्यक समाज में व्याप्त जाति-पाति के कट्टर विरोधी थे।

आजादी के बाद जब कांग्रेस की पूरे देश में आंधी चल रही थी, तब प्रो. शिब्बन लाल सक्सेना ने 1952, 1955 व 1957 के चुनावों में न केवल समाजवाद का परचम लहराया बल्कि जीत की हैट्रिक भी बनायी। हालांकि, 1962 व 1964 के चुनाव में वह कांग्रेस के महादेव प्रसाद से हार गए। 1971 में समाजवाद का चोला उतारकर कांग्रेसी बने और संसद में पहुंचे। लेकिन, इमरजेंसी के कारण उनका कांग्रेस से मतभेद हुआ और 1977 के चुनाव में उन्होंने जनता पार्टी का दामन थाम कर जीत हासिल की।

गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ ने 1969, 1989, 1991 व 1996 में गोरखपुर सदर संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने अपने जीवन काल के अंतिम लोकसभा चुनाव को छोड़कर शेष सभी चुनाव हिंदू महासभा के टिकट पर लड़ा। उन्होंने 1962, 1967, 1969, 1974 और 1977 में मानीराम विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 1984 में शुरू हुई रामजन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति के शीर्षस्थ नेताओं में शुमार श्रीराम जन्मभूमि यज्ञ समिति के अध्यक्ष व रामजन्म भूमि न्यास समिति के सदस्य रहे महंत अवैद्यनाथ योग व दर्शन के मर्मज्ञ थे।

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गोरखपुर की राजनीति को दशकों तक कवर करने वाले गिरीश पांडेय बताते हैं कि बहुसंख्यक समाज को जोड़ने के लिए सहभोजों के क्रम में उन्होंने बनारस में संतों के साथ डोमराजा के घर भोजन किया। 1998 में अपने उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ को अपनी राजनीतिक विरासत सौंपने के बाद एक तरह से उन्होंने राजनीति से संन्यास ही ले लिया।