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Raksha Bandhan: मुगलों ने रक्तपात करने को रक्षाबंधन का इंतजार किया, काश! महाराणा प्रताप ने उठाया होता भाला…

रक्षाबंधन के दिन महाराणा प्रताप ने अपना भाला नहीं छूने का प्रण लिया था। मुगलों ने ठीक इसी दिन का चयन किया जब मेवाण के किले पर आक्रमण कर जमकर रक्तपात किया गया था। दूसरी तरफ, जलालुद्दीन खिलजी ने भी इसी दिन का चयन किया था जब पालिवाल ब्राम्हण परिवार एकत्र होते थे, तभी नरसंहारों का सिलसिला शुरू किया...

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मेवाण पर मुगलों ने हमला किया और महाराणा प्रताप को पलायन करना पड़ा था। क्यों कि वह प्रतिज्ञाबद्ध थे कि रक्षाबंधन के दिन अपना भाला नहीं उठाएंगे।

Raksha Bandhan: गंगा-जमुनी संस्कृति को मजबूत करने के लिए अकबर और जहांगीर के जमाने में रक्षाबंधन मनाने की चर्चा किया जाता है। कहा यह भी जाता है कि मुगल काल में हुमायूं को रानी कर्णावती ने राखी भेजा था। लेकिन मुगल काल में ही हिंदुओं में सिसोदिया और पालिवाल ब्राम्हणों का रक्षाबंधन शोक पर्व बन गया। इतिहास की पुस्तकों में दर्ज है कि सिकंदर के विश्व विजेता बनने का सपना पोरस ने मिट्टी में मिला दिया होता अगर सिकंदर की पत्नी ने पोरस को राखी न भेजी होती।

युद्ध के दौरान सिकंदर की सेनाएं लगातार पीछे हट रही थी और एक क्षण ऐसा भी आया जब पोरस के चरणों में सिकंदर गिर पड़ा था। उसकी हत्या से पूर्व ही पोरस को याद आया कि मेरी बहन विधवा हो जाएगी। पासा पलट गया और पोरस जीती हुई बाजी हार गया था। भाई-बहन के निश्छल, निर्विकार, सात्विक प्रेम और पवित्रता का प्रतीक रक्षाबंधन का पर्व सदियों से देश में मनाया जाता है। जिसे लेकर तरह-तरह की कहानियां, दंतकथाएं और कहीं-कहीं इतिहास में भी घटनाएं दर्ज हैं, जो चर्चा का विषय रहती हैं।

हिंदुओं में पालिवाल समाज ब्राम्हण समुदाय माना जाता है, जबकि सिसोदिया क्षत्रिय समाज से आते हैं। यह दोनों ही जातियां रक्षाबंधन को शोक के रुप में मनाते हैं और भाई की कलाई पर बहनें राखी नहीं बांधती हैं। बल्कि एक धोखा के कारण इस दिन को शोक दिवस के रुप में मनाते हैं। करीब 700 साल पहले श्रावण मास की पूर्णिमा को मुगलों के हमले में हजारों पालिवाल ब्राम्हण महिलाएं, बच्चे और पुरुषों को मौत के घाट उतार दिया गया था। जिनकी याद में वे रक्षाबंधन को शोक मनाते हैं और तर्पण करते हैं।

तो वहीं, ठीक इसी दिन मेवाण पर मुगलों ने हमला किया और महाराणा प्रताप को पलायन करना पड़ा था। क्यों कि वह प्रतिज्ञाबद्ध थे कि रक्षाबंधन के दिन अपना भाला नहीं उठाएंगे। शत्रु की हत्या भी इस दिन करने से किसी बहन का भाई मारा जाएगा। इस सोच के चलते महाराणा ने युद्ध से पलायन किया और इस अवसर का लाभ उठाते हुए हजारों सिसोदिया बहनों, बच्चों, पुरुषों का नरसंहार मुगलों ने किया। जिसके बाद सिसोदिया वंश ने राखी मनाना बंद कर दिया।

धौलाकुंआ का इतिहास
नई दिल्ली में धौला कुंआ का इतिहास भी रक्षाबंधन से ही जुड़ा हुआ है। यह वास्तव में एक कुंआ था, जिसके चबूतरा का निर्माण पालिवाल ब्राम्हणों की बर्बर हत्या के बाद बनाया गया था। 1348 में श्रावण मास की पूर्णिमा को ही जोधपुर के पास स्थित पाली या पल्लवी जिले में पालिवाल ब्राम्हण निवास करते थे। पूर्णमासी के दिन पालिवाल रक्षाबंधन की तैयारी कर रहे थे, पकवान और मिठाईयां बन रही थीं। ठीक इसी मौके पर मुगल शासक जलालुद्दीन खिलजी ने आक्रमण कर दिया। भयंकर मारकाट युद्ध हुआ जिसमें एक लाख पालिवाल ब्राम्हण मारे गए।

हांलाकि इस युद्ध में मुगलों को हार का सामना करना पड़ा था। भागते वक्त उन्होंने यहां के लोडिया तालाब में गाय काट कर डाल दी जिससे पीने के पानी के चलते भी पालिवालों की मौत हुई। इस घटना के बाद पालिवाल पाली जिला छोडक़र कई जगहों पर बिखर गए। हजारों पालिवाल महिलाओं ने जौहर किया, उनके हाथ के कड़े इक_ा करके धौलाकुआं के चबूतरे का निर्माण किया गया। आज देश के लगभग सभी क्षेत्रों में पालिवाल ब्राम्हण पाए जाते हैं। जो अपने पूर्वजों की याद में रक्षाबंधन को तर्पण करते हैं औ शोक मनाते हैं।

इतिहास के शोधार्थी अवनीश पांडे बताते है कि महाराणा प्रताप ने कुछ हिंदू त्योहारों पर हथियार नहीं उठाने की शपथ ली थी। इसकी चर्चा वह मुगल कालीन इतिहास की कई पुस्तकों में होने का दावा करते है। कानपुर विश्वविद्यालय की मुगल कालीन इतिहास की छात्रा रही ज्योतिषाचार्य नेहा पालीवाल कहती हैं कि सैकड़ों वर्षों से हमलोग रक्षा बंधन नहीं मनाते। अब पालीवाल पूरी दुनिया में पाए जाते है, जो इस परंपरा का निर्वहन करते हैं, जबकि मूलरूप से हमलोग राजस्थान के है।

ऊपर दिए गए सभी तथ्य रीमा हूजा की पुस्तक 'महाराणा प्रताप द इनविजिबल वारियर' व रामबिलाश शर्मा के 'मधकालीन इतिहास' पुस्तक में दर्ज है।